Thursday, December 15, 2011

देश बदलना है तो गाँव को बदलना होगा


-अन्ना हज़ारे
(गाज़ियाबाद में आयोजित दो दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर दिया गया वक्तव्य)


हम हमेशा कहते हैं कि लोकपाल कानून बनने से ही भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। इससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगेगा। महात्मा गांधी कहते थे कि देश बदलने के लिए आपको गांव बदलना होगा। जब तक गांव नहीं बदलेगा तब तक देश नहीं बदलेगा। गांव को बदलने के लिए गांव के आदमी को बदलना पड़ेगा। गांव के लोगों को बदलना पड़ेगा। लेकिन बहुत-से लोगों को लगता है कि गांव को बदलने का मतलब है आदर्श गांव बनाना यानी पंचायत की बिल्डिंग बनाना, घरों की ऊंची-सी बिल्डिंग बनाना, रास्ते पक्के बनाना। लोग सोचते हैं कि इतना हो गया तो आदर्श गांव बन गया। आदर्श गांव की यह संकल्पना नहीं है। यह भी करना है लेकिन ऊंची-ऊंची बिल्डिंग खड़ी करना आदर्श गांव की संकल्पना नहीं है। जरूरत है तो यह भी करना है लेकिन इतने से ही आदर्श गांव बन जाएगा, ऐसा नहीं है। 

हर आदमी जब यह सोचेगा कि अपने पड़ोसी, गांव, समाज, देश के लिए भी कुछ कर्तव्य है। जब ऐसी भावना का निर्माण गांव में होगा तभी आदर्श गांव बनेगा। जब तक लोगों के दिल में सामाजिकता नहीं आएगी तब तक ये रास्ते, जमीन और बिल्डिंग सिर्फ प्रदर्शन के लिए होंगे। बिल्डिंग बनाना भी जरूरी है लेकिन जब बिल्डिंग की ऊंचाई ऊपर हो जाती है तो इंसान की विचारधारा को भी उस लेवल पर लाना जरूरी है। आज बिल्डिंग की ऊंचाई तो बढ़ रही है पर इंसान का कद घट रहा है। 

ये सही डेवलपमेंट नहीं है। यह समझ कर गांव को आदर्श बनाने का काम हमें करना होगा। ऐसा गांव सिर्फ पैसे से नहीं बनेगा। अगर पैसे से गांव बनते तो टाटा-बिरला ने कितने गांव बना दिए होते। ऐसे गांव के लिए लीडरशिप चाहिए। लीडरशिप के बिना ऐसे गांव नहीं बनेंगे। गांव में लोग लीडर की तरफ देखते हैं। सुबह से शाम तक आप क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? कहां रहते हैं? कैसे चलते हैं? कहां घूमते हैं? लोगों का ध्यान लगातार लीडर के आचरण की तरफ बना रहता है। आपको किसी ने गुटके की पुडिय़ा मुंह में डालते देखा तो आपके शब्दों का वजन खत्म। जरा भी किसी ने देखा कि बीच की उंगली में सिगरेट है और धुआं निकालते समय ऐसे राउंड में निकाल रहा है तो आपके शब्दों का वजन खत्म। बहुत संभलना पड़ेगा। मैं आपको भाषण नहीं दे रहा, कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं। मैं जो कर रहा हूं, वह आपको बता रहा हूं। 

हमारे गांव में चाय की दुकान है। 35 साल में मुझे चाय की दुकान में बैठा हुआ किसी ने नहीं देखा होगा। इतना संभलना पड़ता है कार्यकर्ता को। मेरे कहने का मतलब यह है कि कृति और शब्द दोनों को जोडऩे वाली लीडरशिप जबतक नहीं खड़ी होगी तक तक असर नहीं आएगा। सिर्फ शब्दों से असर नहीं पड़ेगा। आज़ादी के 64 साल में कहने वाले लोगों की संख्या कम नहीं रही है। कितने अच्छे-अच्छे भाषण दिए गए लेकिन शब्दों के साथ कृति न होने से उसका असर नहीं आएगा. इसलिए कबीरदास जी कहते हैं, ‘कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय, कथनी छोड़ करनी करे, तो विष का अमृत होय।’ कथनी छोड़कर हमें करनी की तरफ बढऩा है। आदर्श गांव तब बनेगा। 

फिर वे पांच बातें आती है शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग और अपमान सहने की क्षमता। ये सारी बातें जब जीवन में आ जाएंगी तब काम करना आसान होगा। कोई काम असंभव नहीं है। आज अन्ना हजारे आपको दिखाई दे रहा है। एक दिन मैं भी आपके जैसा सामान्य कार्यकर्ता था। मैं पैदल घूमता था, इस दफ्तर से उस दफ्तर। कभी बीडीओ दफ्तर में सिपाही बोलता कि बीडीओ अभी बैठक में हैं तो घंटा-घंटा बैठता था। मेरे कहने का मतलब है कि सामान्य कार्यकर्ता भी असामान्य कार्य कर सकता है। असंभव नहीं है। इन बातों के लिए सोचना है. 

