देश में नेताओं और अफसरों के भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए एक स्वतंत्र लोकपाल बनवाने की मांग उठी तो लगभग पूरी नेता बिरादरी एक हो गई लगती है. सबको संसद की गरिमा याद आ रही है. सांसदों की भूमिका याद आ रही है. कहा जाने लगा है कि कानून बनाने का काम तो सांसदों का है. पशुओं के चारे को पचा जाने तक में माहिर कुछ नेता तो इसे पूरे रानजीतिक तंत्र के खिलाफ साज़िश तक करार देने लगे हैं. लोकतंत्र और संसद की गरिमा के बहाने भ्रष्ट व्यवस्था की पैरवी की कोशिशों पर कुछ सवाल उठने लाज़मी हैं.
सबसे अहम सवाल यह है कि संसदीय लोकतंत्र की परंपराएं क्या कोई अंधविश्वास हैं? यह ठीक है कि लोकतंत्र में कानून बनाने का अधिकार सांसदों का है लेकिन, जब भ्रष्टाचार का दीमक लोकतंत्र की जड़ खोद रहा हो, और इसके खिलाफ लोकपाल कानून 42 साल से संसद में पड़ा सड़ रहा हो, तो भी लोग महज़ इसलिए चुप बैठे रहें कि कानून बनाना तो सांसदों का काम है. जनता आवाज़ उठाए तो उसे कहा जाए कि अगर कानून बनाना है तो जाओ पहले चुनाव जीत कर आओ. इससे बड़ा मज़ाक कानून बनाने के एकाधिकार के साथ क्या हो सकता है कि हमारे सांसद 42 साल से एक कानून को दबाए बैठे हैं? क्या यह लोकतंत्र के मंदिर यानि संसद का अपमान नहीं है.
संसद की ही तरह बार बार नेताओं को संविधान की दुहाई याद आ रही है. प्रधानमंत्री तक बार बार कह रहे हैं कि लोकपाल लाएंगे लेकिन संविधान के दायरे से बाहर जाकर नहीं. इससे यह संदेश देने की कोशिश है कि अन्ना हज़ारे की लोकपाल की मांग के लिए संविधान बदलना पड़ेगा. अन्ना की मांग के लोकपाल में महज़ एक बिंदु पर संविधान संशोधन की मांग की जा रही है. संविधान की धारा 105(2) सांसदों को संसद में सवाल उठाने या वोट देने के मामले में विशेष संरक्षण देती है. इस अधिकार की व्याख्या इस तरह की जा रही है कि भले ही सांसद रिश्वत लेकर वोट दें या सवाल पूछें, उन्हें किसी अदालत में नहीं ले जाया जा सकता. संसद ने अब तक संविधान में तकरीबन 100 संशोधन कर लिए हैं. क्या अभी तक किए गए संविधान संशोधन कोई अपराध है? ये सारे के सारे जनहित में हुए हैं. फिर सांसदों की रिश्वतखोरी की निष्पक्ष जांच के लिए संविधान की धारा 105(2) में भी संशोधन से इतनी हिचक क्यों? मानो कोई अमानवीय मांग की जा रही हो.
सवाल संविधान की गरिमा का नहीं है. सवाल है सांसदों के आचरण का. संसद में वोट देने के लिए मिले नोटों के बंडल खुलेआम लहराते देखे गए. सांसद सवाल पूछने के अधिकार को बेचते रंगे हाथों पकड़े गए. और तब भी ये जिद कि संसद के अंदर सवाल पूछने या वोट डालने के लिए भले ही हम रिश्वत भी लें, कोई हमारी निष्पक्ष जांच तक नहीं कर सकता! क्योंकि इससे विशेषाधिकार का हनन होता है. संविधान बनाने वाले हमारे पुरखों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऐसे विशेषाधिकार का दुरुपयोग एक दिन सांसदों को रिश्वतखोरी की जांच से बचाने के लिए किया जाएगा. उन्हें खयाल भी नहीं आया होगा कि ऐसे ही विशेषाधिकारों के चलते एक दिन भारतीय नेता और अफसर स्विस बैंकों में खरबों रुपए जमा कर लेंगे. अगर संविधान के किसी प्रावधान को उसकी मूल भावना के खिलाफ जाकर दुरुपयोग किया जाने लगे तो इसे संशोधित करने में भला कैसी हिचक? ज़ाहिर है यह हिचक संविधान को लेकर नहीं भ्रष्ट लोगों के हितों को लेकर है.
