Saturday, April 30, 2011

हमें क्यों चाहिए लोकपाल?


मोटे तौर पर, लोकपाल कानून बनवाने के दो मकसद हैं -


पहला मकसद है कि भ्रष्ट लोगों को सज़ा और जेल सुनिश्चित हो। भ्रष्टाचार, चाहे प्रधानमंत्री का हो या न्यायधीश  का, सांसद का हो या अफसर का, सबकी जांच निष्पक्ष तरीके से एक साल के अन्दर पूरी हो। और अगर निष्पक्ष जांच में कोई दोषी पाया जाता है तो उस पर मुकदमा चलाकर अधिक से अधिक एक साल में उसे जेल भेजा जाए।


दूसरा मकसद है आम आदमी को रोज़मर्रा के सरकारी कामकाज में रिश्वतखोरी से निजात दिलवाना। क्योंकि यह एक ऐसा भ्रष्टाचार है जिसने गांव में वोटरकार्ड बनवाने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक में लोगों का जीना हराम कर दिया है। इसके चलते ही एक सरकारी कर्मचारी किसी आम आदमी के साथ गुलामों जैसा व्यवहार करता है।

प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में इन दोनों उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सख्त प्रावधान रखे गए हैं। आज किसी भी गली मोहल्ले में आम आदमी से पूछ लीजिए कि उन्हें इन दोनों तरह के भ्रष्टाचार से समाधान चाहिए या नहीं। देश के साथ ज़रा भी संवेदना रखने वाला कोई आदमी मना करेगा? सिवाय उन लोगों के जो व्यवस्था में खामी का फायदा उठा उठाकर देश को दीमक की तरह खोखला बना रहे हैं। 

जन्तर मन्तर पर अन्ना हज़ारे के साथ लाखों की संख्या में खड़ी हुई जनता यही मांग बार बार उठा रही थी। देश के कोने कोने से लोगों ने इस आन्दोलन को समर्थन इसलिए नहीं दिया था कि केन्द्र और राज्यों में लालबत्ती की गाड़ियों में सरकारी पैसा फूंकने के लिए कुछ और लोग लाएं जाएं। बल्कि इस सबसे आजिज़ जनता चाहती है कि भ्रष्टाचार का कोई समाधान निकले, रिश्वतखोरी का कोई समाधान निकले। भ्रष्टाचारियों में डर पैदा हो। सबको स्पष्ट हो कि भ्रष्टाचार किया तो अब जेल जाना तय है। रिश्वत मांगी तो नौकरी जाना तय है। 

एक अच्छा और सख्त लोकपाल कानून आज देश की ज़रूरत है। लोकपाल कानून शायद देश का पहला ऐसा कानून होगा जो इतने बड़े स्तर पर जन चर्चा और जन समर्थन से बन रहा है। जन्तर मन्तर पर अन्ना हज़ारे के उपवास और उससे खड़े हुए अभियान के चलते लोकपाल कानून बनने से पहले ही लोकप्रिय हो गया है। ऐसा नहीं है कि एक कानून के बनने मात्र से देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा या इसके बाद रामराज आ जाएगा। जिस तरह भ्रष्टाचार के मूल में बहुत से तथ्य काम कर रहे हैं उसी तरह इसके निदान के लिए भी बहुत से कदम उठाने की ज़रूरत होगी और लोकपाल कानून उनमें से एक कदम है।

Friday, April 29, 2011

क्या कहता है जन लोकपाल कानून?


अन्ना हज़ारे साहब ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त कानून जन लोकपाल बिल पारित कराने के लिए देशभर में एक देशव्यापी आन्दोलन छेड़ा। ये जन लोकपाल कानून आखिर है क्या? आईए इसके बारें में हम थोड़ा और जानें?

लोकपाल और लोकायुक्त का गठन
केन्द्र के अन्दर एक स्वतन्त्र संस्था का गठन किया जाएगा, जिसका नाम होगा जन लोकपाल। हर राज्य के अन्दर एक स्वतन्त्र संस्था का गठन किया जाएगा, जिसका नाम होगा जन लोकायुक्त। ये संस्थाएं सरकार से बिल्कुल पूरी तरह से स्वतन्त्र होगी। आज जितनी भी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं हैं जैसे सीबीआई, सीवीसी, डिपार्टमेण्ट विजिलेंस, स्टेट विजिलेंस डिपार्टमेण्ट, एण्टी करप्शन ब्रांच यह सारी की सारी संस्थाएं पूरी तरह सरकारी शिकंजे के अन्दर हैं। यानि कि उन्हीं लोगों के अन्दर हैं जिन लोगों ने भ्रष्टाचार किया है। यानि की चोर जो है वो ही पुलिस का मालिक बन बैठा है। हमने यह लिखा है कि इस कानून के तहत जन लोकपाल और जन लोकायुक्त यह पूरी तरह से सरकारी शिकंजे से बाहर होगी।

जन लोकपाल का स्वरूप
जन लोकपाल में दस सदस्य होंगे। एक चैयरमेन होगा उसी तरह से हर राज्य के जन लोकायुक्त में दस सदस्य होंगे एक चैयरमेन होगा।

Thursday, April 28, 2011

लोकपाल और लोकायुक्त का काम


आम आदमी की शिकायत पर सुनवाई करेगा 
जन लोकपाल केन्द्र सरकार के विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे में शिकायतें प्राप्त करेगा और उन पर एक्शन लेगा। जन लोकायुक्त उस राज्य के सरकारी विभागों के बारे भ्रष्टाचार की शिकायतें लेगा और उन पर कार्यवाही करेगा।

