Saturday, February 4, 2012

चर्चा समूह : साप्ताहिक पर्चा-3


देशभर में कई जगह अन्ना चर्चा समूह की बैठकें शुरू हो गई हैं साथ ही साथ कुछ राज्यों में चुनाव भी हो रहा है। लेकिन इसी बीच में एक बात जो सबसे अधिक चर्चा में रही वो रही अन्ना जी के स्वास्थ्य के संबंध् में। अन्ना जी के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की ख़बरें आई, कई विवाद भी हुए।

अन्ना जी का स्वास्थ्य:
अन्ना जी पुणे के संचेती अस्पताल में जनवरी, 2012 के पहले हफ्रते में भर्ती हुए थे। उन्हें खांसी ज़ुकाम था। संचेती जी से अन्ना जी की पिछले 25 सालों से दोस्ती है। हमें उम्मीद है कि उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। लेकिन जो दवाइयां उन्हें दी गईं, ऐसा लगता है कि उनका साइड-इफेक्ट हो गया, जिसकी वजह से अन्ना जी को कुछ दिनों के लिए दिल्ली के मेदांता अस्पताल में भर्ती किया गया। इस समय वो वहां से छुटकर बैंगलोर गए हुए हैं। वहां अपना नैचरोपैथी से इलाज करा रहे हैं। अभी अन्ना जी कि तबीयत ठीक है पर कमज़ोरी कापफी ज़्यादा है। अन्ना जी ने अपने बयान में भी यह कहा है कि उनका शरीर ज्यादा दवाइयों को सह नहीं पाया। 