अन्ना के जनलोकपाल को लेकर दूसरा भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि इसमें प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पदों के ऊपर लोकपाल नामक एक अधिकारी बिठा दिया जाएगा. यह सरासर झूंठा प्रचार है. पहली बात तो लोकपाल कोई एक अफसर नहीं है, यह तो सीबीआई, आयकर विभाग की तरह एक विभाग जैसा होगा जो सरकार के अधीन नहीं होगा. आज प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई के अधिकारी करते हैं, इन्कम टैक्स रिटर्न की जांच आयकर अधिकारी करते हैं, तो क्या ये अधिकारी इनके ऊपर हैं? क्या महज़ भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच करने से कोई प्रधानमंत्री या प्रधान न्यायधीश के ऊपर बैठा माना जा सकता है.
संविधान ने प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल बनाने का अधिकार दिया है. प्रधानमंत्री पद की अपनी गरिमा है. उसका सम्मान होना चाहिए. लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री पर बैठा व्यक्ति कहे कि मैं तो लोकपाल के दायरे में आना चाहता हूं, और उसी के बनाए मंत्री खुलेआम उलट भाशा बोलें कि नहीं आना चाहिए, क्या इससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा कम नहीं होती? क्या ऐसी मंत्रीपरिशद को बर्खास्त नहीं कर देना चाहिए जो अपने प्रधानमंत्री के हिसाब से नहीं चलती. क्या ऐसे प्रधानमंत्री को इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए जिसकी मंत्रीपरिशद भ्रष्टाचार जैसे अहम मुद्दे पर उसकी राय खुलेआम तवज्ज़ो नहीं देती. क्या यह लोकतंत्र के साथ मज़ाक नहीं है?
संसद और संविधान की गरिमा की आड़ में नेताओं के भ्रष्टाचार को पोषित करने की जिद से खतरनाक स्थिति भला किसी लोकतंत्र के लिए और क्या हो सकती है. जिस भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में ही सभी नागरिकों को समान अधिकार देने की बात कही गई हो, और उस संविधान के तहत समस्त अधिकार प्राप्त सरकारों की नाक तले अमीर गरीब की खाई शोषण के सहारे बढ़ रही हो तो क्या इसमें संसद या संविधान का अपमान नहीं है?
हमारे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में ही सबके लिए समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन की बात कही गई है. केंद्र या राज्यों तक में किस पार्टी की सरकार ने इसका पालन किया है? एक तरफ तो एक करोड़ रुपए मासिक वेतन लेने वाले लोग, दूसरी तरफ 20 रुपए से कम पर गुजर करती आधी से ज्यादा आबादी. क्या यह संविधान के प्रति सरकारों की निष्ठां पर कड़ा सवाल नहीं है?
संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में ही समुदाय के भौतिक साधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बांटने की बात कही गई है ताकि सर्वोत्तम रूप में सामूहिक हित हो सके. लेकिन जल जंगल ज़मीन और खनिज संसाधनों को देशी विदेशी कंपनियों के हाथों में मुनाफें के लिए सौपकर क्या सरकारों ने संविधान का अपमान नहीं किया है? क्या सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, कि सरकारें आम लोगों के हितों की रक्षा करने की जगह मल्टीप्लैक्स और मॉल के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने में लगी हैं, के बाद भी इसमें कोई शक बचता है कि यह संविधान के नीतिनिर्देशक तत्वों का खुलेआम मज़ाक है?
