Thursday, June 23, 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल


  • सरकारी लोकपाल कानून में कलेक्टर, पुलिस, राशन, अस्पताल, शिक्षा, सड़क, उद्योग, पंचायत, नगर पालिका, वन विभाग, सिंचाई विभाग, लाईसेंस, पेंशन, रोड़वेज़ जैसे तमाम विभागों के भ्रष्टाचार को जांच से बाहर रखा गया है। 
  • २ जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालें इसके बावजूद चलते रहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री इसकी जाँच से बाहर रहेंगे और मंत्री या अफसरों के खिलाफ जाँच बड़ी मुश्किल से होगी
  • सरकारी लोकपाल कानून के दायरे में किसी ज़िले में केवल केन्द्र सरकार के विभागों के डायरेक्टर रैंक के अधिकारी आएंगे। यानि जिस ज़िले में डाक, रेलवे, इन्कम टैक्स, टेलीकॉम आदि विभाग का कोई दफ्तर यदि हुआ तो लोकपाल केवल उसके सबसे बड़े अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। उसके अलावा केन्द्र या राज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी इस कानून के दायरे में नहीं आएगा। 
  • पूरे देश में यह कानून केन्द्र सरकार के कुल 65000 सीनियर अधिकारियों पर लागू होगा। इसके अलावा पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे। 
  • सरकारी लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार के दोषी के लिए न्यूनतम सज़ा 6 महीने की जेल है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले को (शिकायत गलत पाए जाने पर) मिलने वाली सज़ा दो साल है। 
  • यदि कोई सरकारी कर्मचारी, अपने खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाना चाहेगा तो वकील की फीस व अन्य खर्चे सरकार भरेगी।
  • बईमान, नकारा आदि सरकार के करीबी लोग  लोकपाल बनकर बैठ जायेगे

लोगों के दिमाग से अन्ना को कैसे निकालेगी सरकार

शाम्भवी शर्मा उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहती है. ८ जून को जब अन्ना हजारे के साथ हज़ारों लोग राजघाट पर अनशन पर बैठे तो उसके परिवार ने अपने घर पर ही उपवास किया. शाम्भवी के लिए उपवास एक व्रत था स्वयं से.  इसलिए मां के बार कहने के बाद भी उसने पूरे दिन पानी तक नहीं पीया. क्यों? "क्योंकि मैं अन्ना हजारे के साथ अनशन पर थी, अपने देश के भविष्य के लिए".

कांग्रेस पार्टी के नेता और सरकार अगर अपनी ताकत दिखाएंगे तो १६ अगस्त को अन्ना हजारे और हम सबको जंतर मंतर से खदेड़ सकते हैं. दिल्ली से भगा सकते हैं. जेल में डाल सकते है. यानी हर वह काम कर सकते हैं जिसे वे 'सबक सिखाना' कहते हैं. लेकिन शाम्भवी शर्मा जैसी एक बच्ची के मन से अन्ना और उनके आन्दोलन को कैसे निकालेंगे? और याद रहे शाम्भवी शर्मा अकेली नहीं है. अन्ना हजारे के साथ लाखों हैं. लोकपाल कानून के लिए आन्दोलन में अन्ना के साथ जो लोग जुड़ रहे हैं उनमें से हरेक का जज्बा यही है. इस जज्बे को कैसे निकालेगी यह सरकार और कांग्रेस के नेता.
हमें जंतर मंतर पर जाने से रोक सकते है. लेकिन गाज़ियाबाद के उस व्यापारी को कैसे रोकेंगे जिसने ८ जून को अपनी ही दुकान पर तख्ती लगा ली - " अन्ना के साथ आज मैं भी उपवास पर हूँ". पुलिस की लाठी या अन्ना और उनके साथियों के खिलाफ मुकदमे या फर्जी प्रचार चलाकर इसे नहीं रोका जा सकता. सरकार इसे अगर रोकना चाहती है तो इसका एक ही उपाय है. अन्ना जैसा लोकपाल कानून मांग रहे हैं वैसा कानून बना दो.

Tuesday, June 21, 2011

'लोकपाल' और 'जोकपाल' के बीच हम

अब संघर्ष जन 'लोकपाल' और सरकारी 'जोकपाल' के बीच है.

जनलोकपाल में कोशिश  है कि ग्राम पंचायत, नगर पालिका से लेकर प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री तक के काम में कहीं भी भ्रष्टाचार है तो दोषियों को जेल भेजा जाए. रोज़मर्रा के सरकारी कामकाज में रिश्वतखोरी से दुखी आम आदमी को राहत मिले. व्यवस्था ऐसी हो कि भ्रष्टाचारी गलत काम करने से पहले दस बार सोचे कि जेल जाना तय  है.  

जोकपाल में कोशिश है कि राशन कार्ड, ड्राईविंग लाईसेंस, पासपोर्ट  आदि बनवाने में रिश्वतखोरी को न छुआ जाए. सड़क, बिजली, स्कूल अस्पताल आदि में जो भ्रष्टाचार है उसे न छुआ जाए. और  न ही प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री या सांसदो के भ्रष्टाचार को छुआ जाए. केवल केंद्र सरकार के मंत्रालयों  में बैठे चन्द अफसर  या मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने की औपचारिकता कर ली जाए.