तय समय सीमा में जांच पूरी कर दोषी के खिलाफ मुकदमा चलाना 
देशभर में पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर जगह हम भ्रष्टाचार देखते हैं। मिड डे मील में भ्रष्टाचार है, नरेगा में भ्रष्टाचार है, राशन में भ्रष्टाचार है, सड़क के बनने में भ्रष्टाचार है, उधर 2जी स्पेक्ट्रम का भ्रष्टाचार, कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार है। आदर्श स्केम है, मंत्रियों का भ्रष्टाचार है और गांव में सरपंच का भ्रष्टाचार है। 
इस कानून के तहत यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अगर लोकपाल में या लोकायुक्त में जाकर शिकायत करता है तो उस शिकायत के ऊपर जांच 6 महीने से 1 साल तक के अन्दर पूरी करनी पड़ेगी। अगर शिकायत की जांच करने के लिये लोकपाल के पास कर्मचारियों की कमी है तो लोकपाल को यह छूट दी गई है कि वह ज्यादा कर्मचारियों को लगा सकता है, लेकिन जांच को उसे एक साल के अन्दर पूरा करना पड़ेगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा
अगर आज भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करते हैं तो आपकी जान को खतरा होता है। लोगों को मार डाला जाता है, उनको तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। लोकपाल के पास यह पावर होगी और उसकी यह जिम्मेदारी होगी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को संरक्षण देने का काम लोकपाल का होगा।

भ्रष्ट निजी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई 
अगर कोई कम्पनी या कोई बिजनेसमैन सरकार में रिश्वत दे कर कोई नाजायज काम करवाता है, तो आज भ्रष्टाचार निरोधक कानून में ये लिखा है कि जांच ऐजेंसी को ये सबूत इकट्ठा करना पड़ता है, वो ये दिखा सके कि रिश्वत दी गई और रिश्वत ली गई। ये साबित करना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि वहां कोई गवाह मौजूद नहीं होता। इसमें हमने कानून में यह लिखा है अगर कोई बिजनेसमैन या कोई कम्पनी सरकार से कोई भी ऐसा काम करवाती है जो की कानून के खिलाफ है, जो कि गलत है तो ये मान लिया जायेगा कि ये काम रिश्वत दे कर और रिश्वत लेकर किया गया है। इसमें जांच ऐजेंसी को ये साबित करने की जरूरत नहीं होगी कि रिश्वत ली गई या दी गई।

Wednesday, April 27, 2011

भ्रष्टाचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा जन लोकपाल?


जांच होने के बाद लोकपाल दो कार्यवाही करेगा - 
एक तो ये कि जो भ्रष्ट अपफसर है उसको नौकरी से निकालने की पावर लोकपाल के पास होगी। उनको एक सुनवाई (हियरिंग) देकर, जांच के दौरान जो सबूत और गवाह मिले उनकी सुनवाई करके, लोकपाल दोषी अधिकारी को नौकरी से निकालने का दण्ड देगा या उनके खिलाफ विभागी कार्रवाई का आदेश देगा या कोई और भी पेनल्टी लगा सकता है। जैसे उनकी तरक्की रोकना, उनकी इन्क्रीमेण्ट रोकना आदि। इस तरह की भी पेनल्टी उन पर लगा सकता है।

दूसरी चीज़ जो लोकपाल करेगा वो ये कि जांच के तहत जो सबूत मिले उन सबके आधार पर वह ट्रायल कोर्ट के अन्दर मुकदमा दायर करेगा और इन लोगों को जेल भिजवाने की कार्यवाही शुरू करेगा।

तो कुल मिलाकर दो चीज़े हो गई। एक तो उनको नौकरी से निकालने की कार्यवाही शुरू हो जाएगी। इसका अधिकार लोकपाल को होगा। वह सीधे-सीधे आदेश देगा उन्हें नौकरी से निकालने के लिए और दूसरा ये कि उन्हें जेल भेजने के लिये अदालत में मुकदमा दायर किया जाएगा।

Tuesday, April 26, 2011

जन लोकपाल कानून बनने के बाद भ्रष्टाचारियों को क्या सजा हो सकती है?


भ्रष्टाचार साबित होने पर एक साल से लेकर उम्र भर के लिए जेल
आज हमारे भ्रष्टाचार निरोधक कानून में भ्रष्टाचार के लिए कम से कम 6 महीने की सज़ा का प्रावधान है और ज्यादा से ज्यादा सात साल की सज़ा का प्रावधान है। जनलोकपाल कानून में यह कहना है कि इसे बढ़ाकर कम से कम एक साल और ज्यादा से उम्र कैद यानि कि पूरी जिन्दगी के कारावास का प्रावधान किया जाना चाहिए। 

