Monday, March 5, 2012

यह चुनाव नहीं 'अगले पांच साल कौन लूटेगा?' का जवाब है



उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले एक बड़ा सवाल - क्या हमारे देश में चुनाव का मतलब यह नहीं हो गया की जनता अगले पांच साल के लिए अपना राजा चुने. जनता यह चुने की अगले पांच साल उसे किसके सामने गिडगिडाना है. उसकी मेहनत की कमाई पर ऐश करते हुए, उसे कौन लूटेगा? 
                                                                                                         - मनीष सिसोदिया

पांच राज्यों  में हुए विधानसभा चुनाव के नतीज़े आने में अब कुछ ही घंटे का समय बचा है. हर चुनाव की तरह इसमें भी कोई जीतेगा और कोई हारेगा. लेकिन जनता को क्या मिलेगा? इसके पहले कि हार और जीत की समीक्षा का नशा  उफान पर आए, इन चुनावों की उपयोगिता पर भी एक आकलन होना चाहिए. यह आकलन इसलिए भी ज़रूरी है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चले एक बड़े आंदोलन के बाद ये पहले चुनाव हैं और इन्हें आगामी लोकसभा चुनाव के सेमीफाईनल के रूप में भी देखा जा रहा है. ज़ाहिर है कि इन दोनों मुद्दों के आधार पर नतीजों की समीक्षा करने के लोभ से परंपरागत विश्लेषक नहीं बच पाएंगे और वे बुनियादी सवाल से भटकेंगे. 

बुनियादी सवाल यह है कि एक सामान्य नागरिक, जो बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान है, इन चुनावों के बाद उसे क्या मिलेगा? वह अपनी रोजाना की जि़ंदगी में स्कूल - अस्पताल, सड़क से लेकर हर सरकारी दफ्तर के भ्रष्ट कामकाज से दुखी है. ड्राईविंग लाईसेंस लेना हो या किसी दुकान या फैक्ट्री का लाईसेंस, बिना रिश्वत के नहीं मिलता. मकान की रजिस्ट्री से लेकर नक्शा पास कराने तक में फाईल बिना रिश्वत आगे नहीं बढ़ती. किसान की अच्छी खासी ज़मीन अगर किसी बड़े व्यापारी की नज़र चढ़ जाए तो रातों रात उसे छीनने की योजना सरकार बना देती है. इसके बाद जब किसान का बेटा कोई सरकारी नौकरी करना चाहता है तो उससे लाखों रुपए रिश्वत में ले लिए जाते हैं. इसलिए सवाल यह नहीं है कि चुनाव नतीजों में कौन जीतेगा और कौन  हारेगा. सवाल तो यह है कि एक सामान्य आदमी की जि़ंदगी में कुछ बदलाव आएगा? अगर नहीं! तो  फिर यह चुनाव का नाटक किसलिए?

Sunday, February 12, 2012

जोरदार ठंड के बावजूद उमड़ा जनसमूह


चंदौली. 9 फरवरी। उत्तर प्रदेश के चुनावी मौसम में टीम अन्ना का तूफान भी दिखने लगा है। राजनीतिक रैलियों को छोड़कर लोग टीम अन्ना की जागरूकता रैलियों में हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से आ रहे हैं।

गाजीपुर जिले के रहने वाले 30 साल के मनोज अपने शहर में हुई टीम अन्ना की रैली में हिस्सा नहीं ले सके तो सौकिलोमीटर का सफर तय करके चंदौली की रैली में पहुंचे। टीम अन्ना की रैलियों और राजनीतिक रैलियों का बड़ा फर्क यह भी है कि टीम अन्ना की रैली में लोग खुद खिंचे चले आते हैं जबकि राजनीतिक रैली में भीड़ इकट्ठा करने के लिए नेताओं को कड़ी मशक्कत और बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है।

मनोज कहते हैं, एक जागरूक और जिम्मेदार मतदाता होते हुए मैं इस पशोपेश में था कि किसे वोट करूं और क्यों करूं। इन दिनों सभी पार्टियों के उम्मीदवार हमारे पास आ रहे हैं। मैं सोचता था कि उनसे क्या सवाल किया जाए और क्या वादा लिया जाए? इस सभा के बाद अब जो भी उम्मीदवार हमारे पास आएगा, उससे मैं पूछूंगा कि क्या वह राज्य में सख्त लोकायुक्त कानून के लिए काम करेगा?  चंदौली में हुई रैली में मनोज अकेले नहीं थे जिन्हें अपने उम्मीदवारों से शिकायत थी। युवाओं का असंतोष भी साफ झलक रहा था।

चंदौली के जीटी रोड पर पंजाब नेशनल बैंक के नजदीक मैदान में आयोजित यह रैली उस समय हो रही थी, जबकि इसी शहर के दूसरे हिस्से में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की रैली चल रही थी। लेकिन यहां आए लोगों का कहना था कि वे राहुल की रैली में इसलिए नहीं गए क्योंकि राहुल अपनी पार्टी के लिए वोट मांगने आए थे जबकि टीम अन्ना का अपना कोई स्वार्थ नहीं था। वह सिर्फ हमें जागरुक करने आई थी।

टीम अन्ना ने लोगों को बताया कि केंद्र सरकार ने लोकपाल आंदोलन के दौरान अन्ना हजारे को किस तरह बार-बार धोखा दिया। साथ ही राजनीतिक दलों के आंतरिक ढांचे में लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमी पर भी रोशनी डाली। टीम अन्ना ने लोकपाल बिल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि चाहे सत्ता में जो भी आए लोकपाल भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखेगा और लोगों को अच्छा शासन मिल सकेगा।


रैली में शामिल हो रहे एमबीए स्नातक मुरारी वर्मा का कहना था कि यह लोगों के बीच में जागरुकता लाने का और उनके वोट के महत्व के बारे में बताने के लिए एक सराहनीय प्रयास है। वर्मा ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रेदश देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार है क्योंकि यहां के राजनेताओं ने कभी विकास पर ध्यान ही नहीं दिया।

टीम अन्ना अब तक उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, बस्ती, गोंडा, फैजाबाद, बाराबंकी, आजमगढ़, चंदौली,   वाराणासी और इलाहाबाद में मतदाता जागरुकता अभियान के तहत रैलियां कर चुकी है। अभियान का अगला चरण 13 फरवरी को रायबरेली से शुरु होगा। इसी दिन कन्नौज और फर्रुखाबाद में भी रैली होगी जबकि 15 फरवरी को मैनपुरी व इटावा और 16 फरवरी को ललितपुर और झांसी में रैलियां होंगी।

चुनावी फिजा में छाया तिरंगा


आजमगढ़. 8 फरवरी। चुनावी मौसम में आजमगढ़ में ताबड़तोड़ हो रही रैलियों से यह रैली बिल्कुल अलग है। इसे किसी राजनीतिक दल ने नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने आयोजित किया है।  

भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून लोकपाल के बारे में लोगों को जागरूक करने और अपने मताधिकार के सही इस्तेमाल के बारे में लोगों को बताने के लिए आयोजित इस रैली में टीम अन्ना सदस्यों ने लोगों से सोच-समझकर वोट देने की अपील की।

रैली के दौरान कुंवर सिंह उद्यान तिरंगों और देशभक्ति के नारों से गुलजार था। रैली में शामिल नूरुल्लाह का कहना था, रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन के दौरान जो नजारे टीवी के जरिए देखे, उन्हें आज अपनी आंखों के सामने देख, अपने अंदर एक बदलाव महसूस कर रहा हूं।

टीम अन्ना के मंच पर पूर्व सांसद इलियास आजमी ने भी अपने राजनीतिक अनुभव साझा किए। आजमी ने कहा, सांसद या विधायक के रूप में किसी की पार्टी में अपनी कोई निजी राय या विचारधारा नहीं होती।  उसे पार्टी हाई कमान के फैसले के अनुसार ही चलना पड़ता है।

टीम अन्ना की रैली में शामिल लोग काफी उत्साहित नजर आए। रैली में शामिल लोगों का कहना था कि यह अपने आप में अनूठा अनुभव था। राजनीतिक रैली में शामिल होने के लिए लालच दिए जाते हैं लेकिन अपने आप कहीं आने की बात ही अलग होती है। रैली में शामिल स्थानीय दुकानदार हीरालाल ने कहा कि टीम अन्ना किसी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में वोट करने के लिए नहीं कर रही है बल्कि लोगों को यह बता रही है कि लोकपाल कानून देश के लिए कितना जरूरी है और किस दल ने लोकपाल नहीं आने दिया।

