``सरकारी लोकपाल कैसे धोखा है´´
कई लोग पूछ रहे हैं- ``लोकपाल बिल आ तो गया, अब अन्ना किस लिए लड़ रहें हैं?´´
- सरकार ने जान बूझ कर लोगों में ये गलतफहमी पैदा की है। पहली बात तो ये है कि लोकपाल बिल अभी संसद में पारित नहीं हुआ है। अभी केवल लोकसभा में पारित हुआ है, राज्य सभा में अभी विचाराधीन है।
- लेकिन ज्यादा गंभीर मसला ये है कि जो लोकपाल बिल सरकार ने संसद में पेश किया है वो बहुत ख़तरनाक है। यदि वो पास हो गया तो भ्रष्टाचार बहुत बढ़ जाएगा।
- अन्ना ने सरकारी लोकपाल बिल में 34 संशोधन के सुझाव दिए थे, लेकिन सरकार ने उनमें से केवल एक ही बात मानी है। अन्ना की बाकि सारी बातें नामंजूर कर दी हैं।
- लेकिन ज्यादा ख़तरनाक बात ये है कि सरकार ने अपनी तरपफ से इसमें कुछ ऐसी बातें डाल दी हैं, जिससे भ्रष्टाचार बहुत बढ़ जाएगा। इसलिए किसी भी हालत में इस बिल को रोकना बहुत जरूरी है।
1. सरकारी लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथ की कठपुतली होगा :-
क) लोकपाल का चयन सीधे सरकार के हाथ में होगा- लोकपाल की चयन समिति में पांच सदस्य हैं- प्रधनमंत्री, नेता विपक्ष, लोकसभा स्पीकर, चीफ जस्टिस और सरकार का चुना एक गणमान्य वकील। ज़ाहिर है कि इसमें से तीन लोग सत्ता पक्ष के हैं। तो लोकपाल सीधे-सीधे सरकार के हाथ की कठपुतली होगा।
अन्ना ने सुझाव दिया था कि चयन समिति में नौ लोग होने चाहिए- प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, सुप्रीमकोर्ट के दो जज, दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सतर्कता आयुक्त। ज़ाहिर है कि अन्ना के द्वारा सुझाई चयन समिति सरकार के नियंत्राण से बाहर होती। अन्ना ने यह भी सुझाव दिया था कि एक खोज समिति बनाई जाए जिसमें- रिटायर्ड चीफ जस्टिस, रिटायर्ड सतर्कता आयुक्त, रिटायर्ड सीएजी, रिटायर्ड चुनाव आयुक्त होते। ये जनता से अच्छे लोगों के नाम मंगवाते, उन्हें वेबसाइट पर डालकर उन नामों पर जनता की राय मांगते और आपस में आम सहमति से उन नामों का चयन करते।
सरकार ने अन्ना की ये सारी मांगे खारिज कर दी हैं। सरकार की चयन प्रक्रिया के हिसाब से सत्ताधारी पार्टी किसी भी भ्रष्ट और अपने वफादार व्यक्ति को लोकपाल बना सकती है।
ख) लोकपाल को निकालना भी सरकार के नियंत्रण में होगा- सरकारी लोकपाल बिल के हिसाब से यदि लोकपाल भ्रष्ट होता है तो केवल सरकार इसके बारे में सुप्रीमकोर्ट में शिकायत कर सकती है। एक आम आदमी भ्रष्ट लोकपाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा। जब तक सुप्रीमकोर्ट सरकार की शिकायत पर जांच करेगा उस दौरान सरकार लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड कर सकती है। यह बहुत ख़तरनाक है। मान लीजिए, लोकपाल ने किसी मंत्री के खिलाफ जांच शुरू कर दी तो सरकार लोकपाल के उस सदस्य के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में कोई झूठी शिकायत कर देगी और जब तक सुप्रीमकोर्ट उसकी जांच करेगा तब तक सरकार उस लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड कर देगी।
अन्ना ने सुझाव दिया था कि भ्रष्ट लोकपाल के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में शिकायत करने का अधिकार जनता को भी होना चाहिए। जब तक सुप्रीमकोर्ट जांच करता है, लोकपाल के सदस्य को सस्पेंड करने का अधिकार सरकार को कतई नहीं होना चाहिए। ये अधिकार सुप्रीमकोर्ट को होना चाहिए।
सरकार ने अन्ना की बात नहीं मानी क्योंकि सरकार लोकपाल को अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखना चाहती है।
ग) लोकपाल के उच्च अधिकारीयों का चयन सरकार करेगी- सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक लोकपाल के सभी उच्च अधिकारियों का चयन सरकार करेगी।