चुनावों में हमारी भूमिका: 
जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं वहां सभी पार्टियों के घोषणा पत्र जारी हो रहे हैं। उसमें सभी वोटर्स को लुभाने कीकोशिशें की जा रही हैं, लेकिन देश और समाज की जरूरतों के बारे में कहीं बात नहीं हो रही है। किसी भी पार्टी का वीज़न और विचारधारा नज़र नहीं आ रही। जब हमने पार्टी सिस्टम अपने देश में अपनाया तो ये उम्मीद थी कि अलग-अलग विचारों के आधार पर पार्टियां बनेगी। लेकिन आज उसका उल्टा हो रहा है। आज अलग-अलग पार्टियां विचारधाराओं की जगह व्यक्तित्व की वजह से बन रहीं हैं। इसका कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि हर पार्टी का नेता सिर्फ पद और पैसे के पीछे भाग रहा है। अगर विचारधाराओं के आधार पर पार्टी बने तब तो जनतंत्र मज़बूत होगा। जैसे समाजवादी पार्टी का नाम तो रख लिया पर समाजवादी विचारों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। ऐसे ही बहुजन समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी आदि नाम तो रख दिया पर सबका एक ही लक्षय है `सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता´।
इस देश में हर आदमी टैक्स देता है यहां तक कि भिखारी भी टैक्स देता है। क्योंकि जब एक भिखारी बाज़ार से माचिस भी लेता है तो उसे साल्स टैक्स, एक्साइस ड्यूटी न जाने कौन-कौन से टैक्स देने पडते हैं। तो ये जितना भी सरकारी पैसा है वो हमारा पैसा है और हमारे नेता कहते हैं कि अगर वो जीतकर आएं तो प्रफी में लैपटॉप देंगे, साइकिल देंगे। यानि हमारे पैसों से हमें ही रिश्वत देंगे। ये क्या पैसे पेड़ों से लाएंगे? ये है तो हमारा ही पैसा। हमारे पैसों को खुद भी लूटेंगे और हमें रिश्वत भी देंगे। वो भी जनता तक नहीं पहुंचने वाला। लैपटॉप और साइकिल के ठेकों में कमाएंगे। सारी की सारी साइकिलें, लैपटॉप सिर्फ कागजों में आएंगे और फर्जी बिल बनाएंगे। इस तरह से यह पूरा का पूरा लूटतंत्र है । जो ये पार्टियों के घोषणा पत्र आए हैं इससे न तो देश के लिए उम्मीद बनती है और न ही समाज के लिए। एक पार्टी ने कहा कि पांच साल में बीस लाख नौकरियां देंगे। हम पूछना चहते हैं कि आप बीस लाख नौकरियां कहां से ले आएंगे? और दूसरी बात जहां आप पहले से सत्ता में है वहां क्यों नहीं दे रहें ये नौकरियां। साथ ही ये बताए कि कितने किसानों की जमीन छीन कर उनका रोजगार छीन कर ये 20 लाख नौकरियां देंगे? सवाल यह है कि जो ये चुनाव हो रहें हैं क्या इन चुनावों से कुछ बदलाव होगा? या सिर्फ लोग एक बार फिर से वोट डालेंगे और पांच साल के लिए अपना राजा या रानी चुनेंगे। हम कब तक बस राजा रानी बदलते रहेंगे, चेहरे बदलते रहेंगे और ये देश जो गर्त में जा रहा है वह जाता रहेगा।
सवाल ये भी है कि जो पार्टियां बड़े बड़े वादों के साथ चुनाव लड़ रही है वह देश में कहीं न कहीं राज्यों या केंद्र में सत्ता में है। हमारा सवाल है कि ये पार्टियां अपने बड़े बड़े वादें पहले वहां क्यों नहीं लागू करती है जहां वो सत्ता में हैं।
हैरानी की बात यह है कि वो सारे मुद्दे जो आम जनता से जुड़े हुए है, देश के आज और कल को तय करने वाले हैं उनका जिक्र ना तो किसी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में है और ना ही किसी नेता के भाषण में। कोई पार्टी इन मुद्दों पर बात नहीं कर रही है। कोई पार्टी कहती है कि मुसलमानों को आरक्षण देंगे, तो कोई पीछड़ों को आरक्षण देंगे। लेकिन इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि जिसको भी आरक्षण देंगे क्या जब वो नौकरी लेने जाएगा तो उससे रिश्वत नहीं मांगी जाएगी। क्या ये पर्टियां रिश्वतखोरी में भी आरक्षण देंगी? यानी अब मुसलमानों से रिश्वत नहीं लेंगे, क्रिश्चियन से रिश्वत नहीं लेंगे या ये कहें कि महंगाई अब  क्रिश्चियन और मुसलमानों के लिए नहीं होगी उसमें भी आरक्षण चलेगा। जबकि सच्चाई यह है कि महंगाई और भ्रष्टाचार से हर धर्म और जाति के लोग पीडित है। इन मुद्दों पर कोई पार्टी बात ही नहीं करना चाहती क्योंकि एक आम आदमी जब महंगाई से जूझता है, जब अपने पैसे देता है तो वो सारा पैसा इन नेताओं तक पहुंचता है। ऐसी व्यवस्था बन गई कि ये हर आदमी का खून चूसते हैं। चाहे वो हिंदू हो, मुसलमान हो या  क्रिश्चियन हो।

अन्ना जी का तमाम राजनीतिक दलों को पत्र:
अन्ना जी ने तमाम राजनीतिक दलों को पत्रा लिख कर लोकपाल और देश के अन्य मुद्दों पर उनकी राय जनता के सामने स्पष्ट करने का आग्रह किया है। 

