भारतीय लोकतंत्र के लिए तीर्थस्थली बन चुके रालेगन गांव के अपने कमरे में अन्ना के साथ लोकपाल की राजनीति पर चर्चा चल रही है. अन्ना गंभीर होकर कुछ बात कह रहे थे कि तभी एक पेंटर कमरे में दाखिल होता है.
भ्रष्टाचार की राजनीति के रंग फीका करने में जुटे अन्ना अचानक रालेगन
सिद्धि गांव के मंदिर की दीवारों के लिए चमकीला रंग चुनने लगते हैं. उतनी
ही गंभीरता से. नवरात्रि के पहले गांव के मंदिर की दीवारों का रंग चोखा
देखना चाहते हैं. दीवारों के बाहर के लिए पेंटर के एक प्रस्ताव को यह कहते
हुए खारिज कर देते हैं कि यह तो सरकारी बिल्डिंग जैसा लगेगा. अन्ना को बाहर
के लिए हल्का क्रीम पसंद आता है. अंदर के लिए रंगों के कार्ड में से कोई
शेड नहीं जंचता तो एक चटख लाल की ओर इशारा करके बता देते हैं कि थोड़ा
हल्का करके इसे लगा दो. लेकिन पेंटर बाबू के हाव भाव से आश्वस्त नहीं होते
तो उसे हिदायत देते हैं कि पहले दीवार पर इसका सैंपल दिखाना. जाते जाते
पेंटर बाबू के मोटे पेट पर व्यंग भी कर देते हैं, “अरे कौन सी चक्की का
आटा खा रहे हो आजकल“.
चर्चा वापस लौटती है लेकिन तभी गांव के गेस्ट हाउस में बैड बनवाने के लिए प्लाई वाला आ जाता है. उसके साथ साईज़, क्वालिटी और रेट पर भी उतनी ही बारीकी से मोलभाव करते हैं जितनी बारीकी से प्रणव मुखर्जी के साथ लोकपाल कानून पर बात करते थे. मैं हैरान होकर देखता हूं कि ८ बाई ८ के नाम से मशहूर हो चुके कमरे में बैठे इस शख्स के लिए गांव के मंदिर का रंग भी उतना ही महत्व रखता है जितना लोकतंत्र के मंदिर का. सब कुछ चटख चाहिए. बदनाम हो चुके 'सरकारी स्टाईल' में नहीं. अन्ना को मैं 'गांधी' नहीं 'अन्ना' के रूप में ही देखने में यकीन रखता हूं फिर भी बरबस गांधी के बारे में पढ़े संस्मरण याद आ जाते हैं. मुझे पूरा का पूरा रालेगन गाँव अन्ना के आश्रम की तरह ही दिखाई सेता है. मैं पूछ ही लेता हूं, “अन्ना! गांधी जी के बारे में सुना है कि वे अंग्रेजों से से लोहा लेते लेते, बकरी को चारा भी खुद ही खिलाते थे. अपने सहज भाव में अन्ना जवाब देते हैं, “नहीं, बात गांधी की नहीं है, मजबूती हर काम में चाहिए, नीचे का छोड़ दिया तो ऊपर का क्या फायदा?“. यह शायद आज का गुरूमंत्र था.
कमरे के बाहर मिलने वालों का का तांता लगा है. मिलने आने वालों में पुलिस के आला अधिकारी भी हैं, बीएसएनल के कुछ अधिकारी सपरिवार दर्शन करने आए हैं. नोएडा से एक ग्राम प्रधान अपने परिवार सहित गांव देखने आए हैं, कहते हैं कि अन्ना के दर्षन भी हो जाएं तो सोने पे सुहागा हो जाए. गुजरात से आया एक नौजवान भवेष पटेल मुझे बताता है कि उसने वेबसाईट से लोकपाल का पर्चा लेकर गुजराती में अनुवाद किया है और उसकी 10 हज़ार प्रतियां बंटवा चुका है. मैं पूछता हूं कि कब तक यहाँ रुकेंगे? तो कहता है जाना तो आज रात ही चाहता हूं लेकिन अन्ना से मिले बिना तो मैं अगले 10-12 दिन नहीं जाने वाला. अचानक इन सबकी मुराद पूरी होती है. अन्ना कमरे से बाहर आते निकल कर सबसे मिलते हैं. कमरे के बाजू में सभा स्थल के सामने छात्राओं का एक समूह उन्हें सुनने की उम्मीद में पंक्तिबद्ध बैठा है. अन्ना कमरे से निकलकर सबसे मिलते हुए, छात्राओं की और बढ़ जाते हैं.
