बहुत से जाने माने लोगों का कहना है कि लोकपाल केवल उच्चस्तरीय बड़े भ्रष्टाचार पर केन्द्रित रहे.
भारत में एक अनोखा भ्रष्टाचार निरोधी तन्त्र है जो बुरी तरह से बिखरा हुआ है. भ्रष्टाचार के एक ही मामले में विभागीय विजिलेंस विभाग निचले स्तर के कर्मचारियों की भूमिका की जांच करता है, सीवीसी बड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच करता है, सीबीआई इसके अपराधिक पहलू की जांच करती है, राज्यों में लोकायुक्त नेताओं की भूमिका की जांच करते हैं. इस तरह एक ही मामले में कई एजेंसियों की जांच और पूछताछ एक साथ चलती है. यह किसी मामले को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है. निचले कर्मचारी, बड़े अफसर, नौकरशाह या नेताओं का भ्रष्टाचार अलग अलग होता है क्या?
भारत में एक अनोखा भ्रष्टाचार निरोधी तन्त्र है जो बुरी तरह से बिखरा हुआ है. भ्रष्टाचार के एक ही मामले में विभागीय विजिलेंस विभाग निचले स्तर के कर्मचारियों की भूमिका की जांच करता है, सीवीसी बड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच करता है, सीबीआई इसके अपराधिक पहलू की जांच करती है, राज्यों में लोकायुक्त नेताओं की भूमिका की जांच करते हैं. इस तरह एक ही मामले में कई एजेंसियों की जांच और पूछताछ एक साथ चलती है. यह किसी मामले को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है. निचले कर्मचारी, बड़े अफसर, नौकरशाह या नेताओं का भ्रष्टाचार अलग अलग होता है क्या?
पहले तो इस तरह टुकड़ों में बण्टी हुई व्यवस्था भ्रमित करती है. किसी एक एजेंसी को भी पूरे रिकार्ड नहीं मिलते. दूसरे इस तरह किसी भी मामले में जांच वर्षों तक चलती ही रहती है. उदाहरण के लिए कॉमनवेल्थ खेलों में स्ट्रीट लाईट लगाने में हुई गड़बड़ी की जांच पहले तो सीवीसी ने की, फिर सीबीआई ने की. इसके बाद शुंगलू कमेटी ने फिर से उसकी जांच की. तीसरी समस्य है कि अगर जांच कर रही दो एजेंसियां अलग अलग निष्कर्ष पर पहुंचती हैं तो भ्रष्ट लोगों के खिलाफ मामला कमज़ोर पड़ जाता है.
लगभग हर मामले में, आपराधिक पहलू की जांच सीबीआई करती है और सतर्कता के पहलू की जांच विभागीय विजिलेंस टीम करती है. विजिलेंस टीम में अधिकतर लोग आरोपियों के सहकर्मी या साथी होते हैं और वे जांच के परिणामों को प्रभावित कर देते हैं. दोशी अधिकारी साफ बच निकलते हैं. विजिलेंस की ऐसी रिपोर्टस को तब अदालत में पेश किया जाता है और सीबीआई के मामले को भी कमज़ोर कर दिया जाता है. इस पूरी भ्रमित व्यवस्था का सबसे ज्यादा लाभ मिलता है भ्रष्ट लोगों को जो कभी जेल नहीं जा पाते.
अगर हम लोकपाल को ऐसी संस्था बनाएंगे जो केवल नेताओं या बड़े अधिकारियों के भ्रष्टाचार को देखेगी तो यह मौजूदा व्यवस्था को भी और खण्डित करना होगा. इससे चारों तरफ और भ्रम पैदा होगा.
ट्रांसपेरेंसी इण्टरनेशनल की रिपोर्ट में ईमानदार देशों की सूची में रहने वाले शीर्ष दस देशों में से एक में भी इस तरह की टुकड़ा-टुकड़ा भ्रष्टाचार व्यवस्था नहीं है. इन देशों में ऊपर से नीचे तक हर तरह के भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक ही एजेंसी काम करती है. कुछ अन्य एजेंसियां भी हैं लेकिन वे प्रमुख एजेंसी के सहयोग के लिए हैं जैसे रिसर्च आदि के काम में मदद करना.