Saturday, February 4, 2012

अन्ना आंदोलन का अगला चरण

अन्ना के नेतृत्च में पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरा। एक ही मांग थी- `जन लोकपाल बिल´  भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त क़ानून। ताकि  भ्रष्टाचार करने वालों को सज़ा मिले, उनके मन में डर पैदा हो। क्या जनता की मांग नाजायज़ थी?
कई जन्मत संग्रह हुए। 95% से ज्यादा जनता टीम अन्ना और जनता द्वारा बनाए गए `जन लोकपाल बिल´  के साथ थी। कई टी.वी. चैनलों ने सर्वे कराए। 80% से अधिक जनता ने जन लोकपाल बिल का समर्थन किया।
इसके बावजूद सरकार ने एक लूला-लंगड़ा, कमज़ोर और ख़तरनाक लोकपाल बिल संसद में प्रस्तुत किया। लोकसभा में यह पास भी हो गया। जल्द ही राज्यसभा में भी पास हो जाएगा। लालू यादव ने खुलकर कहा- कोई भी सांसद और कोई पार्टी जन लोकपाल बिल नहीं चाहती।
इसका मतलब देश की 80% से अधिक जनता ने एक क़ानून की मांग की और इस देश की संसद वह क़ानून देने में अक्षम रही। उल्टा देश की संसद जनता की उस मांग के खिलाफ खड़ी हो गई। तो क्या हम इसे `जनतंत्र´ कहेंगे?" इसी संसद में कलमाड़ी, कनिमोई, राजा जैसे अनेकों  भ्रष्टाचारी सदस्य हैं। इसी संसद के 160 से अधिक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। सवाल उठता है कि क्या यह संसद इस देश को गरीबी, भुखमरी और  भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती है? या ये संसद ही इस देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई है?
जन लोकपाल की लड़ाई ने भारतीय `जनतंत्र´ के खोखलेपन को जनता के सामने ला दिया है। क्या यह सरकार, यह व्यवस्था और यह संसद कभी भी जन लोकपाल क़ानून दे सकती है? चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने। क्या ये  भ्रष्टाचारी नेता और पार्टियां कभी भी अपने गले में खुद फांसी का फंदा डालेंगे? जब तक पूरी व्यवस्था को मूल चूल रूप से नहीं बदला जाएगा, क्या तब तक जन लोकपाल क़ानून आ सकता है? क्या अब हमारी व्यवस्था के बारे में कुछ मूलभूत प्रश्न पूछने का समय आ गया है। जैसे-
क्या आज की न्याय प्रणाली गरीबों को न्याय देती है? क्या विधानसभाएं और संसद वाकई `जन हित´ में क़ानून बनाती हैं? पुलिस जनता को संरक्षण देती है या आपराधिक को? सीबीआई  भ्रष्टाचारियों को सज़ा दिलवाती है या उन्हें संरक्षण देती है? क्या कभी आपको ऐसा एहसास या अनुभव हुआ कि प्रधानमंत्री ने वाकई आपके और आपके परिवार की भलाई के लिए काम किया? क्या यह पूरा का पूरा सिस्टम बुरी तरह से सड़ नहीं गया है? 
क्या इन सब प्रश्न के उत्तर मांगने का समय आ गया है\ क्या इस सड़ी गली व्यवस्था को बदलने का समय आ गया है? क्या एक नई व्यवस्था की स्थापना का समय आ गया है?
देश को वैचारिक क्रांति की जरूरत है। वैचारिक मंथन करके इन प्रश्नों के समाधान ढूंढने की जरूरत है। जिस दिन पूरा देश वैचारिक स्तर पर खड़ा हो गया- इस क्रांति को कोई नहीं रोक पाएगा। क्रांति अहिंसक होगी लेकिन देश में मूलभूत परिवर्तन करेगी।
इसके लिए देशभर में चर्चा समूहों का गठन किया जा रहा है। इनका नाम है- स्वराज चर्चा समूह या अन्ना चर्चा समूह।
इन समूहों के ज़रिए जनता सामूहिक रूप से यह प्रश्न खड़े करेगी और इनके समाधान ढूंढेगी। यदि आप भी इस क्रांति का हिस्सा बनना चाहते हैं तो ऐसे ही एक चर्चा समूह का गठन कीजिए और अनेकों ऐसे समूहों का गठन करने में मदद कीजिए।

चर्चा समूह क्या है?
कोई भी व्यक्ति अपने कुछ मित्रों, सहकर्मियों, पड़ोसियों आदि के साथ मिलकर चर्चा समूह शुरू  कर सकता है। शुरू करने वाला व्यक्ति आयोजक कहा जा सकता है। इन्हें हम स्वराज चर्चा समूह अथवा अन्ना चर्चा समूह भी कह सकते हैं। चर्चा समूह की बैठक हर सप्ताह, निश्चित समय और स्थान पर हो।

चर्चा समूह क्यों?
लोगों के मन में जनलोकपाल और आंदोलन के बारे में कई तरह की शंकाएं और सवाल उठ रहे हैं। स्वार्थी और  भ्रष्ट  तत्वों द्वारा जानबूझकर फैलायी जा रही अफवाहों के कारण कई तरह के भ्रम फैल रहे हैं। इन शंकाओं और सवालों के जवाब अभी तक केवल मीडिया के माध्यम से ही मिल पा रहे थे। कई बार ऐसे जवाब इकतरपफा, अधूरे या भ्रामक होते हैं। चर्चा समूह दो-तरफा संवाद का माध्यम बनेगा।

यह संवाद दो तरफा कैसे होगा?
हर सप्ताह एक पर्चा और वीडियो तैयार किया जाएगा। इसे वेबसाईट पर भी डाला जाएगा। इस पर्चे और वीडियो के माध्यम से सवालों और शंकाओं के जवाब लोगों तक सीधे पहुंचाए जाएंगे। चर्चा समूहों की बैठक में शामिल होने वाले लोग सवाल रखेंगे। चर्चा समूह के आयोजक इन सवालों के जवाब आंदोलन के नेतृत्व से लेकर अगली बैठकों में रखेंगे। इन चर्चा समूहों के माध्यम से लोग अपने सुझाव और विचार भी आंदोलन के नेतृत्व तक पहुंचा सकेंगे।

चर्चा समूह की बैठक कितने समय में होगी?
चर्चा समूहों की सफलता के लिए उचित होगा कि ये बैठकें सप्ताह में एक बार निश्चित समय और स्थान पर हों।
चर्चा समूह शुरू कैसे होगा?
कोई भी व्यक्ति जो शारीरिक या भावनात्मक रूप से अन्ना के आंदोलन से जुड़ा हुआ है वह अपने परिवार के सदस्य, दोस्तों, सहकर्मियों या पड़ोसियों के साथ मिलकर एक चर्चा समूह शुरू कर सकता है।
चर्चा समूह में कितने लोग होने चाहिए?
कोई भी व्यक्ति पांच या अधिक लोगों से चर्चा समूह शुरू कर सकता है और धीरे-धीरे ज्यादा लोगों को जोड़ सकता है। लेकिन अगर संख्या बहुत ज्यादा हो जाए तो एक चर्चा समूह को कई चर्चा समूहों में बांटा जा सकता है।

चर्चा समूह में आयोजक की भूमिका क्या होगी?
1) कुछ लोगों को एक साथ लेकर चर्चा समूह को शुरू करना एवम् सुनिश्चित करना कि लोग हर सप्ताह नियमित रूप से चर्चा समूह में आएं। कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा लोग चर्चा समूह का हिस्सा बनें।
2) हमारी वेबसाइट पर हर हफ्ते एक पर्चा और फिल्म अपलोड किया जाएगा जिसमें आंदोलन और बिल के संबंध् में मुद्दे शामिल होंगे। उसे डाउनलोड कर बैठक में लाने की जिम्मेदारी आयोजक की होगी।
3) चर्चा समूह में आयोजक या तो खुद या फिर कोई अन्य व्यक्ति पर्चे को पढ़कर सुनाएगा। अगर संभव हो तो फिल्म भी दिखाई जा सकती है। अगर फिल्म दिखाना संभव नहीं है तो IVR नंबर 09212123212 पर डायल करके स्पीकर फ़ोन की सहायता से लोगों को सुनाया जा सकता है और फिर चर्चा शुरू की जा सकती है।
4) आयोजक के लिए आवश्यक नहीं है कि वह कोई अच्छा वक्ता हो या सभी सवालों के जवाब दे। वह सिर्फ आंदोलन के नेतृत्व और लोगों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करेगा। चर्चा के अंत में जो सवाल रह जाते हैं वह हमारी हेल्पलाइन 09718500606 पर फ़ोन करके या indiaagainstcorruption.2010@gmail.com ईमेल  के माध्यम से उनके जवाब जाने जा सकते हैं।  प्राप्त जवाबों पर चर्चा अगली बैठक में की जाएगी।
5) चर्चा के दौरान अगर कोई विचार या सुझाव आते हैं तो उसकी जानकारी आंदोलन के नेतृत्व तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी आयोजक की होगी। आंदोलन के नेतृत्व से उपयुक्त हेल्पलाइन या ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है।
6) चर्चा समूह का सदस्य बनने के लिए किसी भी प्रकार के पंजीकरण(रजिस्ट्रेशन) की कोई आवश्यकता नहीं है।
7) आयोजक में किसी स्पेशल योग्यता की जरूरत नहीं है। बस देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हो।