भ्रष्टाचार से देश को हुए नुकसान की वसूली
आज हमारी पूरी भ्रष्टाचार निरोधक सिस्टम के अन्दर अगर किसी को सज़ा भी होती है, तो ऐसा कहीं भी नहीं लिखा कि उसने जितना पैसा रिश्वत में कमाया या जितना पैसा जितना उसने सरकार को चूना लगाया वो उससे वापस लिया जाएगा। तो जैसे केन्द्र सरकार मे मंत्री रहते हुए ए.राजा ने, ऐसा कहा जा रहा है कि उसने तीन हजार करोड़ रूपयों की रिश्वत ली, दो लाख करोड़ का उसने चूना लगाया। अब अगर ए.राजा को सज़ा भी होती है तो हमारे कानून के तहत उसको अधिकतम सात साल की सज़ा हो सकती है और सात साल बाद वापस आकर वो तीन हजार करोड़ रूपये उसके। हमने इस कानून में ये प्रावधान किया है कि सज़ा सुनाते वक्त ये जज की ज़िम्मेदारी होगी कि जितना उसने सरकारी खज़ाने को चूना लगाया है, यानि उस भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट नेता ने सरकार को जितना चूना लगाया है ये जज की जिम्मेदारी होगी कि वो सारा का सारा पैसा उससे रिकवर करने के लिए, उससे वापस लेने के लिए आदेश किए जाए और उससे रिकवर किए जाए।

जांच के दौरान आरोपी की सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर रोक
जांच के दौरान अगर लोकपाल को ये लगता है कि किसी अधिकारी या नेता के खिलाफ सबूत सख्त हैं, तो लोकपाल उनकी सारी सम्पत्ति, उनकी जायदाद की पूरी लिस्ट बनाएगा और उसका नोटिफिकेशन जारी करेगा। नोटिफिकेशन जारी होने के बाद भ्रष्ट व्यक्ति उस सम्पत्ति को ट्रांसफर नहीं कर सकता। यानि न किसी के नाम कर सकता है और न ही बेच सकता है। 
नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि जैसे ही उसे पता चले तो वह अपनी सारी की सारी सम्पत्ति ट्रांसफर करदे और उसने सरकार को जितना चूना लगाया, उसकी सारी रिकवरी हो न पाए। 

नेताओं, अधिकारीयों और जजों की सम्पत्ति की घोषणा
कानून में ये प्रावधान दिया गया है कि हर अफसर को और हर नेता को हर साल के शुरूआत में अपनी अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर डालना पड़ेगा और अगर बाद में ऐसी कोई सम्पत्ति मिलती है, जिसका ब्यौरा उन्होंने वेबसाइट पर नहीं डाला, तो यह मान लिया जाएगा कि वो सम्पत्ति उन्होंने भ्रष्टाचार के जरिए हासिल की है और उस सम्पत्ति को जब्त करके उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दायर किया जाएगा।

Monday, April 25, 2011

आम आदमी की शिकायतों का समाधान


हर विभाग में सिटीज़न चार्टर:
एक आम आदमी जब किसी सरकारी दफ्तर में जाता है, उसे राशन कार्ड बनवाना है, उसे पासपोर्ट बनवाना है, उसे विधवा पेंशन लेनी है, उस से रिश्वत मांगी जाती है और अगर वो रिश्वत नहीं देता तो उसका काम नहीं किया जाता। जन लोकपाल बिल के अन्दर ऐसे लोगों को भी सहायता प्रदान करने की बात कही गई है। इस कानून के मुताबिक हर विभाग को एक सिटीज़न्स चार्टर बनाना पडे़गा। उस सिटीज़न्स चार्टर में ये लिखना पड़ेगा कि वो विभाग कौन सा काम कितने दिन में करेगा, कौन ऑफिसर करेगा, जैसे ड्राईविंग लाईसेंस कौन अपफसर बनाएगा, कितने दिन में बनाएगा, राशन कार्ड कौन ऑफिसर बनाएगा, कितने दिन में बनाएगा, विधवा पेंशन कौन ऑफिसर बनाएगा कितने दिनों में बनाएगा...। इसकी लिस्ट हर विभाग को जारी करनी पड़ेगी।

सिटीज़न चार्टर का पालन विभाग के मुखिया की ज़िम्मेदारी
कोई भी नागरिक अगर उसको कोई काम करवाना है तो वो नागरिक उस विभाग में उस अफसर के पास जाएगा अपना काम करवाने के लिए, अगर वो अधिकारी उतने दिनों में काम नहीं करता तो फिर ये नागरिक हैड ऑफ द डिपार्टमेण्ट को शिकायत करेगा हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट को जन शिकायत अधिकारी नोटिफाई किया जायेगा। हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट का यह काम होगी कि अगले 30 दिन के अन्दर उस काम को कराए। 

विभाग का मुखिया काम न करे तो लोकपाल के विजिलेंस अफसर को शिकायत
विभाग का मुखिया भी अगर काम नहीं कराता तो नागरिक लोकपाल या लोकायुक्त में जा कर शिकायत कर सकता है। लोकपाल का हर ज़िले के अन्दर एक न एक विजिलेंस अफसर जरूर नियुक्त होगा, लोकायुक्त का हर ब्लॉक के अन्दर एक न एक विजिलेंस अफसर जरूर नियुक्त होगा। नागरिक अपने इलाके के विजिलेंस अफसर के पास जा कर शिकायत करेगा, विजिलेंस अफसर के पास जब शिकायत जायेगी तो यह मान लिया जायेगा कि यह हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट ने और उस ऑफिसर ने भ्रष्टाचार की उम्मीद में, रिश्वतखोरी की उम्मीद में यह काम नहीं किया। ये मान लिया जाएगा। 

