प्रधानमंत्री , भारत सरकार,
नई दिल्ली
माननीय डा. मनमोहन सिंह जी,
मैं
जब 5 अप्रैल को अनशन पर बैठा तो आपकी सरकार संयुक्त समिति बनाने के लिए
तैयार हो गई। हम बड़ी उम्मीद और पूरी ईमानदारी के साथ संयुक्त समिति में
शामिल हुए। चूंकि पूरा आंदोलन जन लोकपाल बिल को लेकर था, हमें उम्मीद थी कि
संयुक्त समिति जन लोकपाल बिल की कुछ छोटी-मोटी बातों को छोड़कर बाकी बातें
मान लेगी। दुर्भाग्यवश दो महीने चली इन बैठकों के बाद आज हम वहीं खड़े हैं
जहां 5 अप्रैल को खड़े थे, जब अनशन चालू हुआ था। 5 अप्रैल को भी दो ड्राफ्ट
थे - एक जनलोकपाल बिल और दूसरा सरकारी ड्राफ्ट। आज भी दो ड्राफ्ट हैं।
सरकारी लोकपाल बिल का जो मसौदा संयुक्त समिति के पांच मंत्रियों ने
प्रस्तुत किया है, वह देश के साथ एक मज़ाक है। सरकारी लोकपाल बिल का दायरा
इतना छोटा रखा गया है कि उसमें आम आदमी से जुड़ा किसी भी तरह का भ्रष्टाचार
नहीं आता। पंचायत के कामों में भ्रष्टाचार, गरीबों के राशन की चोरी, भुखमरी
का जीवन जी रहे मजदूरों की नरेगा-मजदूरी की चोरी.... एक आम आदमी से जुड़े
किसी भी भ्रष्टाचार को सरकारी लोकपाल बिल में कोई जगह नहीं दी गई है। सरकार
दावा करती है कि लोकपाल केवल बड़े स्तर का भ्रष्टाचार देखेगा। वहां भी
सरकारी दावा खोखला नज़र आता है क्योंकि पिछले दिनों सामने आया कोई भी
घोटाला सरकारी लोकपाल के दायरे में नहीं आता। आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ
खेल घोटाला, खाद्यानों का घोटाला, रेड्डी भाइयों का घोटाला, ताज कॉरीडोर
घोटाला, झारखंड मुक्ति मोर्चा घोटाला, कैश फॉर वोट घोटाला, चारा घोटाला,
कर्नाटक का भूमि घोटाला इत्यादि- इनमें से कोई सरकारी लोकपाल बिल के दायरे
में नही आता। ऐसे में एक बहुत बड़ा सवाल उठता है कि सरकारी लोकपाल बिल के
दायरे में आखिर आता क्या है ? क्या सरकारी लोकपाल दिखावा बनकर नहीं रह
जाएगा? अभी तक सरकार की यही नीति रही है - नई-नई संस्थाएं बना दो लेकिन
उन्हें कोई अधिकार और शक्ति न दो।
सरकारी लोकपाल भी उसी तरह की संस्था बनने जा रही है जिसके पास न
अधिकार होंगे और न शक्ति। सारे राज्यों के कर्मचारियों को आपने इस कानून के
दायरे से बाहर रखा है। हमारा कहना है कि केंद्रीय कर्मचारियों पर निगरानी
रखने के लिए लोकपाल बनाया जाये और इसी कानून के तहत हर राज्य में लोकायुक्त
बनाया जाए। प्रणव मुखर्जी साहब ने मीिंटंग में कहा कि राज्यों के
मुख्यमंत्री इसके लिए तैयार नहीं हैं। पहली बात तो कि राज्यों के
मुख्यमंत्रियों से पूछने की ज़रूरत ही नहीं थी। क्योंकि यह मामला संविधान
की
Concurrent
List
में आता है। और इस पर केंद्र सरकार कानून बना सकती है। और दूसरी बात कि
कांग्रेस शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लिखा था कि वे पार्टी
हाईकमान की बात मानेंगे जो फैसला पार्टी हाईकमान लेगी वह उन्हें मंजूर
होगा।
आप मुख्यमंत्रियों के पाले में गेंद डाल दे रहे हैं और मुख्यमंत्री