जनलोकपाल के समर्थन में देश की आम जनता है. जो  अन्ना हज़ारे के साथ खड़ी है. जोकपाल के समर्थन में देश की तमाम भ्रष्ट ताकतें हैं जो सरकार में बैठे भ्रष्ट लोगों के साथ खड़ी हैं. जनलोकपाल कानून बनता है तो हमारा और हमारी आने वाली पीढि़यों का भविष्य  बच सकता है. लेकिन जोकपाल कपाल कानून बनता है तो  जनता की उम्मीदें एक बार फिर कम से कम 30-35 साल के लिए टूट जाएंगी और आम आदमी के लिए हर रोज़ नई समस्याएं इसी तरह खड़ी होती रहेंगी.

अब तय हमें करना है. हम कहां खडे़ होते हैं. 

कुछ महीने के लिए अपनी नौकरी कैरियर, दुकान, मकान छोड़कर लोकपाल बनवाने के लिए सड़क पर उतरेंगे या फिर किसी बहाने से खुद को समझा बुझाकर बन्द कमरे में चादर ढक  कर सा जाएंगे. लोकपाल बन गया तो ठीक नहीं तो चाय की चुस्कियों के साथ कभी कभी जोकपाल को कोस लिया करेंगे. 

अब ये आन्दोलन इस मोड़ पर पहुँच गया है कि जनलोकपाल का कानून बनना न बनना सरकार पर नहीं करेगा. यह निर्भर करेगा की किस शहर में कितने लोग सड़को पर उतरते हैं और जेल जाने के लिए तैयार होते हैं. 
वक्त महज़ १५-२० दिन का है. उसके बाद तो संमीक्षा करने का ही मौक़ा मिलेगा.

Friday, June 10, 2011

क्या लोकपाल सिर्फ उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की जांच करे?

बहुत से जाने माने लोगों का कहना है कि लोकपाल केवल उच्चस्तरीय बड़े भ्रष्टाचार पर केन्द्रित रहे.
भारत में एक अनोखा भ्रष्टाचार निरोधी तन्त्र है जो बुरी तरह से बिखरा हुआ है. भ्रष्टाचार के एक ही मामले में विभागीय विजिलेंस विभाग निचले स्तर के कर्मचारियों की भूमिका की जांच करता है, सीवीसी बड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच करता है, सीबीआई इसके अपराधिक पहलू की जांच करती है, राज्यों में लोकायुक्त नेताओं की भूमिका की जांच करते हैं. इस तरह एक ही मामले में कई एजेंसियों की जांच और पूछताछ एक साथ चलती है. यह किसी मामले को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है. निचले कर्मचारी, बड़े अफसर, नौकरशाह या नेताओं का भ्रष्टाचार अलग अलग होता है क्या?

Tuesday, June 7, 2011

क्या न्यापालिका को लोकपाल के दायरे में होना चाहिए?

इस सवाल का जवाब देने से पहले यह देखते हैं कि जनलोकपाल बिल में क्या प्रस्तावित किया जा रहा है, इसकी क्या आलोचना की जा रही है और इस पर हमारा जवाब क्या है.

समस्या कहां है?

आज यदि सुप्रीम कोर्ट अथवा हाई कोर्ट के किसी जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो प्रधान न्यायधीश की अनुमति लिए बिना उसके खिलाफ न तो एफ.आई.आर दर्ज हो सकती है और न ही जांच शुरू हो सकती है. अभी तक का अनुभव बताता है कि किसी जज के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश किए जाने के बाद भी प्रधान न्यायधीश किसी जज के खिलाफ इस तरह की इजाज़त देने से हिचकिचाते रहे हैं.

यहाँ तक कि अपनी इमानदारी के लिए प्रतिष्ठित प्रधान न्यायधीशों ने भी ऐसे मामलों में इजाज़त नहीं दी हैं. खुद पी. चिदम्बरम ने कोलकाता हाई कोर्ट के जज सस्टिस सेन गुप्ता के खिलाफ एफ. आई आर दर्ज करने की इजाज़त मांगी थी. इजाज़त देश के प्रधान न्यायधीश जस्टिस वेंकटचेलैय्या से मांगी गई थी, जो अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं. लेकिन जस्टिस वेंकट चेल्य्या ने भी इजाज़त नहीं दी. सवाल उठता है कि क्या जस्टिस सेनगुप्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे? सबूतों का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिटायर होते ही जस्टिस सेनगुप्ता के यहाँ छापे डाले गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. क्योंकि इस वक्त प्रधान न्यायधीश की इजाज़त की आवश्यकता नहीं थी.

लोकपाल और प्रधानमन्त्री

सरकार प्रधानमन्त्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना चाहती है. यानि अगर प्रधानमन्त्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो उनकी जंाच नहीं की जा सकती. इसका अर्थ है प्रधानमन्त्री को किसी भी प्रकार की जांच अथवा मुकदमे से मुक्त होगा.

यह संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा क्योंकि संविधान प्रधानमन्त्री को इस तरह की कोई प्रतिरक्षा नहीं देता है. संविधान इस प्रकार की प्रतिरक्षा केवल राष्ट्रपति को देता है. संविधान निर्माताओं ने सर्वोच्च पद पर किसी अस्थिरता से बचने के लिए यह व्यवस्था की है. प्रधानमन्त्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखकर सरकार संविधान अनौपचारिक रूप में संविधान में ही संशोधन कर दे रही है.