सभी पार्टियों से सवाल:
1. क्या आप मानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लाया गया बिल बेहद कमज़ोर है, भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देता है और इसके आने से जनता को प्रताड़ित करने के लिए सरकार के पास लोकपाल नाम का एक और हथियार हो जाएगा?
2. क्या आप मानते हैं कि सीबीआई को पूरी तरह से सरकारी चंगुल से बाहर किया जाए?
3. क्या आप संसद में सरकारी लोकपाल का जम कर विरोध् करेंगे? क्या आप उसे वापिस लेकर एक सशक्त लोकपाल की मांग करेंगे?
4. उत्तराखंड सरकार ने बेहद सशक्त और प्रभावशाली लोकायुक्त बिल पारित किया है। इसमें अलग जांच एजेंसी, निष्पक्ष नियुक्ति, तुरंत एवं सख्त सज़ा, सिटीजन चार्टर आदि तमाम बातें मान ली गई हैं। यदि इन चुनावों के बाद आपकी सरकार बनती है तो क्या आप बाकी राज्यों में ऐसा ही बिल लाएंगे?
5. क्या आप मानते हैं कि लोकपाल जैसे अहम् क़ानून जनता की भागीदारी से बनने चाहिए? आज हमारे देश में क़ानून बनाने की प्रक्रिया से क्या आप सहमत हैं? क्या आपको नहीं लगता कि जब लोकपाल जैसे अहम् क़ानून बनाए जाए तो उसमें जनता की भागीदारी होनी चाहिए? ऐसे क़ानून जनता से पूछकर बनने चाहिए? जनता पर ख़राब क़ानून थोपे नहीं जाने चाहिए? संविधान में, गांव में रहने वाले सभी वोटर्स की सभा को ग्राम सभा कहते हैं। शहरों में इस तरह की किसी सभा का कहीं ज़िक्र नहीं है। शहरों में भी मोहल्ला सभाओं का गठन किया जाना चाहिए। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह के अहम् क़ानून ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं से मशविरे के बाद बनने चाहिए? यदि प्रदेश में आपकी सरकार बनती है तो क्या आप ऐसी व्यवस्था लागू करेंगे?
6. जमीनों के अधिग्रहण में आज सबसे ज्यादा  भ्रष्टाचार है। गरीब किसानों की उपजाउ भूमि औने-पौने दामों में छीनकर बिल्डरों, प्रापर्टी डीलरों और कंपनियों को दे दी जाती है। देश का अधिकतर काला धन जमीनों में जा रहा है। भूमि अधिग्रहण क़ानून 1894, गरीबों को और गरीब बनाने और किसानों को बेरोजगार करने का साधन बन गया है।
क) क्या आप सहमत हैं कि इस क़ानून को खारिज किया जाए?
ख) क्या आप सहमत हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाली ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं की मंजूरी के बिना किसी भूमि का अधिग्रहण नहीं होना चाहिए? यदि आपकी सरकार आती है तो क्या आप ऐसा क़ानून लाएंगे? क्या तब तक आप सारे भूमि अधिग्रहण पर रोक लगा देंगे?

राहुल गाँधी जी से सवाल :
1. सीबीआई को क्या सरकार के चंगुल में रहना चाहिए? सरकार सीबीआई के जरिए चिदंबरम जैसे  भ्रष्ट नेताओं को बचाती है। क्या आप इसका समर्थन करते हैं? सीबीआई का दुरुपयोग करके मायावती और मुलायम सिंह की पार्टियों का समर्थन हासिल कर जोड़तोड़ करके केंद्र में सत्ताधारी पार्टी अपनी सरकार चलाती है? क्या आप इसका समर्थन करते हैं? जनता जानना चाहती है कि सीबीआई सरकारी चंगुल से बाहर करने में आपकी सरकार इतना क्यों डरती है?
2. उत्तराखंड सरकार एक सख्त लोकायुक्त बिल लाई है। यदि कांग्रेस इन राज्यों में जीत कर आती है, तो क्या ऐसा बिल लाने की हिम्मत करेगी? या केंद्र जैसा ही लचर और ख़तरनाक लोकायुक्त राज्यों में भी लाया जाएगा।
3. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

मुलायम सिंह जी एवं मायावती जी से सवाल :
1. लोकसभा में जब लोकपाल क़ानून प्रस्तुत किया गया तो कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचाने के लिए आपकी पार्टी संसद से उठकर क्यों चली गई?
2. चुनाव के बाद क्या आप कांग्रेस या बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे? गठबंध्न की शर्तों में क्या आपके शीर्ष नेताओं के खिलाफ सीबीआई के मुकदमे वापिस लेने की शर्त भी होगी?
3. अगर आप चुनाव जीत गए तो क्या उत्तराखंड जैसा सख्त लोकायुक्त क़ानून बाकी राज्यों में पारित करेंगे?
4. क्या केंद्र के कमज़ोर लोकपाल क़ानून का आप विरोध् करेंगे? और क्या सख्त लोकपाल क़ानून के लिए आप लड़ेंगे?
5. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