अगर आयोजक पर्चे में लिखी हुई बातों से सहमत नहीं है तो उसका समाधान क्या है?
यह आवश्यक नहीं है कि आयोजक पर्चे में लिखी बातों से सहमत हो। जब चर्चा के दौरान पैम्फ्रलेट पढ़ा जाएगा और फिल्म दिखाई जाएगी और फिल्म उसपर लोगों के बीच में चर्चा होगी। तत्पश्चात चर्चा समूह में मौजूद लोगों को अगर ये लगता है कि जो हम कहना चाह रहे हैं वो गलत है तो इस बात की सूचना आंदोलन के नेतृत्व तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आयोजक की होगी। चर्चा समूह का मकसद ही यही है कि हम लोगों के विचार जाने और आंदोलन जनता की इच्छानुसार चले।

पर्चे की पी.डी.एफ. कॉपी डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

चर्चा समूह : साप्ताहिक पर्चा-3


देशभर में कई जगह अन्ना चर्चा समूह की बैठकें शुरू हो गई हैं साथ ही साथ कुछ राज्यों में चुनाव भी हो रहा है। लेकिन इसी बीच में एक बात जो सबसे अधिक चर्चा में रही वो रही अन्ना जी के स्वास्थ्य के संबंध् में। अन्ना जी के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की ख़बरें आई, कई विवाद भी हुए।

अन्ना जी का स्वास्थ्य:
अन्ना जी पुणे के संचेती अस्पताल में जनवरी, 2012 के पहले हफ्रते में भर्ती हुए थे। उन्हें खांसी ज़ुकाम था। संचेती जी से अन्ना जी की पिछले 25 सालों से दोस्ती है। हमें उम्मीद है कि उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। लेकिन जो दवाइयां उन्हें दी गईं, ऐसा लगता है कि उनका साइड-इफेक्ट हो गया, जिसकी वजह से अन्ना जी को कुछ दिनों के लिए दिल्ली के मेदांता अस्पताल में भर्ती किया गया। इस समय वो वहां से छुटकर बैंगलोर गए हुए हैं। वहां अपना नैचरोपैथी से इलाज करा रहे हैं। अभी अन्ना जी कि तबीयत ठीक है पर कमज़ोरी कापफी ज़्यादा है। अन्ना जी ने अपने बयान में भी यह कहा है कि उनका शरीर ज्यादा दवाइयों को सह नहीं पाया। 

चुनावों में हमारी भूमिका: 
जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं वहां सभी पार्टियों के घोषणा पत्र जारी हो रहे हैं। उसमें सभी वोटर्स को लुभाने कीकोशिशें की जा रही हैं, लेकिन देश और समाज की जरूरतों के बारे में कहीं बात नहीं हो रही है। किसी भी पार्टी का वीज़न और विचारधारा नज़र नहीं आ रही। जब हमने पार्टी सिस्टम अपने देश में अपनाया तो ये उम्मीद थी कि अलग-अलग विचारों के आधार पर पार्टियां बनेगी। लेकिन आज उसका उल्टा हो रहा है। आज अलग-अलग पार्टियां विचारधाराओं की जगह व्यक्तित्व की वजह से बन रहीं हैं। इसका कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि हर पार्टी का नेता सिर्फ पद और पैसे के पीछे भाग रहा है। अगर विचारधाराओं के आधार पर पार्टी बने तब तो जनतंत्र मज़बूत होगा। जैसे समाजवादी पार्टी का नाम तो रख लिया पर समाजवादी विचारों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। ऐसे ही बहुजन समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी आदि नाम तो रख दिया पर सबका एक ही लक्षय है `सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता´।
इस देश में हर आदमी टैक्स देता है यहां तक कि भिखारी भी टैक्स देता है। क्योंकि जब एक भिखारी बाज़ार से माचिस भी लेता है तो उसे साल्स टैक्स, एक्साइस ड्यूटी न जाने कौन-कौन से टैक्स देने पडते हैं। तो ये जितना भी सरकारी पैसा है वो हमारा पैसा है और हमारे नेता कहते हैं कि अगर वो जीतकर आएं तो प्रफी में लैपटॉप देंगे, साइकिल देंगे। यानि हमारे पैसों से हमें ही रिश्वत देंगे। ये क्या पैसे पेड़ों से लाएंगे? ये है तो हमारा ही पैसा। हमारे पैसों को खुद भी लूटेंगे और हमें रिश्वत भी देंगे। वो भी जनता तक नहीं पहुंचने वाला। लैपटॉप और साइकिल के ठेकों में कमाएंगे। सारी की सारी साइकिलें, लैपटॉप सिर्फ कागजों में आएंगे और फर्जी बिल बनाएंगे। इस तरह से यह पूरा का पूरा लूटतंत्र है । जो ये पार्टियों के घोषणा पत्र आए हैं इससे न तो देश के लिए उम्मीद बनती है और न ही समाज के लिए। एक पार्टी ने कहा कि पांच साल में बीस लाख नौकरियां देंगे। हम पूछना चहते हैं कि आप बीस लाख नौकरियां कहां से ले आएंगे? और दूसरी बात जहां आप पहले से सत्ता में है वहां क्यों नहीं दे रहें ये नौकरियां। साथ ही ये बताए कि कितने किसानों की जमीन छीन कर उनका रोजगार छीन कर ये 20 लाख नौकरियां देंगे? सवाल यह है कि जो ये चुनाव हो रहें हैं क्या इन चुनावों से कुछ बदलाव होगा? या सिर्फ लोग एक बार फिर से वोट डालेंगे और पांच साल के लिए अपना राजा या रानी चुनेंगे। हम कब तक बस राजा रानी बदलते रहेंगे, चेहरे बदलते रहेंगे और ये देश जो गर्त में जा रहा है वह जाता रहेगा।
सवाल ये भी है कि जो पार्टियां बड़े बड़े वादों के साथ चुनाव लड़ रही है वह देश में कहीं न कहीं राज्यों या केंद्र में सत्ता में है। हमारा सवाल है कि ये पार्टियां अपने बड़े बड़े वादें पहले वहां क्यों नहीं लागू करती है जहां वो सत्ता में हैं।
हैरानी की बात यह है कि वो सारे मुद्दे जो आम जनता से जुड़े हुए है, देश के आज और कल को तय करने वाले हैं उनका जिक्र ना तो किसी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में है और ना ही किसी नेता के भाषण में। कोई पार्टी इन मुद्दों पर बात नहीं कर रही है। कोई पार्टी कहती है कि मुसलमानों को आरक्षण देंगे, तो कोई पीछड़ों को आरक्षण देंगे। लेकिन इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि जिसको भी आरक्षण देंगे क्या जब वो नौकरी लेने जाएगा तो उससे रिश्वत नहीं मांगी जाएगी। क्या ये पर्टियां रिश्वतखोरी में भी आरक्षण देंगी? यानी अब मुसलमानों से रिश्वत नहीं लेंगे, क्रिश्चियन से रिश्वत नहीं लेंगे या ये कहें कि महंगाई अब  क्रिश्चियन और मुसलमानों के लिए नहीं होगी उसमें भी आरक्षण चलेगा। जबकि सच्चाई यह है कि महंगाई और भ्रष्टाचार से हर धर्म और जाति के लोग पीडित है। इन मुद्दों पर कोई पार्टी बात ही नहीं करना चाहती क्योंकि एक आम आदमी जब महंगाई से जूझता है, जब अपने पैसे देता है तो वो सारा पैसा इन नेताओं तक पहुंचता है। ऐसी व्यवस्था बन गई कि ये हर आदमी का खून चूसते हैं। चाहे वो हिंदू हो, मुसलमान हो या  क्रिश्चियन हो।

अन्ना जी का तमाम राजनीतिक दलों को पत्र:
अन्ना जी ने तमाम राजनीतिक दलों को पत्रा लिख कर लोकपाल और देश के अन्य मुद्दों पर उनकी राय जनता के सामने स्पष्ट करने का आग्रह किया है। 