देश के कई जाने माने लोग कह रहे हैं कि लोकपाल एक छोटी, स्पष्ट और प्रभावी संस्था होनी चाहिए. सवाल यह है कि प्रभावी होने के लिए लोकपाल को कितना छोटा और स्पष्ट होना होगा?
कुछ लोगों का सुझाव है कि लोकपाल को केवल नेताओं का भ्रष्टाचार देखना चाहिए. यही तो यूपीए सरकार चाहती है. यही मॉडल तो सरकार ने अपने ड्राफ्ट बिल में दिया था. यही मॉडल देश के कई राज्यों में लोकायुक्त कानून में भी है जो पूरी तरह असफल सिद्ध हो चुका है. अधिकतर मामलों में भ्रष्टाचार नेताओं के स्तर पर नहीं शुरू होता. यह किसी न किसी अफसर के स्तर पर ही शुरू होता है जब वह किसी फाईल पर कुछ लिखता है, भले ही वह किसी दवाब में लिख रहा हो. नेताओं का भ्रष्टाचार तो काफी बाद में दिखाई पड़ने लायक बनता है. इसीलिए ज्यादातर मामले लोकायुक्त तक पहुंचते ही नहीं हैं. दिल्ली में भी लोकायुक्त का दायरा नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच तक सीमित है. दिल्ली के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस शमीम कहते थे कि उनके दफ्तर पर सरकार साल में सवा करोड़ रुपए खर्च करती है जबकि उनके पास एक साल में मुश्किल से 5 ही ऐसे मामले आते हैं जिन पर एक्शन लिया जा सकें. इसके उलट कर्नाटक में लोकायुक्त के दायरे में अफसर और नेता दोनों आते हैं जिसने काफी बेहतर काम किया है. लोकायुक्तों की सालाना बैठक में हर साल मांग की जाती है कि उनके अधिकार क्षेत्र के आंशिक होने ने भ्रष्ट लोगों को ही फायदा पहुंचाया है और इसे तुरन्त ठीक किए जाने की आवश्यकता है. देश भर के लोकायुक्त कर्नाटक के मॉडल पर लोकायुक्त कानून बनाने की मांग करते रहे हैं लेकिन बिना राजनीतिक इच्छा शक्ति के यह सम्भव नहीं है.
सरकार और उसका समर्थन करने वाले कुछ लोगों का कहना है कि लोकपाल सिर्फ संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों की जांच करे. अगर ऐसा होता है तो कुल मिलाकर इसके दायरे में 2000 अधिकारी आएंगे. इनकी जांच के लिए लोकपाल को कितना स्टॉफ दिया जाएगा? हॉगकॉग में, जहां दुनिया की सबसे अच्छा भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था मानी जाती है, हर 200 सरकारी कर्मचारियों पर एक भ्रष्टाचार निरोधी कर्मचारी है.(मुख्य अधिकारियों सहित). अगर इस सबसे बेहतर व्यवस्था को भी अपनाएंगे तो हमारे लोकपाल में कुल 10 कर्मचारी होंगे. क्या यही है हमारा लोकपाल का विज़न. यह छोटी नहीं बल्कि व्यर्थ संस्था होगी.
कोंग्रेस कभी नंही चाहेगी भ्रस्ताचार मिटे
ReplyDeleteइसलिए
कोंग्रेस का हात श्रीमन्तोके साथ गरीबोंकी मोत
दिलमे उठा है एक अरमान
सबसे दुखी हो हिंदुस्तान
गरिबिकी जो रह चुनी उसे नाम दिया भारत निर्माण
हो रह है गरीब निर्माण
यही कोंग्रेस का नारा है
it culdl be undrestood that thr is so much of corrupsn in our country...nd its just bcz our system is giving opportunity to few of d peopl to do dat...bt the thing which i cant understand is thAT corrupsn has encouraged d mind of these corrupt peopl to such an xtent dat they r strongly offencing nd announcing it pulically dat we dont want corrupsn to end...nd d most nonsense part is dat thr is no any reaction 4m people ...its d thing on which thr should be huge boyctt against d people who r against anti corrupsn...fuck such political system..!!!
ReplyDeleteagar kewal uchh istariy bhrastchar ki jach hogi to aam admi ko bhrastchar se kha rahat milegi.
ReplyDeleteaapne jo lokpal bill ka draft bnaya h vo desh hit me h.