सब लोग भाव विभोर होकर अन्ना की बात सुनने लगते हैं. अन्ना लोकपाल और भ्रष्टाचार से लेकर त्याग और शुद्ध आचार तक की बात करते हैं. यह सिलसिला आजकल दिन में करीब 5-6 बार चलता है. हर सभा में 500 से 1000 लोग होते हैं. छुट्टी के दिन आने वालो की संख्या पांच-छह हज़ार तक पहुंचती है. पिछले रविवार को तो दस हज़ार से ज्यादा लोग गाँव में आए. मैं सोचता हूं, क्या लेने आ रहे हैं ये लोग? क्या मिल रहा है इन्हें? विचारों में मिला जवाब उलझा तो वहां खडे दो तीन लोगों से ही जानने की कोशिश करता हूं. लोग बताते हैं, “कुछ नहीं! अन्ना के दर्शन का मतलब महात्मा गांधी के दर्शन ................. हमारा फ़र्ज़ है जी यहां आना.... गांव वालों ने ने भेजा है कि जाओ अन्ना से मिलकर बता आओ कि हमारा पूरा गांव अन्ना के साथ रहेगा.....“.
ये तो पहले दिन के जवाब थे. अभी कई दिन और अन्ना के गांव में हूं. देखना है क्या नये गुरुमंत्र मिलते हैं और क्या नए जवाब. लेकिन रालेगन आने वालों के अलावा हज़ारों और भी भी हैं जो शरीर से तो नहीं नहीं आ पा रहे, लेकिन अपनी चिठ्ठियों के ज़रिए रालेगन के दरबार में दस्तक दे रहे हैं. नीचे के चित्र में आज की डाक लाता डाकिया....
चर्चा वापस लौटती है लेकिन तभी गांव के गेस्ट हाउस में बैड बनवाने के लिए प्लाई वाला आ जाता है. उसके साथ साईज़, क्वालिटी और रेट पर भी उतनी ही बारीकी से मोलभाव करते हैं जितनी बारीकी से प्रणव मुखर्जी के साथ लोकपाल कानून पर बात करते थे. मैं हैरान होकर देखता हूं कि ८ बाई ८ के नाम से मशहूर हो चुके कमरे में बैठे इस शख्स के लिए गांव के मंदिर का रंग भी उतना ही महत्व रखता है जितना लोकतंत्र के मंदिर का. सब कुछ चटख चाहिए. बदनाम हो चुके 'सरकारी स्टाईल' में नहीं. अन्ना को मैं 'गांधी' नहीं 'अन्ना' के रूप में ही देखने में यकीन रखता हूं फिर भी बरबस गांधी के बारे में पढ़े संस्मरण याद आ जाते हैं. मुझे पूरा का पूरा रालेगन गाँव अन्ना के आश्रम की तरह ही दिखाई सेता है. मैं पूछ ही लेता हूं, “अन्ना! गांधी जी के बारे में सुना है कि वे अंग्रेजों से से लोहा लेते लेते, बकरी को चारा भी खुद ही खिलाते थे. अपने सहज भाव में अन्ना जवाब देते हैं, “नहीं, बात गांधी की नहीं है, मजबूती हर काम में चाहिए, नीचे का छोड़ दिया तो ऊपर का क्या फायदा?“. यह शायद आज का गुरूमंत्र था.
कमरे के बाहर मिलने वालों का का तांता लगा है. मिलने आने वालों में पुलिस के आला अधिकारी भी हैं, बीएसएनल के कुछ अधिकारी सपरिवार दर्शन करने आए हैं. नोएडा से एक ग्राम प्रधान अपने परिवार सहित गांव देखने आए हैं, कहते हैं कि अन्ना के दर्षन भी हो जाएं तो सोने पे सुहागा हो जाए. गुजरात से आया एक नौजवान भवेष पटेल मुझे बताता है कि उसने वेबसाईट से लोकपाल का पर्चा लेकर गुजराती में अनुवाद किया है और उसकी 10 हज़ार प्रतियां बंटवा चुका है. मैं पूछता हूं कि कब तक यहाँ रुकेंगे? तो कहता है जाना तो आज रात ही चाहता हूं लेकिन अन्ना से मिले बिना तो मैं अगले 10-12 दिन नहीं जाने वाला. अचानक इन सबकी मुराद पूरी होती है. अन्ना कमरे से बाहर आते निकल कर सबसे मिलते हैं. कमरे के बाजू में सभा स्थल के सामने छात्राओं का एक समूह उन्हें सुनने की उम्मीद में पंक्तिबद्ध बैठा है. अन्ना कमरे से निकलकर सबसे मिलते हुए, छात्राओं की और बढ़ जाते हैं.