सभी पार्टियों से सवाल:
1. क्या आप मानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लाया गया बिल बेहद कमज़ोर है, भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देता है और इसके आने से जनता को प्रताड़ित करने के लिए सरकार के पास लोकपाल नाम का एक और हथियार हो जाएगा?
2. क्या आप मानते हैं कि सीबीआई को पूरी तरह से सरकारी चंगुल से बाहर किया जाए?
3. क्या आप संसद में सरकारी लोकपाल का जम कर विरोध् करेंगे? क्या आप उसे वापिस लेकर एक सशक्त लोकपाल की मांग करेंगे?
4. उत्तराखंड सरकार ने बेहद सशक्त और प्रभावशाली लोकायुक्त बिल पारित किया है। इसमें अलग जांच एजेंसी, निष्पक्ष नियुक्ति, तुरंत एवं सख्त सज़ा, सिटीजन चार्टर आदि तमाम बातें मान ली गई हैं। यदि इन चुनावों के बाद आपकी सरकार बनती है तो क्या आप बाकी राज्यों में ऐसा ही बिल लाएंगे?
5. क्या आप मानते हैं कि लोकपाल जैसे अहम् क़ानून जनता की भागीदारी से बनने चाहिए? आज हमारे देश में क़ानून बनाने की प्रक्रिया से क्या आप सहमत हैं? क्या आपको नहीं लगता कि जब लोकपाल जैसे अहम् क़ानून बनाए जाए तो उसमें जनता की भागीदारी होनी चाहिए? ऐसे क़ानून जनता से पूछकर बनने चाहिए? जनता पर ख़राब क़ानून थोपे नहीं जाने चाहिए? संविधान में, गांव में रहने वाले सभी वोटर्स की सभा को ग्राम सभा कहते हैं। शहरों में इस तरह की किसी सभा का कहीं ज़िक्र नहीं है। शहरों में भी मोहल्ला सभाओं का गठन किया जाना चाहिए। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह के अहम् क़ानून ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं से मशविरे के बाद बनने चाहिए? यदि प्रदेश में आपकी सरकार बनती है तो क्या आप ऐसी व्यवस्था लागू करेंगे?
6. जमीनों के अधिग्रहण में आज सबसे ज्यादा  भ्रष्टाचार है। गरीब किसानों की उपजाउ भूमि औने-पौने दामों में छीनकर बिल्डरों, प्रापर्टी डीलरों और कंपनियों को दे दी जाती है। देश का अधिकतर काला धन जमीनों में जा रहा है। भूमि अधिग्रहण क़ानून 1894, गरीबों को और गरीब बनाने और किसानों को बेरोजगार करने का साधन बन गया है।
क) क्या आप सहमत हैं कि इस क़ानून को खारिज किया जाए?
ख) क्या आप सहमत हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाली ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं की मंजूरी के बिना किसी भूमि का अधिग्रहण नहीं होना चाहिए? यदि आपकी सरकार आती है तो क्या आप ऐसा क़ानून लाएंगे? क्या तब तक आप सारे भूमि अधिग्रहण पर रोक लगा देंगे?

राहुल गाँधी जी से सवाल :
1. सीबीआई को क्या सरकार के चंगुल में रहना चाहिए? सरकार सीबीआई के जरिए चिदंबरम जैसे  भ्रष्ट नेताओं को बचाती है। क्या आप इसका समर्थन करते हैं? सीबीआई का दुरुपयोग करके मायावती और मुलायम सिंह की पार्टियों का समर्थन हासिल कर जोड़तोड़ करके केंद्र में सत्ताधारी पार्टी अपनी सरकार चलाती है? क्या आप इसका समर्थन करते हैं? जनता जानना चाहती है कि सीबीआई सरकारी चंगुल से बाहर करने में आपकी सरकार इतना क्यों डरती है?
2. उत्तराखंड सरकार एक सख्त लोकायुक्त बिल लाई है। यदि कांग्रेस इन राज्यों में जीत कर आती है, तो क्या ऐसा बिल लाने की हिम्मत करेगी? या केंद्र जैसा ही लचर और ख़तरनाक लोकायुक्त राज्यों में भी लाया जाएगा।
3. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

मुलायम सिंह जी एवं मायावती जी से सवाल :
1. लोकसभा में जब लोकपाल क़ानून प्रस्तुत किया गया तो कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचाने के लिए आपकी पार्टी संसद से उठकर क्यों चली गई?
2. चुनाव के बाद क्या आप कांग्रेस या बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे? गठबंध्न की शर्तों में क्या आपके शीर्ष नेताओं के खिलाफ सीबीआई के मुकदमे वापिस लेने की शर्त भी होगी?
3. अगर आप चुनाव जीत गए तो क्या उत्तराखंड जैसा सख्त लोकायुक्त क़ानून बाकी राज्यों में पारित करेंगे?
4. क्या केंद्र के कमज़ोर लोकपाल क़ानून का आप विरोध् करेंगे? और क्या सख्त लोकपाल क़ानून के लिए आप लड़ेंगे?
5. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

भाजपा से सवाल :
1. उत्तराखंड में खंडूरी जी ने देश का सबसे सशक्त लोकायुक्त क़ानून बनाया है। लेकिन भाजपा इस बिल से पूरी तरह सहमत नहीं नज़र आती। उस बिल के किन प्रावधानों से भाजपा को आपत्ति है? यदि भाजपा उत्तराखंड क़ानून से सहमत हैं, तो उसे बाकि भाजपा शासित राज्यों में क्यों नहीं लागू किया जाता?
2. क्या केंद्र के कमज़ोर लोकपाल क़ानून का आप विरोध् करेंगे? और क्या सशक्त लोकपाल क़ानून के लिए आप लड़ेंगे?
3. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

चर्चा समूहों के आयोजकों की भूमिका क्या होगी?
दो-तीन चीज़े है कि एक तो ये चर्चा समूह जितने चल रहे है ये ज्यादा से ज्यादा संख्या में पूरे देश में हो। तो आप अपने सारे दोस्तों को रिश्तेदारों को कहिए कि वो चर्चा समूह के बारे में जाने। इसके लिए एक नया नंबर (09212123212) शुरू किया गया है। इस नंबर पर कोई भी फ़ोन करेगा तो उसे यह पता चल जाएगा कि चर्चा समूह क्या है और इसका आयोजन कैसे किया जा सकता है\ तो अब इस नंबर का खूब प्रचार कीजिए और जनता से कहिए कि वो इसे सुनें ताकि वो अपने-अपने इलाके में खुद ही चर्चा समूह शुरू कर सके। दूसरा जो-जो लोग चर्चा समूह कर रहे हैं वो लोग हर सप्ताह हमारी वेबसाइट www.indiaagainstcorruption.org से एक फिल्म डाउनलोड करके इसकी सीडी बना कर चर्चा समूहों में दिखा सकते हैं। मान लीजिए आप फिल्म नहीं दिखा सकते तो वेबसाइट पर इसकी ऑडियो रेकॉर्डिंग भी है उसे आप डाउनलोड कर लीजिए और ऑडियो को चला दीजिए। फिल्म को सुनाना या दिखाना, पर्चे पढ़ने के साथ-साथ बहुत जरूरी है। तीसरी चीज- अगर चर्चा के दौरान या चर्चा के बाद आपके मन में कुछ प्रश्न आते हैं और आप चाहते है कि उन प्रश्नों पर या किसी अन्य सुझाव पर हम अगले अंक में बातचीत करे तो आप उन्हें हम तक जरूर पहुंचाए। उन्हें पहुंचाने का तरीका है कि आप हेल्पलाइन नंबर- 09718500606 पर फ़ोन  करके या indiaagainstcorruption.2010@gmail.com पर ईमेल करके हमें बताएं। 
इस बार की चर्चा में ये भी जरूर चर्चा कीजिए कि इन चर्चा समूहों का कुछ फ़ायदा भी है या नहीं है? इसे आगे चलाना चाहिए कि नहीं। अगर चलाना चाहिए तो क्या-क्या बदलाव करने चाहिए? यह आंदोलन हमारा और आपका आंदोलन है। और आंदोलन का बहुत बड़ा हिस्सा है ये चर्चा समूह। क्योंकि इन चर्चा समूहों के जरिए इस देश में हम एक वैचारिक क्रांति लाने का सपना देख रहे हैं। तो इन्हें हमें बहुत सशक्त बनाना है। इस बार आप यह भी जरूर चर्चा कीजिए कि इन चर्चा समूहों को और कैसे सशक्त बनाया जाए।
आपके मन में जो भी सवाल आएं वो आप हेल्पलाइन पर फ़ोन करके अवश्य पूछे। जरूरी नहीं है कि कोई आयोजक ही सारे सवाल इकट्ठा करके पूछे चर्चा समूह में शामिल कोई भी सदस्य हेल्पलाइन नंबर- 09718500606 पर फ़ोन करके पूछ सकता है।

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चर्चा समूह : साप्ताहिक पर्चा-2