अन्ना का कहना था कि अपने सभी अधिकारियों का चयन करने का अधिकारियों लोकपाल को होना चाहिए। लेकिन सरकार ने ये बात भी नहीं मानी।
घ) सरकारी लोकपाल एक टीन का खोखला डिब्बा- दुनिया में पहली बार एक ऐसी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी का गठन किया जा रहा है जिसके पास न जांच करने की ताकत होगी और न जांच करने की अपनी एजेंसी। सरकारी लोकपाल क़ानून के मुताबिक भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत की जांच लोकपाल को किसी सरकारी एजेंसी से करानी होगी। ये कैसी व्यवस्था हुई\ सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी एजेंसी खुद ही जांच करेगी\ ज़ाहिर है कि जांच निष्पक्ष नहीं होगी और जांच में कुछ नहीं निकलेगा और सभी बड़े नेताओं और अफसरों को बचा लिया जाएगा।
अन्ना का कहना था कि सीबीआई देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी है। लेकिन सीबीआई अभी उन्हीं लोगों के कब्ज़े में है, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप होते हैं। सीबीआई का सरकार जमकर दुरुपयोग भी करती है। सीबीआई को चिदंबरम जैसे भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जब-जब सरकार ख़तरें में होती है, तो सीबीआई को मायावती और मुलायम के पीछे छोड़कर, उन्हें डराकर उनकी पार्टियों का सहयोग लेने के लिए किया जाता है। इसलिए अन्नाजी का कहना है कि सीबीआई को सरकारी शिकंजे से निकालकर लोकपाल की जांच एजेंसी बनाया जाए।
लेकिन सरकार की तो नीयत ही ख़राब है वो किसी भी हालत में सीबीआई को अपने शिकंजे से मुक्त नहीं करेगी।
उपर्युक्त बातों से यह साफ ज़ाहिर है कि लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथों की कठपुतली होगा।
2. सरकारी लोकपाल बहुत ही ख़तरनाक है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है :-
क) भ्रष्टाचारियों को मुफ्त में वकील- सरकारी लोकपाल क़ानून के मुताबिक भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को कोर्ट में अपना बचाव करने के लिए सरकार मुफ्त में वकील देगी। पहली बार क़ानूनन इस तरह से खुलेआम भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए प्रावधान किया जा रहा है।
ख) भ्रष्टाचार की शिकायत करने वालों को कठोर सज़ा- यदि कोई व्यक्ति लोकपाल को भ्रष्टाचार के किसी मामले की शिकायत करता है और शिकायत में पर्याप्त सबूत नहीं होने या उसकी शिकायत झूठी पाई जाती है तो उसे एक साल तक की क़ैद हो सकती है। अगर आज कोई व्यक्ति लोकपाल में भ्रष्टाचार की शिकायत करता है तो अगले दिन ही उसके खिलाफ भ्रष्ट अफसर या नेता कोर्ट में केस दर्ज कर सकेगा। इसके लिए सरकार भ्रष्टाचारियों को मुफ्त में अलग से वकील देगी। बेचारा शिकायतकर्ता शिकायत करने के अगले दिन से ही अपने को बचाने के लिए कोर्ट में चक्कर काटने लगेगा।
ग) सबसे ख़तरनाक बात- इस क़ानून के मुताबिक चंदा पाने वाली हर संस्था (चाहें रजिस्टर्ड हो या नहीं) लोकपाल के दायरे में आएंगी जैसे:- मंदिर, मिस्ज़द, गुरूद्वारे, चर्च, महिला मंडल, धार्मिक संस्था, रामलीला कमेटी, दुर्गा पूजा समिति, मदरसे, क्रिकेट क्लब, स्पोर्ट क्लब, युवा क्लब, मजदूर किसान संगठन, आंदोलन, प्रेस क्लब, सारे अस्पताल, सारी डिस्पेंसरी, आर.डब्ल्यू.ए., रोटरी क्लब, लाइंस क्लब इत्यादि। इस क़ानून के मुताबिक इन संस्थाओं में काम करने वाले सभी लोगों को सरकारी अधिकारी धोषित कर दिया गया है। तो अब इस क़ानून के मुताबिक मंदिरों में काम करने वाले सभी पंडित, मिस्ज़दों में नमाज़ पढ़ने वाले सभी मौलाना, गिरजों में बाइबल पढ़ने वाले सभी फादर, गुरूद्वारों के सभी ग्रंथी, प्राइवेट स्कूल और कॉलेज़ों के अध्यापक, प्राइवेट अस्पतालों के डाक्टर- ये सभी सरकारी अधिकारी घोषित कर दिए हैं। अब सरकार लोकपाल के ज़रिए कभी भी इनमें से किसी पर भी छापा मार सकती है। अपने को लोकपाल के चंगुल से बचाने के लिए इन सब को लोकपाल को मोटी-मोटी रिश्वत देनी पड़ेगी। मज़ेदार बात ये है कि बाकि सारे देश को लोकपाल में डाल दिया है, पर राजनैतिक पार्टियां इसके दायरे से बाहर हैं।