लोकपाल के विजिलेंस ऑफिसर की ज़िम्मेदारी 
जनलोकपाल या लोकायुक्त के विजिलेंस अफसर को तीन काम करने पड़ेंगे- 
  1. नागरिक का काम 30 दिन में करना होगा, 
  2. हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट और उस अफसर के ऊपर पैनल्टी लगाएगा, जो उनकी तनख्वाह से काट कर नागरिक को मुआवज़े के रूप में दी जायेगी। 
  3. विभाग के अधिकारी और हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला शुरू किया जायेगा, तहकीकात शुरू की जायेगी और भ्रष्टाचार की कार्यवाही इन दोनों के खिलाफ की जायेगी. ये काम विजिलेंस अफसर को करना होगा। 

इससे हमें यह उम्मीद है कि अगर हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट के खिलाफ 3-4 पैनल्टी भी लग गई या 3-4 केस भी भ्रष्टाचार के लग गये तो वो अपने पूरे डिपार्टमेण्ट को बुलाकर कहेगा कि आगे से एक भी ऐसी शिकायत नहीं आनी चाहिए। इससे हमें ये लगता है कि आम आदमी के लेवल पर भी लोगों को तेज़ी से राहत मिलनी चालू हो जाएगी।

Sunday, April 24, 2011

क्या जनलोकपाल भ्रष्ट नहीं होगा?


कुछ लोगों का यह कहना है कि लोकपाल के अन्दर अगर भ्रष्टाचार हो गया तो उसे कैसे रोका जायेगा? यह बहुत जायज बात है। इसके लिए कई सारी चीज़े इस कानून में डाली गई है। सबसे पहले तो ये कि लोकपाल के मैम्बर्स का और चैयरमेन का चयन जो किया जाएगा वो कैसे किया जाता है। वो बहुत ही पारदर्शी तरीके से किया जायेगा। 

लोकपाल की नियुक्ति पारदर्शी और जनता की भागीदारी से
जन लोकपाल और जन लोकायुक्त में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस काम के लिए सही लोगों का चयन हो। लोकपाल के चयन की प्रकिया को पारदर्शी और व्यापक आधार वाला बनाया जाएगा। जिसमें लोगों की पूरी भागीदारी होगी। इसके लिए एक चयन समिति बनाई जाएगी। समिति में निम्नलिखित लोग होंगे - 
प्रधानमंत्री, 
लोकसभा में विपक्ष के नेता, 
दो सबसे कम उम्र के सुप्रीम कोर्ट के जज, 
दो सबसे कम उम्र के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, 
भारत के नियन्त्रक महालेखा परीक्षक, और 
मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे। 

चयन समिति भी सही लोगों का चयन करे 
चयन समिति में जितने लोग शामिल हैं वे बहुत बड़े पद वाले लोग हैं, और भ्रष्टाचार के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं। यह सभी लोग बहुत व्यस्त भी रहते हैं। अत: यह भी सम्भव है कि ये अपने मातहत अफसरों के माध्यम से अथवा किसी राजनीतिक दवाब में गलत लोगों को जनलोकपाल बना दें। इसलिए चयन समिति को जनलोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष पद के सम्भावित उम्मीदवारों के नाम देने का काम एक सर्च कमेटी करेगी। 

लोकपाल के लिए योग्य व्यक्तियों की खोज के लिए सर्च कमेटी
चयन समिति योग्य लोगों का चयन उस सूची में करेगी जो उसे सर्च कमेटी द्वारा मुहैया करवाई जाएगी। सर्च कमेटी का काम होगा योग्य और निष्ठावान उम्मीदवारों के नाम चयन समिति को देना। सर्च कमेटी में सबसे पहले पूर्व सीईसी और पूर्व सीएजी में पांच सदस्य चुने जाएंगे। इसमें वो पूर्व सीईसी और पूर्व सीएजी शामिल नहीं होंगे जो दाग़ी हो या किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हों या अब भी किसी सरकारी सेवा में काम कर रहे हों। यह पांच सदस्य बाकी के पांच सदस्य का चयन देश के सम्मानित लोगों में से करेंगे। और इस तरह दस लोगों की सर्च कमेटी बनाई जाएगी। 

सर्च कमेटी का काम और जनता की राय  
सर्च कमेटी विभिन्न सम्मानित लोगों जैसे- सम्पादकों, बार एसोसिएशनों, वाइज़ चांसलरों से या जिनको वो ठीक समझे उनसे सुझाव मांगेगी। इनसे मिले नाम और सुझाव वेबसाईट पर डाले जाएंगे। जिस पर जनता की राय ली जाएगी। इसके बाद सर्च कमेटी की मीटिंग होगी जिसमें आम राय से रिक्त पदों से तिगुनी संख्या में उम्मीदवारों को चुना जाएगा। ये सूची चयन समिति को भेजी जाएगी। जो लोकपाल के लिए सदस्यों का चयन करेगी। सर्च कमेटी और चयन समिति की सभी बैठकों की वीडियों रिकॉर्डिंग होगी। जिसे सार्वजनिक किया जाएगा। इसके बाद जन लोकपाल और जन लोकायुक्त अपने कार्यालय के अधिकारीयों का चयन करेगें। उनकी नियुक्ति करेंगे।