ये चर्चा समूह क्यों?
पिछले एक साल से अन्ना जी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार  के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। जिस संख्या में अगस्त महीने में लोग सड़कों पर उतरे और सरकार ने बार-बार आश्वासन  दिया कि शीत कालीन सत्र में हम एक सख्त लोकपाल क़ानून संसद में लाएंगे, उससे पूरी उम्मीद थी कि सरकार एक सख्त क़ानून संसद में जरूर पेश करेगी। हमें उम्मीद थी कि सरकार हमारी १०० प्रतिशत  बातें न मानें, लेकिन कम से कम ५० प्रतिशत बातें तो मान ही लेगी। लेकिन सरकार ने जो क़ानून संसद में रखा है वो इतना ख़तरनाक है कि 50 प्रतिशत  बातें मानना तो दूर वो तो आज की एंटी करप्शन व्यवस्था को भी ख़त्म कर देता है। 
ऐसा लगता है कि अब लड़ाई बहुत लंबी है। शायद सरकार जल्दी ये क़ानून पारित नहीं करेगी। ऐसा भी लगता है कि ये लड़ाई अब केवल जन लोकपाल की नहीं रही। अब ये लड़ाई जन लोकपाल से कहीं ज्यादा बड़ी बन गई है। ये अब जनतंत्र की लड़ाई बन गई है। एक तरफ तो सारे देश के लोग एक क़ानून की मांग कर रहे हैं, लेकिन फिर भी सरकार वो क़ानून पारित करने को तैयार नहीं है। क्या यही जनतंत्र है
अभी तक हमारे आंदोलन में हम केवल मीडिया के ज़रिए जनता तक अपनी बात पहुंचाते थे। मीडिया ने हमारा बहुत साथ दिया। मीडिया एक तरह से आंदोलन का हिस्सा ही बन गया। पर मीडिया की अपनी मज़बूरियां हैं। जैसे वह हमारी बात को पूरी तरह नहीं बता पाता। उसे कई बार काट छांटकर पेश किया जाता है। इससे जनता में कई प्रशन पैदा हो जाते हैं। अभी तक जनता को अपने प्रश्नों के जवाब नहीं मिल पाते क्योंकि जनता सीधे हम से सवाल नहीं कर पाती थी। चूंकि जनता का सीधे हम से संवाद नहीं था तो जनता सीधे अपने सुझाव भी हम तक नहीं पहुंचा पाती थी।
इसलिए ये जरूरी है कि हमारे आंदोलन में अपनी ऐसी व्यवस्था हो जिससे आंदोलन जनता से  सीधे  दो तरफा संवाद कर सके। लंबी लड़ाई के लिए ऐसी व्यवस्था बनाना जरूरी है। इसी दिशा में देशभर में गांवों और शहरों में चर्चा समूहों का गठन करने का निर्णय किया गया है।
हर चर्चा समूह को कोई एक कार्यकर्ता आयोजित करने की जिम्मेदारी लेगा। यह कार्यकर्ता उसी इलाके के लोगों में से कोई एक होगा। उसका काम केवल चर्चा समूह से उठने वाले प्रश्नों को आंदोलन तक लाना और आंदोलन से उनके जवाब अपने चर्चा समूह तक पहुंचाना होगा।
इन चर्चा समूहों में भारत की अन्य समस्याओं का भी ज़िक्र होगा। जैसे सबसे अहम् प्रशन है कि क्या आज का जनतंत्र भारत को गरीबी और  भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकता है क्या भारत वाकई जनतंत्र है पिछले हफ्ते के चर्चा समूह में एक प्रश्न हर जगह उठा- सभी पार्टियां भ्रष्ट हो गई है, किसे वोट दें? तो क्या भारत के लोग इस भ्रष्ट तंत्र के सामने बिल्कुल मजबूर हो गए हैं?
ऐसे कई प्रश्नों के सीधे जवाब नहीं हो सकते ? इन चर्चा समूहों का ये भी मकसद होगा कि ऐसे प्रश्नों पर देशभर में चर्चा हो और इस देश के लोग मिलकर इसका समाधान निकाले।
पिछले एक साल से सरकार ने अन्ना हज़ारे के आंदोलन को कदम-कदम पर धो  दिया है। सारा देश अन्ना के समर्थन में भ्रष्टाचार के विरुद्ध सड़कों पर उतर आया। पिफर भी सरकार ने देश को अच्छा क़ानून देने की बजाए कदम-कदम पर धोखा दिया। पिछले एक साल में जनता के साथ हुए धोखों के बारे में ही आज हम चर्चा करेंगे।

धोखा नं. 1: पांच अप्रैल को अन्ना अनशन पर बैठे। अनशन के चार दिन बाद ही सरकार ने लोकपाल क़ानून ड्राफ्रट करने के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया, जिसमें पांच लोग सरकार से थे और पांच अन्ना के सुझाव पर लिए गए. हम लोग बहुत उम्मीद के साथ इस कमेटी में गए। हम लग रहा था कि अब तो अच्छा क़ानून आ ही जाएगा। लेकिन सरकार की तो शुरू से ही नीयत ख़राब थी। संयुक्त समिति के अंदर हमारी एक भी बात नहीं मानी गई। ढाई महीने में ने बैठकें हुई और आखिरी बैठक में बोले कि आप अपना क़ानून लिख लो हम अपना क़ानून लिख लेंगे। यही करना था तो संयुक्त समिति बनाने का ढोंग ही क्यों किया गया? हम अपना अपना क़ानून तो शुरू में ही लिखकर बैठे थे। समिति में निर्णय हुआ कि दोनों क़ानून कैबिनेट के सामने रखे जाएंगे और कैबिनेट तय करेगी कि कौन सा क़ानून मंज़ूर करना है। यहां भी सरकार ने धोखा किया। कैबिनेट के के सामने केवल पांच मंत्रियों द्वारा क़ानून रखा गया।

धोखा नं. 2: जुलाई महीने में सरकार ने जोर-जोर से कहा कि वह सख्त लोकपाल क़ानून लेकर आएंगे। लेकिन जो लोकपाल बिल अगस्त में संसद में प्रस्तुत किया गया वह भ्रष्टाचार को दूर करने की बजाए,  भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और  भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को प्रताड़ित करने वाला था। मसलन, उसके एक प्रावधान के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति लोकपाल को  भ्रष्टाचार की शिकायत करेगा, तो पर्याप्त सबूत न होने पर शिकायतकर्ता को दो साल की क़ैद हो सकती है दूसरी तरफ  भ्रष्टाचार साबित होने पर  भ्रष्टाचारी अफसर को केवल छ: महीने की क़ैद होगी। एक भद्दा मज़ाक और धोखा था सरकारी लोकपाल बिल।  भ्रष्टाचारी के खिलाफ छ: महीने की क़ैद और शिकायतकर्ता को दो साल की क़ैद।

धोखा नं. 3:  अन्ना ने इस क़ानून के खिलाफ आवाज़ उठाई, उन्होंने कहा कि 16 अगस्त से आमरण अनशन करूंगा। लेकिन 16 अगस्त की सुबह वे बापू की समाधि (राजघाट) के लिए निकले ही थे कि उन्हें गिरफ्तार कर, तिहाड़ की उसी जेल में डाल दिया गया जिसमें कलमाड़ी और राजा जैसे  भ्रष्टाचारी क़ैद थे। कैसी विडंबना थी?  भ्रष्टाचार करने वाले और  भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले एक ही जेल में क़ैद थे। अन्ना पर आरोप था कि उनके बाहर रहने से देश और समाज की शांति को ख़तरा है। उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और फिर  सात दिन के लिए जेल भेज दिया गया। इसके खिलाफ सारा देश  खड़ा हो गया। देश में आग लग गई। लाखों करोड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। जेल भरो आंदोलन शुरू हो गया। लेकिन सरकार की जेलें छोटी पड़ गई। बड़े-बड़े स्टेडियम्स को जेल बनाया गया। लेकिन वे भी छोटे पड़ गए।
गिरफ्तार के चंद घंटों बाद ही सरकार ने अन्ना को रिहा कर दिया। सवाल यह उठता है कि सरकार की नज़रों में जो अन्ना हज़ारे कुछ घंटों पहले देश और समाज की शांति के लिए ख़तरा थे, और जिन्हें सात दिन के लिए जेल भेजा गया था, शाम होते होते वे अचानक शांति  के लिए ख़तरा कैसे नहीं बचे? इसका मतलब सरकार मनचाहे तरीके से, जिसे जब चाहे जेल में डाल सकती है और जब चाहे रिहा कर सकती है। क्या इस देश में कोई क़ानून है? या केवल सत्ता में बैठे लोगों की मनमर्जी  चलती है।

धोखा नं. 4: अन्ना के 12 दिन के अनशन के बाद 27 अगस्त को सर्वसम्मति से सारे देश के सामने अन्ना की तीन बातें मंजूर कीं। इनमें से दो बाते थीं - सिटीज़न चार्टर और निचली नौकरशाही को लोकपाल के दायरे में लाया जाएगा। प्रधानमंत्री ने अन्ना को चिट्ठी लिखकर संसद के इस प्रस्ताव के बारे में बताया और अन्ना से अनशन वापस लेने की अपील की। प्रधानमंत्री के निजी आश्वासन पर अन्ना ने भरोसा किया। अन्ना ने अपना अनशन वापस ले लिया। लेकिन प्रधानमंत्री की भी नीयत ख़राब थी। 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की अध्यक्षता करते हुए सिटीज़न चार्टर के लिए एक अलग बिल मंज़ूर कर लिया जो बेहद कमज़ोर है। यह रिश्वतखोरी से दुखी जनता को कोई न्याय नहीं दिलाता और बनने के कुछ दिन बाद ही ध्वस्त हो जाएगा। यह बिल संसद के 27 अगस्त के प्रस्ताव की अवहेलना थी। प्रधानमंत्री ने सीधे सीधे संसद की अवहेलना की थी। संसद को धोखा दिया था। सवाल उठता है कि अगर प्रधानमंत्री खुद संसद को सीधे सीधे  इस तरह धेखा देने लगेंगे तो इस देश का भविष्य क्या रह जाएगा? 