आपकी तरफ। दोनों अपनी ज़िम्मेदारी एक दूसरे के ऊपर डाल रहे हैं। इससे
भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जा सकता है? हमें समझ में नहीं आता कि सरकार एक
ही कानून के ज़रिए लोकपाल और लोकायुक्त बनाने में क्यों हिचक रही है? क्या
राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए जनता को अभी और कई सालों
तक इंतजार करना पड़ेगा।
संयुक्त समिति की बैठकों में हमने बार-बार आपके मंत्रियों से कहा कि
लोकपाल के दायरे में सारे सरकारी कर्मचारी आने चाहिए। एक आम आदमी को तो
निचले स्तर के अधिकारियों के भ्रष्टाचार से रोज जूझना पड़ता है और उन्हीं को
आपने बाहर रख दिया। भारत सरकार हर साल 30 हज़ार करोड़ रूपए से ज्यादा के
राशन की सिब्सडी देती है जिसमें से 80 प्रतिशत की चोरी हो जाती है। स्कूल,
अस्पताल, सड़क आदि के काम में तमाम तरह का भ्रष्टाचार होता है जो सरकारी
लोकपाल बिल के दायरे में नहीं है। ये सारी चोरी निचले स्तर के अधिकारियों
द्वारा ही की जाती है।
स्वर्गीय राजीव गांधी जी ने कहा था कि आज सरकार के एक रुपए में से
जनता तक मात्र 15 पैसा ही पहुंचता है और बाकी का 85 प्रतिशत या तो चोरी हो
जाता है या जनता को उसका कोई लाभ नहीं मिलता। हमारा यह कहना है कि अगर सौ
रुपए में से 25 पैसे (यानि एक रुपए में मात्र एक चौथाई पैसा के बराबर)
भ्रष्टाचार रोकने के लिए खर्च कर दिए जाएं तो 15 प्रतिशत की जगह 100
प्रतिशत पैसे का लाभ सीधे जनता को मिलने लगेगा। आज़ादी के 62 सालों के बाद
तक हमने प्रभावी भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र नहीं बनाया। और आज भी सरकार की
इच्छा शक्ति नज़र नहीं आती।
आपके मंत्रियों का कहना था कि देश में केंद्र और राज्य सरकारों को
मिलाकर सवा करोड़ से ज्यादा कर्मचारी हैं। इतने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार
पर निगरानी रखने के लिए तो ढेरों कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी। हमारा आपसे
पूछना है कि क्या इस कारण से आप इन सबको भ्रष्टाचार करने को खुला छोड़
देंगे। हमारा देश बहुत बड़ा है। हमारे देश में ढेरों सरकारी कर्मचारी है। तो
ज़ाहिर बात है कि इनके भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने के लिए भी ढेरों
कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी।
मैं अतिविनम्रता के साथ आपसे जानना चाहता हूं कि एक आम आदमी
भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर आज कहां जाए? क्या उसे समाधान देना आपकी सरकार
का फ़र्ज़ नहीं है? आज आज़ादी के 62 सालों के बाद अगर आपकी सरकार आम आदमी को
भ्रष्टाचार से निजात दिलाने में अपने आपको असमर्थ पाती है तो यह
दुर्भाग्यपूर्ण है।
कानून की नज़रों में भ्रष्टाचार एक उतना ही घोर अपराध है जितना
बलात्कार व हत्या। आज भ्रष्टाचार सरकार के रग-रग में छा गया है। कल यदि
हत्या और बलात्कार की वारदातें इतनी बढ़ जाएं जितना आज भ्रष्टाचार बढ़ गया
