Thursday, September 22, 2011

अन्ना के गांव में, अन्ना के साथ - 4


रालेगन सिद्धि का लोकल में ग्लोबल

रालेगन सिद्धि गांव 'लोकल में ग्लोबल' का अनूठा संगम बन गया है. पाकिस्तान के कुछ बन्धु यहां आकर अन्ना से पूरे दक्षिण एशिया के संकट निवारक बनने का आह्वावान  करते हैं तो 25 साल से आस्ट्रेलिया में बसे व्यापारी जसबीर अहलूवालिया अन्ना के दर्शन करने के लिए अपने परिवार के साथ घंटों  इंतज़ार करते हैं और फिर 200-300 की भीड़ के बीच अन्ना को देख-सुनकर, भाव विभोर होकर नमस्ते करते हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत में जिस समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अन्ना के आन्दोलन में वैश्विक परिवर्तन की संभावनाएं बता रहे थे, अन्ना हज़ारे उस वक्त रालेगन सिद्धि के अपने गांववासियों के साथ ग्राम सभा, जिसे यहां आधिकारिक रूप से 'रालेगन परिवार' कहा जाता है, में बैठे गांव के मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे. अन्ना के '8 बाई ८' के मशहूर कमरे के सामने यादव बाबा के मंदिर में यह सभा चल रही है. 2 अक्टूबर को पूरा रालेगन परिवार मिलकर 'गांव का जन्मदिन' मनाता है. गांव का सबसे बड़ा समारोह यही होता है. इस बार तो और भी बड़ा होने की तैयारी है क्योंकि पिछले जन्म दिन और इस बार के जन्म दिन के बीच गांव की ख्याति ने एक बड़ा रास्ता तय कर लिया है. ग्राम सभा की बैठक में अन्ना उसकी तैयारी की एक एक खबर बारीकी से सुनते हैं. बीच बीच में सुझाव देते हैं. गांव वाले 2 अक्टूबर को विशेष अतिथि के रूप में दिल्ली से टीम अन्ना के साथियों को बुलाना चाहते हैं. उस पर भी चर्चा होती है. अहमद नगर के एक कलाकार प्रमोद कांबले द्वारा उपहार में दी गई गांधी की मूर्ति मंदिर के प्रांगण में किस जगह लगाई जानी है, इस पर भी 80-90 लोगों के बीच जमकर चर्चा होती है. अन्ना बताते हैं कि गांधी की मूर्ति के साथ साथ भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के चित्र भी लगाए जाएं और उसके नीचे लता दीदी के गाने की लाइन 'ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी' भी लिखी जाए. देर शाम तीन घंटे तक चली ग्राम सभा में हंसते-बात करते कई प्रस्ताव पास होते हैं, 2 अक्टूबर के समारोह के लिए सवा लाख का चन्दा जमा होता है..

अन्ना के गांव में, अन्ना के साथ - 3

रालेगन के  सिद्ध ने दुनिया के सामने स्पष्ट कर दिया है कि जब भी कोई समाज या मुल्क सही रास्ते पर चलना चाहेगा तो उसे गांधी के दरवाज़े से ही अंदर जाना होगा, और कोई रास्ता कारगर नहीं हो सकता.

अन्ना के गांव में रहकर, दुनिया में बदलाव की कसमसाहट को महसूस किया जा सकता है. बदलाव चाहिए यह तय हो चुका है. बदलाव के दो रास्ते साफ साफ दिखते हैं. या कहें कि दो मॉडल दुनिया के सामने आए हैं. दोनों  का आधार सत्ता के प्रति आक्रोश है. एक वह है जो ट्यूनिशिया,  लीबिया, मिश्र आदि देशों में शुरू हुआ है. यह रास्ता व्यक्ति विरोध, तोड़फोड़, हिंसा से होता हुआ अंततः हथियारों के बाज़ार की ओर बढ़ता दिखाई देता है. दूसरा रास्ता गांधी का रास्ता है. जो शान्ति, अहिंसा से होते हुए प्रकृति की ओर ले जाता है.


Tuesday, September 20, 2011

अन्ना के गांव में, अन्ना के साथ - 2


रालेगन के पद्मावती मंदिर में सैकड़ों साल पुराना यह वटवृक्ष भी यहाँ आने वालों के लिए कौतुहल का विषय होता है. कोई इसके आकार के आगे खुद को बौना महसूस करने लगता है तो कोई इसकी उम्र के आकलन में उलझ जाता है - २०० साल, नहीं ३००-४०० साल से कम नहीं....

पुणे से आई ४०० छात्रों की टोली की एक लड़की को इसे देखकर अवतार फिल्म के 'स्प्रिचुअल ट्री' की याद आ गई. रालेगन के अवतार से मिलने आई लड़की फ़िल्मी अवतार में खो गई. अन्ना के तप के सहयोगी-साक्षी रहे इस  मौन तपस्वी की छांव में अब अन्ना देश की आत्मा को ज़िंदा करने में लगे हैं.

Monday, September 19, 2011

अन्ना के गांव में, अन्ना के साथ - 1

भारतीय लोकतंत्र के लिए तीर्थस्थली बन चुके रालेगन गांव के अपने कमरे में अन्ना के साथ लोकपाल की राजनीति पर चर्चा चल रही है. अन्ना गंभीर होकर कुछ बात कह रहे थे कि तभी एक पेंटर कमरे में दाखिल होता है. भ्रष्टाचार की राजनीति के रंग फीका करने में जुटे अन्ना अचानक रालेगन सिद्धि गांव के मंदिर की दीवारों के लिए चमकीला रंग चुनने लगते हैं. उतनी ही गंभीरता से. नवरात्रि के पहले गांव के मंदिर की दीवारों का रंग चोखा देखना चाहते हैं. दीवारों के बाहर के लिए पेंटर के एक प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर देते हैं कि यह तो सरकारी बिल्डिंग जैसा लगेगा. अन्ना को बाहर के लिए हल्का क्रीम पसंद आता है. अंदर के लिए रंगों के कार्ड में से कोई शेड नहीं जंचता तो एक चटख लाल की ओर इशारा करके बता देते हैं कि थोड़ा हल्का करके इसे लगा दो. लेकिन पेंटर बाबू के हाव भाव से आश्वस्त नहीं होते तो उसे हिदायत देते हैं कि पहले दीवार पर इसका सैंपल दिखाना. जाते जाते पेंटर बाबू के मोटे पेट पर व्यंग भी कर देते हैं, “अरे कौन  सी चक्की का आटा खा रहे हो आजकल“.