धोखा नं. 5: कांगे्रस के अभिषेक  मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति के विचार के लिए यह बिल भेजा गया। अभिषेक मनु सिंघवी ने भी धेखा दिया। उन्होंने क़ानून का एक ऐसा मसौदा तैयार किया जो कि संसद के 27 अगस्त के प्रस्तावों के बिल्कुल विपरीत था और बिल्कुल कमज़ोर था। स्थायी समिति के 30 में से 2 सदस्य तो इसकी बैठकों में कभी आए ही नहीं। बाकी 28 में से 17 सदस्यों ने इसका विरोध् किया। कुल मिलाकर देखें तो अभिषेक मनु सिंघवी ने जो प्रस्ताव दिए वे 30 में कुल 11 सदस्यों को ही मंजूर थे। इनमें से 7 कांगे्रस के थे, एक लालू यादव थे और एक अमर सिंह थे। तो कांग्रेस ने  अमर सिंह और लालू यादव के साथ बैठकर  भ्रष्टाचार के खिलाफ क़ानून का मसौदा तैयार किया। अब आप खुद ही सोच लीजिए किए यह क़ानून कैसा रहा होगा।

धोखा नं. 6: 10 अक्टूबर को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आश्वासन दिया कि सरकार एक सशक्त बिल लाएगी। अन्ना को 15 अक्टूबर से जन जागरण यात्रा पर निकलना था। प्रधानमंत्री के लिखित आश्वासन के बाद अन्ना ने अपनी यात्रा रद्द कर दी। अन्ना ने बार बार देश के सामने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री पर भरोसा है लेकिन प्रधानमंत्री की तो नीयत ही ख़राब थी। 22 दिसंबर को संसद में एक ऐसा बिल प्रस्तुत किया गया जो देश के साथ एक बहुत बड़ा धोखा था। यह बिल सीधे-सीधे  भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने की बात करता है।  भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों और नेताओं को अपना बचाव करने के लिए सरकार मुफ्त में वकील मुहैया करवाएगी।  भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले शिकायतकर्ता के खिलाफ अलग से केस कोर्ट में दर्ज करने के लिए भी, आरोपी  भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को मुफ्त में वकील उपलब्ध् कराया जाएगा। इस क़ानून के माध्यम से  भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के लिए जांच के भी सारे कायदे क़ानून बदल दिए गए हैं। जांच के दौरान ही  भ्रष्टाचारियों को समय समय पर इकट्ठे सबूत दिखाए जाएंगे। इससे  भ्रष्टाचारी को सबूतों को नष्ट करने और गवाहों को डरा धमका कर चुप कराने का पर्याप्त अवसर मिलेगा। एफआईआर दर्ज करने से पहले  भ्रष्टाचारी अफसर से पूछा जाएगा। इसके बाद भी अगर किसी के खिलाफ  भ्रष्टाचार साबित हो गया तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले भी उससे पूछा जाएगा।

धोखा नं. 7: एक तरफ तो केवल 5 प्रतिशत नेता और अफसर ही इसके दायरे में लाए गए हैं। लेकिन चंदे से चलने वाले देश के सारे सामाजिक और धार्मिक संस्थान इसके दायरे में आएंगे। जैसे मंदिर, मिस्जद, गुरुद्वारे, चर्च, यूथ क्लब, स्पोट्र्स क्लब, प्राइवेट स्कूल, प्राइवेट कॉलेज, प्राइवेट अस्पताल आदि सब इसके दायरे में आएंगे। हद तो यह हो गई कि इन संस्थानों में काम करने वाले पंडित, पादरी, फादर, सिस्टर, बिशप, मौलवी, मुफ्ती, अध्यापक, डॉक्टर एवं अन्य कर्मचारी इस क़ानून के तहत सरकारी अफसर माने जाएंगे और लोकपाल इनके खिलाफ  भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। प्रधानमंत्री को सरकार, अफसर और  नेता ईमानदार लगते हैं लेकिन इस देश की जनता बेईमान नज़र आती है। 

धोखा नं. 8: राहुल गांधी ने कहा कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और सारी सरकार उस पर लग गई। एक भ्रम फैलाया जा रहा है कि संवैधानिक दर्जा देने से लोकपाल सख्त बन जाएगा। यह तो वही बात हुई कि एक मरे हुए आदमी को बहुत सारे गहने पहना दो। अगर लोकपाल को मज़बूत बनाना है तो उसे संवैधानिक दर्जे की नहीं, सीबीआई की ज़रूरत है। सीबीआई, सरकार के हाथों की कठपुतली है। सरकार सीबीआई का दुरुपयोग करती है। केंद्र में सरकार डोलने लगे तो सीबीआई को मायावती, मुलायम, लालू या जयललिता के पीछे छोड़ दो। वो दौडे़-दौड़े आकर सरकार बचा लेंगे। राहुल गाँधी सीबीआई को सरकारी शिकंजे से मुक्त कराने की बात क्यों नहीं करते? और यह कैसा जनतंत्र है? राहुल गाँधी ने कहा कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दे दो तो सारी सरकार उसमें लग गई दूसरी तरफ देश के लाखों करोड़ों लोग सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि अन्ना वाला सख्त लोकपाल पारित करो तो सरकार एक नहीं सुनती। ये कैसा जनतंत्र है? ये कैसी लोकतांत्रिक सरकार है़? ये देश के लोगों की नहीं सुनती और एक आदमी के इशारे पर नाचने लगती है।

धोखा नं. 9: अन्ना के आंदोलन और उनकी टीम की छवि ख़राब करने के लिए बिल्कुल मनगढ़ंत और बेबुनियाद आरोप लगाए गए और षड्यंत्रों के तहत उन्हें फंसाने की चाल चली गई।
पहले तो प्रशांत भूषण और शांति भूषण के खिलाफ एक फर्जी सीडी बनाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की गई। बाद में लेबोरेट्री की जांच में यह सीडी फर्जी पाई गई। 
अन्ना हज़ारे को कांग्रेस  प्रवक्ता मनीष तिवारी ने सिर से पांव तक  भ्रष्टाचार में डूबा हुआ बताया। दिग्विजय सिंह और उनके साथी कई कांगे्रसी नेताओं ने अन्ना हज़ारे को आर.एस.एस. और बी.जे.पी. का मुखौटा बताया। कांगे्रस के एक और नेता बेनीप्रसाद वर्मा ने अन्ना को हरीशचंद्र की औलाद नहीं है तक कह डाला।
अन्ना हज़ारे को उनकी टीम से तोड़ने के लिए करोड़ों रुपए ख़र्च किए गए. किरण बेदी एक ईमानदार आईपीएस अफसर रही हैं। पूरी ज़िंदगी उन्होंने एक रुपए की रिश्वत नहीं ली और अपनी ईमानदारी के लिए नाम कमाया। सरकार ने आयकर विभाग का दुरुपयोग करते उनके बारे में कुछ जानकारियां निकालीं और फिर उन्हें तोड़-मरोड़ कर उनके खिलाफ प्रस्तुत किया गया। उनके खिलाफ  भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। अरविंद केजरीवाल जोकि एक आयकर आयुक्त जैसे पद पर रह चुके हैं, और जिन्होंने कभी एक पैसे की रिश्वत नहीं ली, उनके खिलाफ भी  भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाए गए।
इसी तरह कुमार विश्वास को आरएसएस का एजेंट तक कहा गया।
इनमें से एक भी आरोप आज तक साबित नहीं हुआ। केवल इन लोगों की छवि ख़राब करने के लिए सरकार ने एक के बाद एक षड्यंत्र रचे।

धोखा नं. 10: सरकार ने लोकसभा में एक बहुत ही कमज़ोर लोकपाल बिल पेश किया। इस बिल की देशभर में आलोचना हुई। बिल इतना ख़राब था कि इसके खिलाफ विपक्ष ने लोकसभा में 55 और राज्यसभा में 187 संशोधन  प्रस्तुत किए। लेकिन सरकार तो अड़ी हुई थी। ज़िद पर थी। किसी की सुनने को तैयार ही नहीं थी। सरकार ने ठान लिया था कि न तो देश के लोगों की सुनेगी और न संसद में विपक्ष की सुनेगी।
लोकसभा में यूपीए का बहुमत है। इस बहुमत का दुरुपयोग कर सरकार ने अपना कमज़ोर बिल लोकसभा में तो पास करा लिया। लेकिन राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। वहां अगर वोटिंग हो जाती तो इस बिल में कई संशोधन हो सकते थे। इसमें कई अच्छे संशोधन थे और इनसे बिल की कमियां दूर हो सकती थीं लेकिन सरकार ने लालू यादव को आगे कर संसद में हंगामा खड़ा करने का षड्यंत्र  रचा। लालू यादव की पार्टी के एक सांसद ने सदन में ही बिल की प्रतियां फाड़ कर फेंक दी और हंगामा कर दिया। इसके बाद राज्य सभा में वोटिंग नहीं होने दी गई।