भ्रष्ट लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया
लोकपाल के चयन को पूरी तरह से पारदर्शी और जनता के भागीदारी से किया जा रहा है। अगर लोकपाल भ्रष्ट हो जाता है तो उसको निकालने की कार्यवाही भी बहुत सिम्पल है। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत करेगा, सुप्रीम कोर्ट को हर शिकायत को सुनना पड़ेगा। पहली सुनवाई में अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि पहली नज़र में मामला बनता है तो सुप्रीम कोर्ट एक जांच बैठाएगी, तीन महीने में जांच पूरी होनी होगी और अगर जांच में कोई सबूत मिलता हैं तो सुप्रीम कोर्ट उस मेम्बर को निकालने के लिए राष्ट्रपति को लिखेगा और राष्ट्रपति को उस मैम्बर या चैयरमेन को निकालना पड़ेगा।

Saturday, April 23, 2011

क्या जन लोकपाल दफ्तर में भ्रष्टाचार नहीं होगा?


दो महीने में सख्त कार्रवाई
अगर लोकपाल या लोकायुक्त के किसी स्टाफ के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार की शिकायत आती है तो उस शिकायत को लोकपाल में किया जायेगा और उसके ऊपर एक महीने में जांच पूरी होगी और अगर जांच के दौरान उस स्टाफ मैम्बर के खिलाफ अगर कोई सबूत मिलता है तो उस स्टाफ को अगले एक महीने में नौकरी से सीधे निकाल दिया जायेगा ताकि वो जांच को बेईमानी से न करे।

कामकाज पारदर्शी होगा
लोकपाल के अन्दर की काम-काज की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने के लिये इसमें लिखा गया है। जब जांच चल रही होगी तब जांच से सम्बंधित सारे दस्तावेज़ भी पारदर्शी होने चाहिए। लेकिन ऐसे दस्तावेज़ जिनका सार्वजनिक होना जांच में बाधा पहुंचा सकता है, उन्हें तब तक सार्वजनिक नहीं किया जाएगा जब तक कि लोकपाल ऐसा समझता है। लेकिन जांच पूरी होने के बाद किसी भी केस में सारे दस्तावेज़ उस जांच से सम्बंधित वेबसाइट में डालने जरूरी होंगे। ताकि जनता ये देख सकें कि इस जांच में हेरा फेरी तो नहीं हुई। 
दूसरी चीज, हर महीने लोकपाल / लोकायुक्त को अपनी वेबसाइट पर लिखना पड़ेगा कि किस-किस की शिकायतें आईं, किस-किस के खिलाफ आई मोटे-मोटे तौर पर शिकायत क्या थी, उस पर क्या कार्यवाई की गई, कितनी पेण्डिंग है, कितने बन्द कर दी गई, कितने में मुकदमें दायर किये गये, कितनों को नौकरी से निकाल दिया गया या क्या सज़ा दी गई ये सारी बातें लोकपाल / लोकायुक्त को अपनी वेबसाइट पर रखनी होंगी।

शिकायतों की सुनवाई जरूरी 
कई बार देखने में आया कि जांच ऐजेंसी के अधिकारी शिकायतों पर कार्यवाही नहीं करते और सेटिंग करके जांच को बन्द कर देते है। और जो शिकायतकर्ता है उसको कुछ भी नहीं बताया जाता कि जांच का क्या हुआ। इसीलिए यहां के कानून में यह प्रावधान डाला गया है कि किसी भी जांच को बिना शिकायतकर्ता को बताए बन्द नहीं किया जायेगा। हर जांच को बन्द करने के पहले शिकायतकर्ता की सुनवाई की जायेगी और अगर जांच बन्द की जाती है तो उस जांच से सम्बंधित सारे कागज़ात खुले पब्लिक में वेबसाईट पर डाल दिये जायेंगे ताकि सब लोग देख सकें कि जांच ठीक हुई है या नहीं।

Wednesday, April 13, 2011

आम शिकायतें और जन लोकपाल


आम आदमी की शिकायत, मसलन अगर वह दफ्तर में जाता है और उसका राशन कार्ड नहीं बनवाया जाता है और उससे रिश्वत मांगी जाती है, उसका इंकम टैक्स का रिफण्ड नहीं दिया जाता, गरीब महिला की विधवा पेंशन नहीं दी जाती, उससे रिश्वत मांगी जाती है। ऐसी शिकायतों के ऊपर कार्रवाई करने की पावर लोकपाल के दायरे में आनी चाहिए या नहीं आनी चाहिए? कई लोगों का कहना है कि इस तरह कि शिकायतों को लोकपाल के दायरे में लाया गया तो ऐसी लाखों शिकायतों लोकपाल में आ जायेगी और लोकपाल की पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी। 

हमारा ये मानना है कि ये बाते बिल्कुल गलत हैं क्योंकि हमने जो व्यवस्था लोकपाल कानून के अन्दर की है वो ये है कि पहले उस विभाग का एक अधिकारी काम करेगा अगर वो काम नहीं करता तो वो शिकायत हैड ऑफ द डिपार्टमेण्ट के पास जाएगी। वो भी काम नहीं करता तो लोकपाल के विजिलेंस अफसर के पास ये पावर होगी कि वो इन दोनों अफसरों की तन्ख्वाह काटे और वो आपको मुआवज़े के रूप में दे और इनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दायर करें।