घ) केंद्र सरकार के 60 लाख में से 57 लाख कर्मचारी लोकपाल के दायरे के बाहर होंगे जैसे :- इनकम टैक्स इंस्पेक्टर, कस्टम अप्रैज़र, रेलवे का टी.टी इत्यादि। इनमें से यदि कोई व्यक्तिगत रिश्वत लेता है तो अब उसे जेल नहीं भेजा जा सकेगा यानि की केंद्र सरकार के 57 लाख कर्मचारी रिश्वत लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।
ड़) अगर कोई सांसद या विधायक रिश्वत लेकर संसद में या विधानसभा में प्र'न पूछता है या वोटिंग करता है तो उसकी जांच भी लोकपाल नहीं कर सकेगा।
च) अगर कोई अधिकारी भ्रष्टाचार करता है तो उसे नौकरी से निकालने का अधिकारी उसी विभाग के मंत्री को होगा। अधिकतर मामलों में मंत्रियों तक रिश्वत का हिस्सा पहुंचता है। आज़ादी के बाद से आजतक किसी मंत्री ने अपने नीचे काम करने वाली किसी भ्रष्ट सैक्रेटरी को नौकरी से निकालने की इज़ाजत नहीं दी है। तो अब हम भविष्य में उनसे ऐसा करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं\ ज़ाहिर है कि इस प्रावधान से भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिलेगा।
3. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा :-
आज अगर कोई सूचना का अधिकार क़ानून से सूचना मांगता है या भ्रष्टाचार की कोईशिकायत करता है तो उस पर जानलेवा हमला कर दिया जाता है। पिछले एक साल में 13 ऐसे लोगों का क़त्ल कर दिया गया। सतेंद्र दुबे, मंजुनाथ, सतीश शेट्टी, अमित जेठवा, दत्ता पाटिल, विट्ठल गिटे, सोलारंगा राव, शशिधर मिश्रा, विश्राम लक्षमण डोडिया, वैंकटेश, ललित कुमार मेहता,कामेश्वर यादव, सहला मसूद आदि ऐसे कई शहीदों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अभी पिछले दिनों बागपत जिले में मनोज ने जब शिक्षा विभाग और खाद्य विभाग में भ्रष्टाचार को उजागर किया तो तलवारों से उसपर जानलेवा हमला किया गया। इन सभी मामलों में स्थानीय पुलिस अकसर भ्रष्टाचारियों के साथ मिली होती है। एक तरफ तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को हमले बर्दाश्त करने पड़ते हैं, दूसरी तरफ पुलिस उनपर झूठे मुकदमें लगाकर इन्हें प्रताड़ित करती है। मनोज और उसके परिवार के सदस्य पर अनेक ऐसे झूठे मुकदमें लगा दिए हैं।
लोकपाल आने पर यदि कोई लोकपाल को शिकायत करेगा तो ज़ाहिर है कि उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाएगा। अन्ना का कहना था कि लोकपाल के पास ऐसे लोगों को संरक्षण देने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन सरकार ने अन्ना की ये बात भी नहीं मानी।
4. भ्रष्टाचार करने वालों को सज़ा :-
अभी क़ानूनन भ्रष्टाचार के खिलाफ अधिकतम सज़ा सात साल की है। अन्ना का कहना था कि भ्रष्टाचार के संगीन मामलों में इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास तक किया जाए। लेकिन सरकार ने यह बात नहीं मानी।
आज अकसर देखने में आता है कि कंपनियां रिश्वत देकर सरकार से तरह-तरह के फायदे लेती है। अन्ना का कहना था कि अगर किसी कंपनी के खिलाफ कोर्ट में भ्रष्टाचार साबित हो जाता है तो उस कंपनी को भविष्य में कभी सरकारी ठेका न दिया जाए। भ्रष्टाचार के ज़रिए उस कंपनी ने सरकार को जो नुकसान पहुंचाया उसकी पांच गुनी रकम उस कंपनी से जुर्माने के रूप में वसूल की जाए। सरकार ने अन्ना की ये बात भी नहीं मानी।