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चर्चा समूह : साप्ताहिक पर्चा-1

``सरकारी लोकपाल कैसे धोखा है´´

कई लोग पूछ रहे हैं- ``लोकपाल बिल आ तो गया, अब अन्ना किस लिए लड़ रहें हैं?´´
  • सरकार ने जान बूझ कर लोगों में ये गलतफहमी पैदा की है। पहली बात तो ये है कि लोकपाल बिल अभी संसद में पारित नहीं हुआ है। अभी केवल लोकसभा में पारित हुआ है, राज्य सभा में अभी विचाराधीन है।
  • लेकिन ज्यादा गंभीर मसला ये है कि जो लोकपाल बिल सरकार ने संसद में पेश किया है वो बहुत ख़तरनाक है। यदि वो पास हो गया तो भ्रष्टाचार बहुत बढ़ जाएगा।
  • अन्ना ने सरकारी लोकपाल बिल में 34 संशोधन के सुझाव दिए थे, लेकिन सरकार ने उनमें से केवल एक ही बात मानी है। अन्ना की बाकि सारी बातें नामंजूर कर दी हैं।
  • लेकिन ज्यादा ख़तरनाक बात ये है कि सरकार ने अपनी तरपफ से इसमें कुछ ऐसी बातें डाल दी हैं, जिससे  भ्रष्टाचार बहुत बढ़ जाएगा। इसलिए किसी भी हालत में इस बिल को रोकना बहुत जरूरी है।
1. सरकारी लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथ की कठपुतली होगा :-
क) लोकपाल का चयन सीधे सरकार के हाथ में होगा- लोकपाल की चयन समिति में पांच सदस्य हैं- प्रधनमंत्री, नेता विपक्ष, लोकसभा स्पीकर, चीफ जस्टिस और सरकार का चुना एक गणमान्य वकील। ज़ाहिर है कि इसमें से तीन लोग सत्ता पक्ष के हैं। तो लोकपाल सीधे-सीधे सरकार के हाथ की कठपुतली होगा।
अन्ना ने सुझाव दिया था कि चयन समिति में नौ लोग होने चाहिए- प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, सुप्रीमकोर्ट के दो जज, दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सतर्कता आयुक्त। ज़ाहिर है कि अन्ना के द्वारा सुझाई चयन समिति सरकार के नियंत्राण से बाहर होती। अन्ना ने यह भी सुझाव दिया था कि एक खोज समिति बनाई जाए जिसमें- रिटायर्ड चीफ जस्टिस, रिटायर्ड सतर्कता आयुक्त,  रिटायर्ड सीएजी,  रिटायर्ड चुनाव आयुक्त होते। ये जनता से अच्छे लोगों के नाम मंगवाते, उन्हें वेबसाइट पर डालकर उन नामों पर जनता की राय मांगते और आपस में आम सहमति से उन नामों का चयन करते।
सरकार ने अन्ना की ये सारी मांगे खारिज कर दी हैं। सरकार की चयन प्रक्रिया के हिसाब से सत्ताधारी पार्टी किसी भी भ्रष्ट और अपने वफादार व्यक्ति को लोकपाल बना सकती है।
ख) लोकपाल को निकालना भी सरकार के नियंत्रण में होगा- सरकारी लोकपाल बिल के हिसाब से यदि लोकपाल  भ्रष्ट होता है तो केवल सरकार इसके बारे में सुप्रीमकोर्ट में शिकायत कर सकती है। एक आम आदमी भ्रष्ट लोकपाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा। जब तक सुप्रीमकोर्ट सरकार की शिकायत पर जांच करेगा उस दौरान सरकार लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड कर सकती है। यह बहुत ख़तरनाक है। मान लीजिए, लोकपाल ने किसी मंत्री के खिलाफ जांच शुरू कर दी तो सरकार लोकपाल के उस सदस्य के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में कोई झूठी शिकायत कर देगी और जब तक सुप्रीमकोर्ट उसकी जांच करेगा तब तक सरकार उस लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड कर देगी।
अन्ना ने सुझाव दिया था कि भ्रष्ट लोकपाल के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में शिकायत करने का अधिकार जनता को भी होना चाहिए। जब तक सुप्रीमकोर्ट जांच करता है, लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड करने का अधिकार सरकार को कतई नहीं होना चाहिए। ये अधिकार सुप्रीमकोर्ट को होना चाहिए।
सरकार ने अन्ना की बात नहीं मानी क्योंकि सरकार लोकपाल को अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखना चाहती है।
ग) लोकपाल के उच्च अधिकारीयों का चयन सरकार करेगी- सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक लोकपाल के सभी उच्च अधिकारियों का चयन सरकार करेगी।
अन्ना का कहना था कि अपने सभी अधिकारियों का चयन करने का अधिकारियों लोकपाल को होना चाहिए। लेकिन सरकार ने ये बात भी नहीं मानी।
घ) सरकारी लोकपाल एक टीन का खोखला डिब्बा- दुनिया में पहली बार एक ऐसी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी का गठन किया जा रहा है जिसके पास न जांच करने की ताकत होगी और न जांच करने की अपनी एजेंसी। सरकारी लोकपाल क़ानून के मुताबिक भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत की जांच लोकपाल को किसी  सरकारी एजेंसी से करानी होगी। ये कैसी व्यवस्था हुई\ सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी एजेंसी खुद ही जांच करेगी\ ज़ाहिर है कि जांच निष्पक्ष नहीं होगी और जांच में कुछ नहीं निकलेगा और सभी बड़े नेताओं और अफसरों को बचा लिया जाएगा।
अन्ना का कहना था कि सीबीआई देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी है। लेकिन सीबीआई अभी उन्हीं लोगों के कब्ज़े में है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप होते हैं। सीबीआई का सरकार जमकर दुरुपयोग भी करती है। सीबीआई को चिदंबरम जैसे भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जब-जब सरकार ख़तरें में होती है, तो सीबीआई को मायावती और मुलायम के पीछे छोड़कर, उन्हें डराकर उनकी पार्टियों का सहयोग लेने के लिए किया जाता है। इसलिए अन्नाजी का कहना है कि सीबीआई को सरकारी शिकंजे से निकालकर लोकपाल की जांच एजेंसी बनाया जाए।
लेकिन सरकार की तो नीयत ही ख़राब है वो किसी भी हालत में सीबीआई को अपने शिकंजे से मुक्त नहीं करेगी।
उपर्युक्त बातों से यह साफ ज़ाहिर है कि लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथों की कठपुतली होगा।