अगर तीन चार मुकदमें भी हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट के खिलाफ दायर हो गए तो हमें लगता है कि इनकी जवाबदेही तय होगी, जो आज तक आजादी के बाद इनके एक भी केस में जवाबदेही तय नहीं हुई है। अगर दिन-ब-दिन इनकी जवाबदेही होनी चालू हो गई तो पूरी की पूरी व्यवस्था दुरूस्त हो जायेगी। हमारा तो ये मानना है कि लाखों शिकायतें आने की बजाय शिकायतें आनी बिल्कुल बन्द हो जायेगी, लेकिन मान लीजिए लाखों शिकायते आ भी जाती हैं तब भी पूरी लोकपाल की व्यवस्था नहीं चरमरायेगी। एक डिस्ट्रिक का एक विजिलेंस हो सकता है कि उसके पास लाखों शिकायतें आ जाए तो हमने लोकपाल को ये पावर दी है कि अगर कहीं पर उसे ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत है तो वह ज्यादा कर्मचारियों को तैनात कर सकता है। 4, 5, 6, 10 नये अफसर लगा सकता है ताकि जनता के शिकायतों का जल्दी से निपटारा किया जा सके। 

आज 62 साल की आजादी के बाद भी अगर हम ये कहें की हम लोगों के लाखों शिकायतों का बन्दोवस्त नहीं कर सकते उनका निपटारा नहीं कर सकते तो हमें लगता है कि जनता इस आन्दोलन के साथ नहीं जुड़ेगी। जो लाखों की संख्या में जनता इस आन्दोलन के साथ नहीं जुड़ेगी। जो लाखों की संख्या में जनता इस आन्दोलन मे जुड़ी है वो अपनी समस्याओं के निवारण की उम्मीद को लेकर जुड़ी है। जो दिन पर दिन वो जनता जो जाती है, उनको गालियां सुनने को मिलती है उनसे रिश्वत मांगी जाती है। इसका भी निवारण जन लोकपाल बिल के अन्दर हो। तो हमें ये लगता है कि अगर जनता की लाखों शिकायतें है तो उसके लिए हज़ारों अफसर की नियुक्ति करनी पड़े तो वो सरकार को करनी चाहिए। उसको अब दरकिनार नहीं किया जा सकता। आपको ये बताना होगा क्या जनता की शिकायतों को जन लोकपाल के दायरे में लाया जाए या नहीं लाया जाए।

कुछ लोगों का ये कहना है कि लोकपाल केवल बड़े-बड़े मामलों की जांच करे, 2-जी स्पेक्ट्रम की जांच करे, कॉमनवेल्थ खेलों की जांच करे, वह आम आदमी की राशन पानी की बात न करे, वह पंचायतों हो रहे भ्रष्टाचार की बात न करे, आप के घर के सामने की सड़क में हो रहे भ्रष्टाचार की बात न करे। आप क्या चाहते हैं? क्या आप ऐसा लोकपाल चाहते हैं? क्या आप ऐसा लोकपाल चाहते है? या आप ऐसा लोकपाल चाहते है जो छोटा भ्रष्टाचार हो या बड़ा भ्रष्टाचार हो हर तरह की भ्रष्टाचार की बात करे। उनका लोगों का ये कहना है कि अगर हर तरह के भ्रष्टाचार की बात लोकपाल करेगा तो इसकी व्यवस्था चरमरा जायेगी, हमें ऐसा नहीं लगता। हमने इसके बारे में कैल्कुलेशन किए हैं और हमारा ये मानना है कि अगर शुरू में ज्यादा अपफसरों की जरूरत पड़े तो ज्यादा अपफसरों को लोकपाल में तैनात करके भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त से सख्त सज़ा दी जाए। दो-तीन साल में आप यह देखेंगे कि भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। और उसके बाद आपको कम लोगों की जरूरत पड़ेगी जन लोकपाल के अन्दर। भ्रष्टाचार के मामलें कम होने चालू हो जाएगे।

Tuesday, April 12, 2011

सीबीआई, सीवीसी और जन लोकपाल


हमारे देश में सरकार में ढेरों जांच ऐजेंसी बना ली है। सीवीसी, सीबीआई, डिपार्टमेण्टल विजिलेंस, एण्टी करप्शन ब्रांच, स्टेट विजिलेंस हर ऐजेंसी के अन्दर कुछ कमी छोड़ दी गई है, जिससे वो ऐजेंसी बेकार हो गई है और सबसे बड़ी बात ये है कि सारी की सारी ऐजेंसी सरकार के अण्डर में आती है। उन्हीं लोगों के अण्डर में आती है जिन्होंने चोरी कर रखी है, उन्हीं लोगों के अण्डर में आती है भ्रष्टाचार कर रखा है, उन्हीं लोगों के अण्डर में आती है जिनके खिलाफ इन जांच ऐजेंसी को जांच करनी है जो ये सीधी सीधी बात है कि यह जाँच एजेंसी अपना काम नहीं कर पाती। हमारा कहना ये है कि ये सारी जांच ऐजेंसी की हमें कोई जरूरत नहीं है। हमारा देश इनके ऊपर इतना पैसा बर्बाद कर रहा है। इसकी कोई जरूरत नहीं है। इन सारी जांच ऐजेंसियों को केन्द्र स्तर पर विलय करके लोकपाल के अण्डर में लाया जाए और राज्य स्तर विलय करके इनको लोकायुक्त के अण्डर में लाया जाये।