सब लोग भाव विभोर होकर अन्ना की बात सुनने लगते हैं. अन्ना लोकपाल और भ्रष्टाचार से लेकर त्याग और शुद्ध आचार तक की बात करते हैं. यह सिलसिला आजकल दिन में करीब 5-6 बार चलता है. हर सभा में 500 से 1000 लोग होते हैं. छुट्टी के दिन आने वालो की संख्या पांच-छह हज़ार तक पहुंचती है. पिछले रविवार को तो दस हज़ार से ज्यादा लोग गाँव में आए. मैं सोचता हूं, क्या लेने आ रहे हैं ये लोग? क्या मिल रहा है इन्हें? विचारों में मिला जवाब उलझा तो वहां खडे दो तीन लोगों से ही जानने की कोशिश करता हूं. लोग बताते हैं, “कुछ नहीं! अन्ना के दर्शन का मतलब महात्मा गांधी के दर्शन ................. हमारा फ़र्ज़ है जी यहां आना.... गांव वालों ने ने भेजा है कि जाओ अन्ना से मिलकर बता आओ कि हमारा पूरा गांव अन्ना के साथ रहेगा.....“.
ये तो पहले दिन के जवाब थे. अभी कई दिन और अन्ना के गांव में हूं. देखना है क्या नये गुरुमंत्र मिलते हैं और क्या नए जवाब. लेकिन रालेगन आने वालों के अलावा हज़ारों और भी भी हैं जो शरीर से तो नहीं नहीं आ पा रहे, लेकिन अपनी चिठ्ठियों के ज़रिए रालेगन के दरबार में दस्तक दे रहे हैं. नीचे के चित्र में आज की डाक लाता डाकिया....
महान लोग कोई अलग से महान काम नहीं करते बल्की आम काम ही महान तरीके से करते है|
ReplyDeleteअमित भटनागर
प्रांतीय संयोजक
राष्ट्रीय युवा संगठन म.प्र.
Anna ji aisi shaksiyat hain jinhone desh ki soyi hui janta ko jagaya hai, aur ye janta jagne k baad phir se sona nahi chahti, janta ko pura vishwas hai ki ab desh jarur balega, isliye janta Anna ji se milne k liye tatper hai. Thanks Sir JI for sharing this with us and i wanted to meet u.
ReplyDeleteKaafi badhiya laga padh kar. Ye baatein sabke paas jaani chahiye.
ReplyDeleteअन्ना को इतने नजदीक से जानकर काफी अच्छा लगा ....धन्यवाद
ReplyDeleteanna ji main aapse apni choti c jindgi milna jarur cahunga
ReplyDeleteमनीष भाई, अन्ना का सबसे बड़ा योगदान सादगी और सच्चाई की शक्ति से जनमानस को पुनः परिचित करवाना ही है. यदि हम लोग एक प्रतिशत भी उनसे सीख लें तो भारत का काया पलट हो जाय. भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन लोकपाल से भी बड़ा हथियार हमारी सादगी साबित हो सकता है.
ReplyDeleteहम लोग, "मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना" का नारा लगाने की जगह अन्ना का अनुकरण करें तो बेहतर.
अन्ना जी की दिनचर्या की संक्षिप्त झांकी दिखाने का धन्यवाद.
Hum jab koi kaam shuru karte hai to bhagwan ke margdarshan ke saath suru karte hai aur jab wo kaam pura hota dikhta hai to mann ek baar mandir jakar hagwan ke darshan karke tahe dil se unka shukriya ada karna chahta hai... Shayad yahi bhawana aaj humare desh ke logo me jagi hai jo Anna ji ke daarshan karne jka rahe hain ya bina gaye bhi tahe dil se unka shukriya aur aabhar vyakt kar rahe hain.... Aaj to har deshwashi ko khush hona chahiye ki jahan log Corruption ke khilaf ek chingari ki umeed chor chuke thhe aaj wahan uske khilaf jwala paida ho chuki hai jo der se hi sahi lekin isko raakh kar ke hi dam legi.... Jai Hind Jai Bharat!!!!