5. लोकपाल के कर्मचारी यदि भ्रष्ट हो गए तो क्या होगा :-
सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक लोकपाल खुद अपने भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ जांच करेगा। इसमें शक पैदा होता है कि लोकपाल कहीं अपने कर्मचारियों को बचाने की कोशिश न करे। इसकी वज़ह से लोकपाल भ्रष्टाचार का अड्डा बन सकता है।
अन्ना का कहना था कि लोकपाल के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार कीशिकायत के लिए हर राज्य में एक स्वतंत्र शिकायत आयोग बनाया जाए जो खुले में सबके सामने ऐसी शिकायतों की सुनवाई करके भ्रष्टाचार साबित होने पर लोकपाल के भ्रष्ट कर्मचारियों को दो महीने में नौकरी से निकाल दे। लोकपाल की कार्यप्रणाली को पारदर्शी और जवाबदेही बनाने के लिए अन्ना के जन लोकपाल में अन्य कई सुझाव थे, लेकिन सरकार ने इनमें से कोई सुझाव नहीं माना।
6. लोकपाल खाली बैठा रहेगा:-
सरकारी लोकपाल बिल के मुताबिक यदि लोकपाल की नज़र में कोई भ्रष्टाचार का मामला आता है, तो वह खुद कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कोई शिकायत न करें और शिकायत करने से लोग डरेंगे क्योंकि शिकायतकर्ता पर तो अगले दिन ही केस कर दिया जाएगा। तो प्रश्न उठता है कि सरकारी लोकपाल क्या खाली बैठा रहेगा।
7. आम आदमी भ्रष्टाचार झेलता रहेगा:-
आम आदमी का भ्रष्टाचार और महंगाई से देश में जीना मुश्किल हो गया है। अन्ना ने कहा था कि आम जनता को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए सिटिज़न लाओ। अगर किसी व्यक्ति का तय समय सीमा में काम न हो तो लोकपाल उस विभाग के प्रमुख की तनख्वाह काटे जो शिकायतकर्ता को मुआवज़े के रूप में दी जाए। दो मामलों में भी यदि विभाग प्रमुख की तनख्वाह कट गई तो सारा विभाग ठीक से काम करने लगेगा। लेकिन सरकार जलेबी वाला सिटीज़न चार्टर बिल लाई है। सरकारी बिल के हिसाब से किसी विभाग में यदि काम कराना है तो पहले वह आदमी सम्बंधित अधिकारी के पास जाएगा। फिर उसी विभाग में जन शिकायत अधिकारी के पास जाएगा। फिर उसी विभाग में अपीलीय अधिकारी के पास जाएगा। फिर प्राधिकृत अधिकारी के पास जाएगा। फिर जन शिकायत आयोग में जाएगा। फिर लोकायुक्त के पास जाएगा। सरकार लोगों को परेशान करना चाहती है या उनका काम कराना चाहती है\ सरकारी क़ानून में काम न होने पर अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान इतना लचर है कि किसी पर जुर्माना लगेगा ही नहीं। तो भला कोई क्यों काम करेगा\
सरकार ने अब खुली चुनौती दी है अन्ना के जनलोकपाल की अब कोई बात नहीं मानी जाएगी। सरकार का कहना है :-``आप आंदोलन करते रहिए। क़ानून बनाना हमारा काम है। हमे आंदोलन की कोई परवाह नहीं हैं´´
अब प्रश्न ये उठता है कि ऐसे में सरकार को कैसे सख्त क़ानून बनाने के लिए मनाया जाए\
हम सख्त लोकपाल के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। अपनी अंतिम सांस तक हम लड़ते रहेंगे। क्या आप भी समर्पित हैं\
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PATIALA-11/02/12-- IAC VOLUNTEERS AT PATIALA WILL BE JOINING AT RESIDENCE OF BIKRAMJIT SINGH CHHACHHI COMDT.H.G. (RETIRED) AS DESIRED IN GUIDELINES ISSUED HERE IN ABOVE ON SUNDAY 12/02/12 (TOMMAROW)--- WE STRONGLY SUPPORT POINTS REFERRED ABOVE ... QUESTIONS IF ANY RAISED WILL BE SENT VIA EMAIL TO www.indiaagainstcorruption.2010@gmail.com or we will contact through helpline 09718500606 -- with regards-- chhachhi47@gmail.com
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