सीबीआई, सीवीसी का जन लोकपाल बिल में विलय
कुछ लोगों का कहना है कि आप सीबीआई, सीवीसी, डिपार्टमेण्टल विजिलेंस इन सारी ऐजेंसिस को एक साथ इसके अन्दर क्यों मर्ज रहे हैं? सीबीआई को रहने दीजिए काम करने दीजिए, सीवीसी को काम करने दीजिए। आप अगर लोकपाल के लिए अलग से अफसरों की तैनाती कर दीजिए। 

कुछ लोगों का कहना है सीबीआई इतनी बुरी भी तो नहीं है, सीवीसी आखिर इतनी बुरी भी तो नहीं है। हमें ये सब बातें सुनकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है। ये अचानक सीबीआई इतनी अच्छी कब से लगने लगी? एक भी केस सीबीआई ने ऐसा किया हो जो बिना कोर्ट की मॉनिटरिंग के ठीक ठाक किया हो? सीबीआई सीधे-सीधे भ्रष्ट, चोरों और डाकुओं के अण्डर में काम करती है। और हम यह उम्मीद करें की वो चोरों और डाकुओं के खिलाफ एक्शन लेगी। ऐसा कतई नहीं हो सकता। सीबीआई के अन्दर पैसा हम फूंकते रहें, उनके कर्मचारियों को तनख्वाह देते रहें और सीबीआई बैठकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती रहे क्या हमें ऐसे सीबीआई की जरूरत है? क्या हमें सीवीसी की जरूरत है? क्या हमें ऐसे डिपार्टमेण्टल विजिलेंस की जरूरत है?

एक तरफ तो हम इन ऐजेंसिस को भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए काम करने की छूट दे रहें हैं और दूसरी तरफ ये कहें कि लोकपाल को और कर्मचारी दे दो और नई पोस्ट क्रिएट कर दो। हमें ये लगता है कि ये बेमानी बातें हैं। जो ऐजेंसिस आज काम नहीं कर रहीं हैं उनको बन्द करके उनके सारे कर्मचारियों को काम करने के लिए लोकपाल में डाला जाए। जो कर्मचारी भ्रष्टाचार करे उसे नौकरी से निकाल दिया जाए, जो ठीक से काम न करे उसको काम से निकाल दिया जाए, जो काम करे उनको लोकपाल के अण्डर नियुक्त कर दिया जाए।

Monday, April 11, 2011

न्यायपालिका और जन लोकपाल


न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच
हमारे देश की न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार काफी चरम सीमा पर पहुंच गया है, आए दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं कि फलां-फलां जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारी पूरी की पूरी व्यवस्था में जजों के भ्रष्टाचार को जाँच करने के लिए और उनके ऊपर मुकदमा चलाने के लिए कोई भी स्वतन्त्र ऐजेंसी नहीं है। जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की बात भी जन लोकपाल बिल में लिखी गई है। 

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नियन्त्रण की वर्तमान व्यवस्था 
वर्तमान व्यवस्था के मुताबिक अगर किसी जज के भ्रष्टाचार के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज करनी है तो चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया से इजाज़त लेनी पड़ती है। लेकिन जनलोकपाल कानून में लिखा है कि अब चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया से इजाज़त नहीं लेनी होगी, क्योंकि अभी तक का इतिहास यह बताता है कि जब-जब चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया से इजाज़त मांगी गई, तब-तब उन्होंने भ्रष्ट जजों के खिलाफ इजाज़त देने से मना कर दिया। 

कई लोगों का ये मानना है कि भ्रष्ट जजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की पावर लोकपाल को नहीं दी जाए. उनका मानना है कि आज का जो सिस्टम है कि चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया ही भ्रष्ट जजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की परमिशन देते है, यही सिस्टम चालू रखा जाए। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिस्टम ठीक है? क्या इससे न्याय व्यवस्था के अन्दर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है? या ये भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है?

जनलोकपाल कानून के बाद
किसी जज के भ्रष्टाचार की जांच करने की इजाज़त और दोषी पाए जाने पर उसके खिलाफ मुकदमा शुरू करने की इजाज़त लोकपाल की सात सदस्यीय बैंच देगी। जनलोकपाल बिल में सुझाव दिया है कि भ्रष्ट जज के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज करने के पहले देश के मुख्य न्यायधीश की जगह लोकपाल के सात सदस्यों (जिसमें कानूनी पृष्ठभूमि के लोग बहुतायत में हों), की बैंच इस बारे में निर्णय लें और खुले में इसकी सुनवाई की जायेगी ताकि पूरी दुनिया को ये पता चल सके कि इजाज़त ठीक दी गई या गलत दी गई।

न्यायपालिका को लेकर भ्रम 
ड्राफ्टिंग समिति के अन्दर अब न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार के अहम मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई है, मीडिया में कुछ जगह ऐसा छप रहा है कि उच्च न्याय-व्यवस्था को लोकपाल के दायरे में लाया जाएगा। इससे एक भ्रम पैदा होता है कि न्याय व्यवस्था की स्वतन्त्रता को खतरा पैदा होगा।