ReplyDeleteबहुत कम मिलता है समय इस भागदौड़ की जिंदगी में...
ReplyDeleteसहारा है की जान पाते हैं इतने नज़दीक से अन्ना को...
स्वार्थ से भरी दुनिया के मन को झकझोर कर...
फिर से काम के प्रति चेताया है...
कि वास्तव में जो हमे चैये था वो तो मिला ही नहीं...
मेरे पास शब्द तो नहीं हैं कुछ लिखने को, कहने को,
ReplyDeleteपर पता नहीं क्यूँ आँखों में आंसू है...
लगता है जैसे मैंने अब तक का जीवन व्यर्थ कर दिया...
ये कितने महान है और कितने साधारण...
और हाँ, मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ मुझे अन्ना से मिलाने के लिए...
साभार,
अन्ना भक्त
Thanks Sir Jee Anna Jee se Milane ke liye........
ReplyDeleteOnly a genuine person like Anna can be involved in such small issues with highest dedication... people who wear mask of greatness loose their ground. Anna is Anna.
ReplyDeleteप्रत्येक कारक पुरूष अपने जीवन काल मे विवाद ग्रस्त अपने अनुयायीयों के कारण रहा है। अनुयायी, व्यक्तित्व का हुआ जाता रहा है," दर्शन के लिये आये है " उसी का नमुना है। आज के वैज्ञानिक विश्लेष्ण व तर्क तथा लाभ मानसिकता से पूत व्यक्ति, प्रमाणित प्रतिभा के अभाव मे अनुयायी अधिक समय तक नहीं रहता। अन्ना जी के उस प्रसंगो को भी चर्चा और जानकारी मे लायें जो मनुष्य के जीवनीय और व्यवहारगत समस्याओं को समाधानित करने के लिये प्रस्तुत करते हैं। आप जो कुछ कर रहे है,अच्छा कर रहें हैं\
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ReplyDeleteहमने एक कदम सही राह में उठाया है ये प्रयास ही हमारी सफलता को सुनिश्चित करता है , जनलोक पाल बिल बना तो इतिहास इस आन्दोलन पर गर्व महसूस करेगा और यदि नहीं तो इसलिए भी की देश वासियों को रिश्वत का विरोध करने की ज़मीनी हिम्मत तो आई ही है ये और बात है की अभी भी एक बड़ा हिस्सा बाकी है जागरूकता के लिए जो हमारे ग्रामीण इलाकों का भारत है
ReplyDeleteआपने इस लेख मेँ गुरुमँत्र की बात की है ,और ये सच भी है। अन्ना की सरल बात मेँ भी गुढ़ मँत्र होता है। इसलिये उनके सान्निध्य का जितना भी फायदा लिया जाये वो भी कम है।
ReplyDeleteअन्ना के करीब रहना भले ही गांधी न हो, पर गांधी के आदर्श की एक बानगी तो है ...उससे कहीं ज्यादा भगत सिंह का जोश और गांधी का सामंजस्य भी....पर उससे भी बड़ी एक गुरुतर जिम्मेदारी तुम पर है मित्र..पत्रकार समाजिक कार्यकर्ता पर...देश भर से मिलने आने वाले लोगों की सोच औऱ सजगता की गूंज को सारे भारत में सो रहे लोगो और बागडोर संभालने वालों के कान में पूरी शक्ति के साथ गूंजाने की, ताकि उन्हें पता चल सके की जनता सोती नहीं है कभी...बंटी नहीं है कभी..बस एक सेनापति ईमानदार होता है तो वो उसकी सत्ता पलटकर उसे जमीन सूंघाने में देर नहीं करती।
ReplyDeleteमहान लोग कोई अलग से महान काम नहीं करते बल्की आम काम ही महान तरीके से करते है|
ReplyDeleteDear Anna ji , i am happy to see u on modern internet technology . but my request to u that why u people not putting in your JANLOKPAL for all politicians & bureaucrats that they should fulfill a bond with all JANLOKPAL conditions & if they violate the bond they should be punished , & that bond should be kept in every JANLOKPAL office , that is the best way to finish co0rruption with root
ReplyDeleteThnx ANNA JI , MAY GOD BLESS U
Anna ji aap such me ek mahan kam kar rahe jise hum aur humari aane wali pidhi yaad karegi kabhi aapse milne ka moka mila to such me wo din meri life ka ek khubsurat din hoga
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