कहां है सबके लिए समान शिक्षा, चिकित्सा, विकास के समान अवसर? एक तरफ महानगरों में चमकते दमकते स्कूल हैं दूसरी तरफ गांव देहात यहां तक कि कस्बों तक में स्कूल के नाम पर एक कमरा तक नहीं है. संविधान के बनने के 60 साल बाद भी समान शिक्षा की औपचारिकता पेड़ के नीचे, या फटै टैंट में, बिना शिक्षकों के स्कूल चलाकर पूरी करने की कोशिश की जा रही है. क्या यही है संविधान के प्रति हमारी सरकारों और पार्टियों का सम्मान?
जब लोकतंत्र में जनता की,जनता के लिए और जनता द्वारा बनी सरकार लोगों की शिकायतों से इसलिए मुंह चुराए कि इसके लिए तो बहुत विभाग बनाना पड़ेगा, बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा, इससे अपमान जनक बात भला किसी जनतंत्र के लिए और क्या हो सकती है. जनता की सरकार जनता की शिकायतें नहीं सुनना चाहती. उन्हें दूर करना तो दूर की बात है. क्या यह लोकतांत्रिक संविधान की मूल भावना का अपमान नहीं है.
nice
ReplyDeleteबडी सच्ची बात कही है|
ReplyDeleteप्रजा तो राजा की संतान होती है|
भूखा बच्चा रो रो कर माँ से खाना माँगे तो माँ उसे प्यार से खाना देती है नहि की चाँटा मार के भगा देती है|
हमे न्याय चाहिए| हमारे देशके नेताओकी मंशा को देखकर मुझे सचमें बडा दु:ख हो रहा है| भगवान उनको हमारी भावनाएं समझने के लिए संवेदनशीलता प्रदान करे|
are is desh mai to ye neta log sale country ko hi bech ki kha le sare ke sare neta bharstachar pe ek ho jate hai or kahte hai sansad ki garima ka sawal
ReplyDeleteye sare anpar in logo ko dhare bhar ki knowlage nahi hai kise bhi chij ki mere samjh mai aj tak nahi aya ki ise logo ko kyn rakha hai humne aye milkar inko nikale or inko inki asli auokat dekha de jago inida jago.. its time to do somthing
agar ab kuch nahi kia to phir kabhi nahi kar payege hamari parents kuch nahi kar paye to kaya hum bhi chup ho kar sab dekhte rahe nahi please i apeal to all come and join IAC and support anna ji and his team become a team member .. i am private employee but ready to leave my job at any time for ICA are u all ready to do so .....
ReplyDeleteAbhi nehin to kabhi nehin es bhrast byabastha ko jald hi badalna hai. Netaon ne garibi hatane ki bat kar rahen hain par garibi nehin balki garibon ko hata rahen hain.Ek tarap sataya hua garib MAOBADI banta hai to dusri tarap garib admi papi pet ke liye police mein noukari karta hai. Jab dono ke bich goli chalti hai to koi bhi marejaye ek garib hi marta hai. Amiron ka ya Netaon ka kuch nehi hota.Itna hi nehin in garibon ne un Deshdrori,bhrastacharion ki rakhwal bhi karte hain yehi kya hamare SAMBIDHAN hai. kya hamare sambidhan in logon ko goribon ko satane ke liye,lootne ke liye licence diya hai
ReplyDeleteonly one party has to answer aboutall the problems that our country is facing today and it is THE INDIAN NATIONAL CONGRESS . They hv ruled our country for more than 50 yrs.And today they r the most corrupt people in the counntry today.This is the sinple reason why they r creating all types of problems in the fight against corruption.
ReplyDeleteham tumhare sath hai
ReplyDeletekaho kaha goli khan hai
ham mar bhai sakte hai
or neta ko mar bhi sakte hai
chinta mat karo ham tumhare sath hai
Maare jayege
ReplyDeleteJo ies paagalpan me shamil nahi hoge,
mare jayege,
bardast nahi kiya jayega,
hamari kameej ho, unki kameej se jyada safed
kamej per jinke daag nahi honge,
mare jayege,
dharm ki dhwja uthaye, jo nahi jayege,
julus me
kaafir karar diye jayege,
jo is pagalpan me shamil nahi honge maare jayege.