Monday, March 5, 2012

यह चुनाव नहीं 'अगले पांच साल कौन लूटेगा?' का जवाब है



उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले एक बड़ा सवाल - क्या हमारे देश में चुनाव का मतलब यह नहीं हो गया की जनता अगले पांच साल के लिए अपना राजा चुने. जनता यह चुने की अगले पांच साल उसे किसके सामने गिडगिडाना है. उसकी मेहनत की कमाई पर ऐश करते हुए, उसे कौन लूटेगा? 
                                                                                                         - मनीष सिसोदिया

पांच राज्यों  में हुए विधानसभा चुनाव के नतीज़े आने में अब कुछ ही घंटे का समय बचा है. हर चुनाव की तरह इसमें भी कोई जीतेगा और कोई हारेगा. लेकिन जनता को क्या मिलेगा? इसके पहले कि हार और जीत की समीक्षा का नशा  उफान पर आए, इन चुनावों की उपयोगिता पर भी एक आकलन होना चाहिए. यह आकलन इसलिए भी ज़रूरी है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चले एक बड़े आंदोलन के बाद ये पहले चुनाव हैं और इन्हें आगामी लोकसभा चुनाव के सेमीफाईनल के रूप में भी देखा जा रहा है. ज़ाहिर है कि इन दोनों मुद्दों के आधार पर नतीजों की समीक्षा करने के लोभ से परंपरागत विश्लेषक नहीं बच पाएंगे और वे बुनियादी सवाल से भटकेंगे. 

बुनियादी सवाल यह है कि एक सामान्य नागरिक, जो बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान है, इन चुनावों के बाद उसे क्या मिलेगा? वह अपनी रोजाना की जि़ंदगी में स्कूल - अस्पताल, सड़क से लेकर हर सरकारी दफ्तर के भ्रष्ट कामकाज से दुखी है. ड्राईविंग लाईसेंस लेना हो या किसी दुकान या फैक्ट्री का लाईसेंस, बिना रिश्वत के नहीं मिलता. मकान की रजिस्ट्री से लेकर नक्शा पास कराने तक में फाईल बिना रिश्वत आगे नहीं बढ़ती. किसान की अच्छी खासी ज़मीन अगर किसी बड़े व्यापारी की नज़र चढ़ जाए तो रातों रात उसे छीनने की योजना सरकार बना देती है. इसके बाद जब किसान का बेटा कोई सरकारी नौकरी करना चाहता है तो उससे लाखों रुपए रिश्वत में ले लिए जाते हैं. इसलिए सवाल यह नहीं है कि चुनाव नतीजों में कौन जीतेगा और कौन  हारेगा. सवाल तो यह है कि एक सामान्य आदमी की जि़ंदगी में कुछ बदलाव आएगा? अगर नहीं! तो  फिर यह चुनाव का नाटक किसलिए?

Sunday, February 12, 2012

जोरदार ठंड के बावजूद उमड़ा जनसमूह


चंदौली. 9 फरवरी। उत्तर प्रदेश के चुनावी मौसम में टीम अन्ना का तूफान भी दिखने लगा है। राजनीतिक रैलियों को छोड़कर लोग टीम अन्ना की जागरूकता रैलियों में हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं।

गाजीपुर जिले के रहने वाले 30 साल के मनोज अपने शहर में हुई टीम अन्ना की रैली में हिस्सा नहीं ले सके तो सौकिलोमीटर का सफर तय करके चंदौली की रैली में पहुंचे। टीम अन्ना की रैलियों और राजनीतिक रैलियों का बड़ा फर्क यह भी है कि टीम अन्ना की रैली में लोग खुद खिंचे चले आते हैं जबकि राजनीतिक रैली में भीड़ इकट्ठा करने के लिए नेताओं को कड़ी मशक्कत और बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है।

मनोज कहते हैं, एक जागरूक और जिम्मेदार मतदाता होते हुए मैं इस पशोपेश में था कि किसे वोट करूं और क्यों करूं। इन दिनों सभी पार्टियों के उम्मीदवार हमारे पास आ रहे हैं। मैं सोचता था कि उनसे क्या सवाल किया जाए और क्या वादा लिया जाए? इस सभा के बाद अब जो भी उम्मीदवार हमारे पास आएगा, उससे मैं पूछूंगा कि क्या वह राज्य में सख्त लोकायुक्त कानून के लिए काम करेगा?  चंदौली में हुई रैली में मनोज अकेले नहीं थे जिन्हें अपने उम्मीदवारों से शिकायत थी। युवाओं का असंतोष भी साफ झलक रहा था।