2. सरकारी लोकपाल बहुत ही ख़तरनाक है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है :-
क) भ्रष्टाचारियों को मुफ्त में वकील- सरकारी लोकपाल क़ानून के मुताबिक भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को कोर्ट में अपना बचाव करने के लिए सरकार मुफ्त में वकील देगी। पहली बार क़ानूनन इस तरह से खुलेआम भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए प्रावधान किया जा रहा है।
ख)  भ्रष्टाचार की शिकायत करने वालों को कठोर सज़ा- यदि कोई व्यक्ति लोकपाल को  भ्रष्टाचार के किसी मामले की शिकायत करता है और  शिकायत में पर्याप्त सबूत नहीं होने या उसकी शिकायत झूठी पाई जाती है तो उसे एक साल तक की क़ैद हो सकती है। अगर आज कोई व्यक्ति लोकपाल में भ्रष्टाचार की शिकायत करता है तो अगले दिन ही उसके खिलाफ भ्रष्ट अफसर या नेता कोर्ट में केस दर्ज कर सकेगा। इसके लिए सरकार भ्रष्टाचारियों को मुफ्त में अलग से वकील देगी। बेचारा शिकायतकर्ता शिकायत करने के अगले दिन से ही अपने को बचाने के लिए कोर्ट में चक्कर काटने लगेगा।
ग) सबसे ख़तरनाक बात- इस क़ानून के मुताबिक चंदा पाने वाली हर संस्था (चाहें रजिस्टर्ड हो या नहीं) लोकपाल के दायरे में आएंगी जैसे:- मंदिर, मिस्ज़द, गुरूद्वारे, चर्च, महिला मंडल, धार्मिक संस्था, रामलीला कमेटी, दुर्गा पूजा समिति, मदरसे, क्रिकेट क्लब, स्पोर्ट क्लब, युवा क्लब, मजदूर किसान संगठन, आंदोलन, प्रेस क्लब, सारे अस्पताल, सारी डिस्पेंसरी, आर.डब्ल्यू.ए., रोटरी क्लब, लाइंस क्लब इत्यादि। इस क़ानून के मुताबिक इन संस्थाओं में काम करने वाले सभी लोगों को सरकारी अधिकारी धोषित कर दिया गया है। तो अब इस क़ानून के मुताबिक मंदिरों में काम करने वाले सभी पंडित, मिस्ज़दों में नमाज़ पढ़ने वाले सभी मौलाना, गिरजों में बाइबल पढ़ने वाले सभी फादर, गुरूद्वारों के सभी ग्रंथी, प्राइवेट स्कूल और कॉलेज़ों के अध्यापक, प्राइवेट अस्पतालों के डाक्टर- ये सभी सरकारी अधिकारी घोषित कर दिए हैं। अब सरकार लोकपाल के ज़रिए कभी भी इनमें से किसी पर भी छापा मार सकती है। अपने को लोकपाल के चंगुल से बचाने के लिए इन सब को लोकपाल को मोटी-मोटी रिश्वत देनी पड़ेगी। मज़ेदार बात ये है कि बाकि सारे देश को लोकपाल में डाल दिया है, पर राजनैतिक पार्टियां इसके दायरे से बाहर हैं।
घ) केंद्र सरकार के 60 लाख में से 57 लाख कर्मचारी लोकपाल के दायरे के बाहर होंगे जैसे :- इनकम टैक्स इंस्पेक्टर, कस्टम अप्रैज़र, रेलवे का टी.टी इत्यादि। इनमें से यदि कोई व्यक्तिगत रिश्वत लेता है तो अब उसे जेल नहीं भेजा जा सकेगा यानि की केंद्र सरकार के 57 लाख कर्मचारी रिश्वत लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।
ड़) अगर कोई सांसद या विधायक रिश्वत लेकर संसद में या विधानसभा में प्र'न पूछता है या वोटिंग करता है तो उसकी जांच भी लोकपाल नहीं कर सकेगा।
च) अगर कोई अधिकारी भ्रष्टाचार करता है तो उसे नौकरी से निकालने का अधिकारी उसी विभाग के मंत्री को होगा। अधिकतर मामलों में मंत्रियों तक रिश्वत का हिस्सा पहुंचता है। आज़ादी के बाद से आजतक किसी मंत्री ने अपने नीचे काम करने वाली किसी भ्रष्ट सैक्रेटरी को नौकरी से निकालने की इज़ाजत नहीं दी है। तो अब हम भविष्य में उनसे ऐसा करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं\ ज़ाहिर है कि इस प्रावधान से भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिलेगा।

3.  भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा :-
आज अगर कोई सूचना का अधिकार क़ानून से सूचना मांगता है या  भ्रष्टाचार की कोईशिकायत करता है तो उस पर जानलेवा हमला कर दिया जाता है। पिछले एक साल में 13 ऐसे लोगों का क़त्ल कर दिया गया। सतेंद्र दुबे, मंजुनाथ, सतीश शेट्टी, अमित जेठवा, दत्ता पाटिल, विट्ठल गिटे, सोलारंगा राव, शशिधर मिश्रा, विश्राम लक्षमण डोडिया, वैंकटेश, ललित कुमार मेहता,कामेश्वर यादव, सहला मसूद आदि ऐसे कई शहीदों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अभी पिछले दिनों बागपत जिले में मनोज ने जब शिक्षा विभाग और खाद्य विभाग में  भ्रष्टाचार को उजागर किया तो तलवारों से उसपर जानलेवा हमला किया गया। इन सभी मामलों में स्थानीय पुलिस अकसर  भ्रष्टाचारियों के साथ मिली होती है। एक तरफ तो  भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को हमले बर्दाश्त करने पड़ते हैं, दूसरी तरफ पुलिस उनपर झूठे मुकदमें लगाकर इन्हें प्रताड़ित करती है। मनोज और उसके परिवार के सदस्य पर अनेक ऐसे झूठे मुकदमें लगा दिए हैं।
लोकपाल आने पर यदि कोई लोकपाल को शिकायत करेगा तो ज़ाहिर है कि उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाएगा। अन्ना का कहना था कि लोकपाल के पास ऐसे लोगों को संरक्षण देने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन सरकार ने अन्ना की ये बात भी नहीं मानी।

4.  भ्रष्टाचार करने वालों को सज़ा :-
अभी क़ानूनन  भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिकतम सज़ा सात साल की है। अन्ना का कहना था कि  भ्रष्टाचार के संगीन मामलों में इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास तक किया जाए। लेकिन सरकार ने यह बात नहीं मानी।
आज अकसर देखने में आता है कि कंपनियां रिश्वत देकर सरकार से तरह-तरह के फायदे लेती है। अन्ना का कहना था कि अगर किसी कंपनी के खिलाफ कोर्ट में  भ्रष्टाचार साबित हो जाता है तो उस कंपनी को भविष्य में कभी सरकारी ठेका न दिया जाए।  भ्रष्टाचार के ज़रिए उस कंपनी ने सरकार को जो नुकसान पहुंचाया उसकी पांच गुनी रकम उस कंपनी से जुर्माने के रूप में वसूल की जाए। सरकार ने अन्ना की ये बात भी नहीं मानी।

5. लोकपाल के कर्मचारी यदि  भ्रष्ट हो गए तो क्या होगा :-
सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक लोकपाल खुद अपने  भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ जांच करेगा। इसमें शक पैदा होता है कि लोकपाल कहीं अपने कर्मचारियों को बचाने की कोशिश न करे। इसकी वज़ह से लोकपाल  भ्रष्टाचार का अड्डा बन सकता है।
अन्ना का कहना था कि लोकपाल के कर्मचारियों के  भ्रष्टाचार कीशिकायत  के लिए हर राज्य में एक स्वतंत्र शिकायत आयोग बनाया जाए जो खुले में सबके सामने ऐसी शिकायतों की सुनवाई करके  भ्रष्टाचार साबित होने पर लोकपाल के  भ्रष्ट कर्मचारियों को दो महीने में नौकरी से निकाल दे। लोकपाल की कार्यप्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेही बनाने के लिए अन्ना के जन लोकपाल में अन्य कई सुझाव थे, लेकिन सरकार ने इनमें से कोई सुझाव नहीं माना।

6. लोकपाल खाली बैठा रहेगा:- 
सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक यदि लोकपाल की नज़र में कोई  भ्रष्टाचार का मामला आता है, तो वह खुद कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कोई शिकायत न करें और शिकायत करने से लोग डरेंगे क्योंकि शिकायतकर्ता पर तो अगले दिन ही केस कर दिया जाएगा। तो प्रश्न उठता है कि सरकारी लोकपाल क्या खाली बैठा रहेगा।

7. आम आदमी  भ्रष्टाचार झेलता रहेगा:- 
आम आदमी का  भ्रष्टाचार और महंगाई से देश में जीना मुश्किल हो गया है। अन्ना ने कहा था कि आम जनता को  भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए सिटिज़न लाओ। अगर किसी व्यक्ति का तय समय सीमा में काम न हो तो लोकपाल उस विभाग के प्रमुख की तनख्वाह काटे जो शिकायतकर्ता को मुआवज़े के रूप में दी जाए। दो मामलों में भी यदि विभाग प्रमुख की तनख्वाह कट गई तो सारा विभाग ठीक से काम करने लगेगा। लेकिन सरकार जलेबी वाला सिटीज़न चार्टर बिल लाई है। सरकारी बिल के हिसाब से किसी विभाग में यदि काम कराना है तो पहले वह आदमी सम्बंधित अधिकारी के पास जाएगा। फिर उसी विभाग में जन शिकायत अधिकारी के पास जाएगा। फिर उसी विभाग में अपीलीय अधिकारी के पास जाएगा। फिर प्राधिकृत अधिकारी के पास जाएगा। फिर जन शिकायत आयोग में जाएगा। फिर लोकायुक्त के पास जाएगा। सरकार लोगों को परेशान करना चाहती है या उनका काम कराना चाहती है\ सरकारी क़ानून में काम न होने पर अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान इतना लचर है कि किसी पर जुर्माना लगेगा ही नहीं। तो भला कोई क्यों काम करेगा\
सरकार ने अब खुली चुनौती दी है अन्ना के जनलोकपाल की अब कोई बात नहीं मानी जाएगी। सरकार का कहना है :-``आप आंदोलन करते रहिए। क़ानून बनाना हमारा काम है। हमे आंदोलन की कोई परवाह नहीं हैं´´ 
अब प्रश्न ये उठता है कि ऐसे में सरकार को कैसे सख्त क़ानून बनाने के लिए मनाया जाए\

हम सख्त लोकपाल के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। अपनी अंतिम सांस तक हम लड़ते रहेंगे। क्या आप भी समर्पित हैं\

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