एक मिसाल देता हूं। मेरे गांव में दलित लोगों को मंदिर में आने नहीं दिया जाता था। दलित लोगों के पीने के पानी का कुआं अलग था। सामूहिक भोज में उन्हें दूर बिठाया जाता था। गांव के दलित परिवारों पर 60 हजार रुपए बैंक का कर्जा हो गया पूरा नहीं हो रहा था। पूरे गांव के लोग बैठ गए। गांववालों ने सुझाव दिया। इसके बाद पूरे गांववाले श्रमदान करने के लिए दलितों की जमीन पर गए। सबने श्रमदान करके दलितों के खेतों में दो साल फसल उगाई और दलितों का कर्जा पूरा किया। ये है बदलाव। जिस तरह के आदर्श गांव की परिकल्पना गांधीजी करते थे, वह यह है। छुआछूत न हो, जात-पात का भेद न हो। मानव एक धर्म है। जब तक पड़ोसी के सुख-दुख में हम सहभागी नहीं होंगे तब तक बाकी सब बेकार है। खुद को कार्यकर्ता मानने वालों को इन बातों को सोचना है। 

कई कार्यकर्ता बोलते हैं, मैं तो कोशिश करता हूं पर लोग मेरी मानते ही नहीं, लोग सुनते नहीं। लोगों को दोष मत दो। लोग सुन नहीं रहे तो इसका मतलब उन पर आपके शब्दों का असर नहीं हो रहा है। असर क्यों नहीं हो रहा है? क्योंकि आपमें कोई न कोई कमी है। इसका इलाज है कि अंतर्मुखी हो जाओ। लोगों को दोष नहीं देना। सोचो कि मेरा असर क्यों नहीं हो रहा? अंतर्मुखी होकर सोचना और अपने में जो कमियां हैं उसको सुधारने का प्रयास करो। मेरे अंदर कुछ तो कमी है? चरित्र में कमी है, आचार-विचार में कुछ कमी है इसलिए लोग मेरी नहीं सुन रहे। एक दिन वह आएगा। समय लगेगा। झटपट नहीं होगा। कोई भी आप काम करते हो उसे झटपट होने की अपेक्षा नहीं करो। अगर झटपट की अपेक्षा करोगे तो कभी कभी झटपट काम हो भी जाएगा लेकिन वह स्थायी नहीं होगा। लंबे समय में जितना परिवर्तन में लाएंगे, उतना वह स्थायी रहेगा। यह सब बातों के लिए कार्यकर्ता को सोचना है।

3 comments:

  1. aap humaare aadrsh hai Anna sahab aur ummid bhi .Janhaa tak mujhe samajh mein aata hai is gaurav shaali desh ki 90 % problems corruption ke hi kaaran hai .aur corruption bhog wadi pravarti ke kaaran .isiliye pahle pravarti badlane ki aavshyaktaa hai

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  2. सबसे पहले मैं मनीष जी का बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ, इस महापुरुष के विचारों को हम तक इतने सरल रूप से उपलब्ध कराने के लिए |
    इस पोस्ट को पढ़ के ऐसा लगा की जैसे खुद अन्ना जी हमसे ये बात कर रहे हों| सच कहूँ तो काफी दिनों से इसी उधेड़बुन में लगा हूँ, कैसे खुद को शुद्ध करूँ |
    अब लगता है की इतना कठिन नहीं है, अगर प्रयास किया जाये ! और आप सबके आशीर्वाद से मैं कोशिश भी कर रहा हूँ !
    साभार आपका अनुज,
    आदित्य

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  3. Aap ke is mahan Updesh keliye humsab Abhari hai. Is samay sabhi Bhrastachar se trast hai. Har koi chahta hai ki kaas kuch Chamatkar ho jaye aur Humara Desh Me fir se Shanti Aur Bhaichara ho. Lekin Problem ye hai ki Isme koi Strong Leader ki tarah aana nahi chahta. Kyunki Dar yahi hota hai ki sayad wo unlogo par khara utrega ya nahi. Par aap isme kafi saralta purvak jo bataye ho. Har koi dil mein ab nayi umang ki tarah kam karega. Aur hum Sab yahi Chahte hai Ki har Koi is Niyam palan karein aur kahte rahe : - " BASUDHAIVA KUTUMBAKKAM....!! "

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