चंदौली के जीटी रोड पर पंजाब नेशनल बैंक के नजदीक मैदान में आयोजित यह रैली उस समय हो रही थी, जबकि इसी शहर के दूसरे हिस्से में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की रैली चल रही थी। लेकिन यहां आए लोगों का कहना था कि वे राहुल की रैली में इसलिए नहीं गए क्योंकि राहुल अपनी पार्टी के लिए वोट मांगने आए थे जबकि टीम अन्ना का अपना कोई स्वार्थ नहीं था। वह सिर्फ हमें जागरुक करने आई थी।

टीम अन्ना ने लोगों को बताया कि केंद्र सरकार ने लोकपाल आंदोलन के दौरान अन्ना हजारे को किस तरह बार-बार धोखा दिया। साथ ही राजनीतिक दलों के आंतरिक ढांचे में लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमी पर भी रोशनी डाली। टीम अन्ना ने लोकपाल बिल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि चाहे सत्ता में जो भी आए लोकपाल भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखेगा और लोगों को अच्छा शासन मिल सकेगा।


रैली में शामिल हो रहे एमबीए स्नातक मुरारी वर्मा का कहना था कि यह लोगों के बीच में जागरुकता लाने का और उनके वोट के महत्व के बारे में बताने के लिए एक सराहनीय प्रयास है। वर्मा ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रेदश देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार है क्योंकि यहां के राजनेताओं ने कभी विकास पर ध्यान ही नहीं दिया।

टीम अन्ना अब तक उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, बस्ती, गोंडा, फैजाबाद, बाराबंकी, आजमगढ़, चंदौली,   वाराणासी और इलाहाबाद में मतदाता जागरुकता अभियान के तहत रैलियां कर चुकी है। अभियान का अगला चरण 13 फरवरी को रायबरेली से शुरु होगा। इसी दिन कन्नौज और फर्रुखाबाद में भी रैली होगी जबकि 15 फरवरी को मैनपुरी व इटावा और 16 फरवरी को ललितपुर और झांसी में रैलियां होंगी।

चुनावी फिजा में छाया तिरंगा


आजमगढ़. 8 फरवरी। चुनावी मौसम में आजमगढ़ में ताबड़तोड़ हो रही रैलियों से यह रैली बिल्कुल अलग है। इसे किसी राजनीतिक दल ने नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने आयोजित किया है।  

भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून लोकपाल के बारे में लोगों को जागरूक करने और अपने मताधिकार के सही इस्तेमाल के बारे में लोगों को बताने के लिए आयोजित इस रैली में टीम अन्ना सदस्यों ने लोगों से सोच-समझकर वोट देने की अपील की।

रैली के दौरान कुंवर सिंह उद्यान तिरंगों और देशभक्ति के नारों से गुलजार था। रैली में शामिल नूरुल्लाह का कहना था, रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन के दौरान जो नजारे टीवी के जरिए देखे, उन्हें आज अपनी आंखों के सामने देख, अपने अंदर एक बदलाव महसूस कर रहा हूं।

टीम अन्ना के मंच पर पूर्व सांसद इलियास आजमी ने भी अपने राजनीतिक अनुभव साझा किए। आजमी ने कहा, सांसद या विधायक के रूप में किसी की पार्टी में अपनी कोई निजी राय या विचारधारा नहीं होती।  उसे पार्टी हाई कमान के फैसले के अनुसार ही चलना पड़ता है।

टीम अन्ना की रैली में शामिल लोग काफी उत्साहित नजर आए। रैली में शामिल लोगों का कहना था कि यह अपने आप में अनूठा अनुभव था। राजनीतिक रैली में शामिल होने के लिए लालच दिए जाते हैं लेकिन अपने आप कहीं आने की बात ही अलग होती है। रैली में शामिल स्थानीय दुकानदार हीरालाल ने कहा कि टीम अन्ना किसी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में वोट करने के लिए नहीं कर रही है बल्कि लोगों को यह बता रही है कि लोकपाल कानून देश के लिए कितना जरूरी है और किस दल ने लोकपाल नहीं आने दिया।