है, तो क्या आपकी सरकार का यही रवैया होगा? मेरा मानना है कि किसी भी सरकार
का सर्वप्रथम कार्य समाज को अपराध से मुक्ति दिलाना है। किसी भी हालत में
कोई भी सरकार यह नहीं कह सकती कि हम अपराध से मुक्ति दिलाने में असमर्थ है
और यह ऐसे ही चलेगा।
आपकी सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने ही होंगे। और हम
इससे कम के लिए तैयार नहीं है। मैं आम आदमी के भ्रष्टाचार का समाधान खोजने
के लिए कटिबद्ध हूं। इसके लिए मैं और मेरे साथी बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने
के लिए तैयार हैं। आपकी सरकार के कुछ मंत्रियों ने और पार्टी के कुछ उच्च
पदाधिकारियों ने धमकी दी है कि यदि 16 अगस्त से मैं अनशन पर बैठा तो हमारे
आंदोलन को भी वैसे ही कुचल दिया जाएगा जैसे बाबा रामदेव के आंदोलन को कुचला
गया था। ऐसे उच्च पदाधिकारियों के इस तरह के बयान दुर्भाग्यपूर्ण हैं। ये
बयान संविधान के िख़लाफ हैं क्योंकि संविधान इस देश के नागरिकों को बिना
हथियारों के शांतिपूर्वक इक्कठा होकर प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार देता
है। इस तरह की धमकियां हमारे मौलिक अधिकारों का हनन हैं। लेकिन फिर भी यदि
आपकी सरकार हमारे आंदोलन को कुचलती है तो हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं।
हम गिरफ्तारियां देने के लिए तैयार हैं। लाठियां खाने को तैयार हैं। पर
किसी भी हालत में हमारा हाथ नहीं उठेगा। पूरा आंदेालन अहिंसात्मक होगा। हम
हर बलिदान देने के लिए तैयार है। पर अब इससे और ज्यादा भ्रष्टाचार
बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ऐसा सुनने में आया कि आपकी सरकार अगस्त के पहले हफ्ते में संसद में
लोकपाल बिल प्रस्तुत करेगी। हमारी आपसे यह विनती है कि संसद में जन लोकपाल
बिल ही प्रस्तुत किया जाए। अभी जो सरकारी लोकपाल बिल का मसौदा है उसमें
ढेरों कमियां है। उन कमियों की सूची इस पत्र के साथ संलग्न है। उसमें वो
कमियां दूर करके ही संसद में उसे प्रस्तुत किया जाए।
संसद उस बिल पर क्या निर्णय लेती है - इसके लिए हम संसदीय प्रक्रियाओं
का इंतजार करने के लिए तैयार हैं। लेकिन कम से कम आपकी सरकार एक सख्त
कानून तो संसद में प्रस्तुत करे। यदि संलग्न सूची के मुताबिक सभी कमियों को
दूर करके एक सख्त लोकपाल कानून संसद में 16 अगस्त से पहले प्रस्तुत नहीं
किया गया, तो मेरे पास इसके सिवाय कोई चारा नहीं रह जाएगा कि मैं 16 अगस्त
से अनििश्चत कालीन अनशन के लिए फिर से बैठूं। जब मैंने 8 अप्रैल को पिछला
अनशन तोड़ा था ऐसा बोला था कि यदि सरकार 15 अगस्त तक एक सशक्त कानून पारित
नहीं करती तो मैं 16 अगस्त से फिर से अनशन पर बैठूंगा।
मुझे पूरी उम्मीद है कि आपकी सरकार जन भावनाओं के अनुरूप भ्रष्टाचार
को रोकने के लिए संसद में एक सख्त कानून रखने का साहस दिखाएगी। मुझे आपके
उत्तर का इंतजार रहेगा।
भवदीय
कि. बा. हज़ारे (अण्णा)