Thursday, September 22, 2011

अन्ना के गांव में, अन्ना के साथ - 3

रालेगन के  सिद्ध ने दुनिया के सामने स्पष्ट कर दिया है कि जब भी कोई समाज या मुल्क सही रास्ते पर चलना चाहेगा तो उसे गांधी के दरवाज़े से ही अंदर जाना होगा, और कोई रास्ता कारगर नहीं हो सकता.

अन्ना के गांव में रहकर, दुनिया में बदलाव की कसमसाहट को महसूस किया जा सकता है. बदलाव चाहिए यह तय हो चुका है. बदलाव के दो रास्ते साफ साफ दिखते हैं. या कहें कि दो मॉडल दुनिया के सामने आए हैं. दोनों  का आधार सत्ता के प्रति आक्रोश है. एक वह है जो ट्यूनिशिया,  लीबिया, मिश्र आदि देशों में शुरू हुआ है. यह रास्ता व्यक्ति विरोध, तोड़फोड़, हिंसा से होता हुआ अंततः हथियारों के बाज़ार की ओर बढ़ता दिखाई देता है. दूसरा रास्ता गांधी का रास्ता है. जो शान्ति, अहिंसा से होते हुए प्रकृति की ओर ले जाता है.


अन्ना से बातचीत में मुंबई का जि़क्र आता है जहां के बारे में अन्ना कहते हैं, “वहां समुद्र को बुझाकर बिल्डिंगे बनाई जा रही हैं, एक दिन आएगा कि समुद्र भी मुंबई को अपने पेट में ले लेगा“. चिंता प्रकृति के दोहन को लेकर है. रालेगन में अन्ना ने यही मॉडल दिया है कि प्रकृति को सहेज कर कैसे सुखी हुआ जा सकता है.

अन्ना की चिंता सारी दुनिया की चिंता है. “सारी दुनिया में प्रकृति का दोहन हो रहा है. कहीं पेट्रोल खत्म हो रहा है तो कहीं पानी. गुजरात के मेहसाणा मे पानी 2000 फीट नीचे पहुंच चुका है, राजस्थान में 2200 फीट नीचे है.... ये सब प्रकृति के ही दोहन से उपजे खतरे हैं“... अन्ना  इनका समाधान अन्ना गांधी की एक लाईन को दोहरा कर बताते रहते हैं. “महात्मा गांधी ने कहा था - देश बदलना है तो गांव को बदलो"   अन्ना इसमें जोड़ते हैं, “शहर की अर्थव्यवस्था बदलने से देश नहीं सुधर सकता, इसके लिए गांव की अर्थव्यवस्था को सुधारना पड़ेगा". कैसे? अन्ना के  पास इसका बड़ा शानदार तर्क है, “एक इंडस्ट्री लगाने के लिए सरकार करोड़ों खर्च करती है, ज़मीन छीनती है, सडकों पर खर्च करती है, बिजली पर खर्च करती है...और रोज़गार मिलता है मुश्किल से 2000 लोगों को लेकिन अगर इसका एक छोटा अंश भी किसी गांव पर सही से खर्च कर दिया तो प्रकृति को बचाए रखते हुए 2000 लोग खुद को रोज़गार देकर खुशहाल हो उठेंगे“....

इसी बातचीत के बीच पाकिस्तान से प्रतिनिधिमंडल आता है. पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश    नसीर असलम ज़ाहिद, श्रम अनुसंधान के सीनियर अफसर करामत अली और कुछ अन्य साथी अन्ना से मिलते हैं. पाकिस्तानी मित्र बताते हैं “आज हमारे मुल्क में किसी ने हिन्दुस्तान देखा हो या ना हो पर अन्ना हज़ारे सबके घर में पहुंच गए हैं..“  

बातचीत फिर वहीं आ जाती है. करामत अली साहब ने कहा कि “हमारे यहां गरीबों के लिए पैसे नहीं है और एटम बंम बनाए चले जा रहे हैं.....लोग दुआ मांग रहे हैं कि एक अन्ना हमारे यहां भी पैदा हो जाए.....".  करामत साहब इल्तिज़ा करते हैं, “आपकी आवाज़ पूरी दुनिया में सुनी जा रही है, पूरे दक्षिण एशिया की आवाज़ उठाईए...सिर्फ हिन्दुस्तान की नहीं पूरे दक्षिण एशिया की आवाज़ उठाईए..."

अन्ना का द्रष्टिकोण रालेगन की प्रयोगशाला से निकला है. यह मानवीय है, प्राकृतिक है... इसलिए विश्वव्यापी हो जाता है क्योंकि दुनिया के किसी भी कोने की बात हम करेंगे, वहां दो चीज़ें हमेशा कॉमन रहेंगी, मानव की बात होगी, और शेष प्रकृति के साथ उसके  संबंधों की बात होगी.

पाकिस्तानी साथियों ने अन्ना को पाकिस्तान आने का न्यौता भी दिया. मैंने बाद में पूछा कि “अन्ना क्या आप पाकिस्तान जाना चाहेंगे..?" अन्ना ने एक लाईन में आगे के आन्दोलन की रूपरेखा साफ कर दी..“अभी वहां के लोगों को चाहिए कि आन्दोलन के लिए सड़क पर आएं..मेरे जाने से क्या होगा?" यही सन्देश शायद उन सबके लिए भी है जो देश के कोने कोने से से अन्ना को अपने गांव में, शहर में बुलाने के लिए फोन कर रहे हैं, चिठ्ठियां लिख रहे हैं या खुद यहां आ रहे हैं. 

यही सन्देश बुद्ध ने भी अपने शिष्य आनंद को भी दिया था - "अप्पो दीप:भव:"

2 comments:

  1. धन्यवाद !
    इतनी साधारण पर महान सोच, सरल पर कारगर उपाय से अवगत करने के लिए...
    मुझे पूरा विश्वास है की परिवर्तन आएगा और जल्द ही आएगा !

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  2. परिवर्तन अवस्यमभावी है,, लेकिन कहीं ये परिवर्तन इन तथाकथित देशभक्त नेताओं की वजह से वर्तमान पीढ़ियों के गुजर जाने के बाद न आये.......... | साथ ही हम सभी देशवाशियों को हर समय चौकश निकाहों से इन लुटेरों की करतूत देखनी पड़ेगी.........

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