भाजपा से सवाल :
1. उत्तराखंड में खंडूरी जी ने देश का सबसे सशक्त लोकायुक्त क़ानून बनाया है। लेकिन भाजपा इस बिल से पूरी तरह सहमत नहीं नज़र आती। उस बिल के किन प्रावधानों से भाजपा को आपत्ति है? यदि भाजपा उत्तराखंड क़ानून से सहमत हैं, तो उसे बाकि भाजपा शासित राज्यों में क्यों नहीं लागू किया जाता?
2. क्या केंद्र के कमज़ोर लोकपाल क़ानून का आप विरोध् करेंगे? और क्या सशक्त लोकपाल क़ानून के लिए आप लड़ेंगे?
3. क्या आपकी पार्टी क़ानून बनाने में सांसदों के साथ-साथ जनता की भागीदारी के लिए क़ानून लाएगी?

चर्चा समूहों के आयोजकों की भूमिका क्या होगी?
दो-तीन चीज़े है कि एक तो ये चर्चा समूह जितने चल रहे है ये ज्यादा से ज्यादा संख्या में पूरे देश में हो। तो आप अपने सारे दोस्तों को रिश्तेदारों को कहिए कि वो चर्चा समूह के बारे में जाने। इसके लिए एक नया नंबर (09212123212) शुरू किया गया है। इस नंबर पर कोई भी फ़ोन करेगा तो उसे यह पता चल जाएगा कि चर्चा समूह क्या है और इसका आयोजन कैसे किया जा सकता है\ तो अब इस नंबर का खूब प्रचार कीजिए और जनता से कहिए कि वो इसे सुनें ताकि वो अपने-अपने इलाके में खुद ही चर्चा समूह शुरू कर सके। दूसरा जो-जो लोग चर्चा समूह कर रहे हैं वो लोग हर सप्ताह हमारी वेबसाइट www.indiaagainstcorruption.org से एक फिल्म डाउनलोड करके इसकी सीडी बना कर चर्चा समूहों में दिखा सकते हैं। मान लीजिए आप फिल्म नहीं दिखा सकते तो वेबसाइट पर इसकी ऑडियो रेकॉर्डिंग भी है उसे आप डाउनलोड कर लीजिए और ऑडियो को चला दीजिए। फिल्म को सुनाना या दिखाना, पर्चे पढ़ने के साथ-साथ बहुत जरूरी है। तीसरी चीज- अगर चर्चा के दौरान या चर्चा के बाद आपके मन में कुछ प्रश्न आते हैं और आप चाहते है कि उन प्रश्नों पर या किसी अन्य सुझाव पर हम अगले अंक में बातचीत करे तो आप उन्हें हम तक जरूर पहुंचाए। उन्हें पहुंचाने का तरीका है कि आप हेल्पलाइन नंबर- 09718500606 पर फ़ोन  करके या indiaagainstcorruption.2010@gmail.com पर ईमेल करके हमें बताएं। 
इस बार की चर्चा में ये भी जरूर चर्चा कीजिए कि इन चर्चा समूहों का कुछ फ़ायदा भी है या नहीं है? इसे आगे चलाना चाहिए कि नहीं। अगर चलाना चाहिए तो क्या-क्या बदलाव करने चाहिए? यह आंदोलन हमारा और आपका आंदोलन है। और आंदोलन का बहुत बड़ा हिस्सा है ये चर्चा समूह। क्योंकि इन चर्चा समूहों के जरिए इस देश में हम एक वैचारिक क्रांति लाने का सपना देख रहे हैं। तो इन्हें हमें बहुत सशक्त बनाना है। इस बार आप यह भी जरूर चर्चा कीजिए कि इन चर्चा समूहों को और कैसे सशक्त बनाया जाए।
आपके मन में जो भी सवाल आएं वो आप हेल्पलाइन पर फ़ोन करके अवश्य पूछे। जरूरी नहीं है कि कोई आयोजक ही सारे सवाल इकट्ठा करके पूछे चर्चा समूह में शामिल कोई भी सदस्य हेल्पलाइन नंबर- 09718500606 पर फ़ोन करके पूछ सकता है।

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