भ्रष्ट जजों को चिन्हित करके उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से हमारी न्याय व्यवस्था की छवि और उसकी स्वतन्त्रता बढ़ेगी। यदि उनके नामों को छिपाकर रखा गया तो ये गन्दी मछली की तरह सारे तालाब को गन्दा कर देंगे। कुछ भ्रष्ट जजों को संरक्षण देने से तो हमारी न्याय व्यवस्था की स्वतन्त्रता और खतरे में पड़ जाएगी। 
संयुक्त लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग समिति की तीसरी बैठक में श्री पी. चिदम्बरम ने कहा कि देश के दो पूर्व न्यायधीश जनलोकपाल बिल के इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। उनका इशारा जस्टिस वेंकटचेलैया और जस्टिस जे.एस. वर्मा की तरफ था। 

जस्टिस वेंकटचेलैया तो स्वयं खुद इस गलत प्रक्रिया के भुक्त भोगी हैं। जब वे देश के प्रधन न्यायधीश थे तो खुद श्री पी. चिदम्बरम ने उनसे जस्टिस अजीत सेन गुप्ता के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज करने की इजाज़त मांगी थी जो उन्होंने नहीं दी थी। सबूतों की परिपक्वता का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिटायर होने के अगले ही दिन जस्टिस अजीत सेन गुप्ता के घर पर सीबीआई के छापे पड़ गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे सबूत होने के बावजूद उनके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करने की इजाज़त नहीं दी गई थी। इसीलिए अब जनता की उम्मीद है कि जो प्रणाली आज तक न्याय-व्यवस्था में भ्रष्टाचार को संरक्षण देती आई है, सब मिलकर उसे बदल दें।

देश इस वक्त ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ जहां चारों ओर भ्रष्टाचार, भारत के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है, तो दूसरी तरफ जनता के संगठन और आन्दोलन ने आशा की एक नई किरण जगा दी है। इस ऐतिहासिक मौके पर यदि न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को छोड़ दिया जाएगा तो देश हम सबको कभी माफ नहीं करेगा।

जस्टिस वेंकट चेलैया ने एक न्यायिक सुधार बिल का मसौदा तैयार किया है और वे चाहते हैं कि न्याय-व्यवस्था के भ्रष्टाचार की बातें उस कानून के तहत लाई जाएं। उनका यह सुझाव बहुत अच्छा है। पर इनके द्वारा बनाए गए बिल का मसौदा अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है। अभी तो उस पर काफी काम होना बाकी है। 

कुछ लोगों ने कहा है कि लोकपाल के दायरे में न्याय-व्यवस्था के भ्रष्टाचार को लाने से उनके काम का बोझ कई गुना बढ जाएगा। यह लोगों को भ्रमित करने वाली बात है अभी देश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को मिलाकर कुल करीब 1000 जज हैं। एक अवकाशप्राप्त प्रधन न्यायाधीश  ने एक बार कहा था कि उच्च न्याय व्यवस्था में करीब 20 प्रतिशत जज भ्रष्ट हैं। अगर यह मान भी लिया जाए कि इन सबके खिलाफ एक साथ शिकायतें आ जाएंगी तो करीब 200 शिकायतें ही आएंगी। इतने थोड़े से काम से लोकपाल की व्यवस्था चरमराने वाली नहीं है। 

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जजों की परिस्थितियों को जज ही समझते हैं। इसलिए उनके भ्रष्टाचार के बारे में निर्णय लेने के अधिकार जजों को ही दिए जाने चाहिए। यह बात सरासर गलत है। एक जज अगर रिश्वत लेता है तो इसमें ऐसी कौन सी समझने या न समझने वाली बात है। रिश्वत लेना तो गलत है ही। इस तरह तो हमारे नेतागण भी कहेंगे कि नेताओं के भ्रष्टाचार के बारे में केवल नेता ही निर्णय लेंगे, पुलिस विभाग वाले कहेंगे कि पुलिस विभाग के अधिकारी ही अपने बंधुओं के भ्रष्टाचार के बारे में निर्णय लेंगे। इस तर्क के पीछे कहीं न अपनी बिरादरी के लोगों को बचाने की मंशा नज़र आती है। ऐसे तर्कों से हमें बचना है।

Sunday, April 10, 2011

प्रधानमंत्री और जन लोकपाल


जो भ्रांतियां इस कानून के खिलाफ फैलाई जा रही हैं, उसमें एक चीज यह कही जा रही है कि प्रधानमंत्री को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाये। प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने की पावर लोकपाल को न दिया जाए। 

ये कहा जा रहा है कि अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकपाल जांच करेगा तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम बदनाम होगा। ये कहा जा रहा है कि अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकपाल जांच करेगा तो हमारे जनतन्त्र का खतरा पैदा हो सकता है।

सवाल ये है कि अगर हमारे देश में कोई भ्रष्ट प्रधानमंत्री है तो इससे बड़ा भारत के लिए धब्बा कोई नहीं हो सकता। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के ऊपर अगर भ्रष्ट प्रधानमंत्री के खिलाफ भारत सख्त कार्रवाई करता है तो भारत के प्रतिष्ठा बढ़ेगी। लेकिन उसके भ्रष्टाचार को भारत सहन करता है तो भारत की बदनामी चारों तरफ होगी। 

दूसरी बात, एक भ्रष्ट प्रधानमंत्री हमारे देश के लिए, हमारे जनतन्त्र के लिए, हमारी सिक्योरिटी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है। तो सबसे बड़ा खतरा क्या है? भ्रष्ट प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार को नहीं रोकना और उसके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच न होना अथवा भ्रष्टाचार को पकड़ के प्रधानमंत्री के खिलाफ एक्शन लिया जाना?