क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि हमारे देश के बुद्धिजीवी वर्ग को कोई बात मौलिकता के साथ स्वीकार नहीं होती। हर बात में सापेक्षता खोजने की कोशिश हमारे ज़हन में इस तरह घर कर गई है कि इसके अलावा हमें कुछ अच्छा नहीं लगता। `उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से ज्यादा सफेद क्यों´ का विज्ञापन हमारी सोच का विज्ञापन बन गया है। `पड़ोसी की गाड़ी और पड़ोसन की साड़ी´ से दिन रात परेशान रहने वालों को अन्ना ने कुछ और मुद्दे दे दिए हैं। `क्या अन्ना गाँधी हैं, उससे कम हैं या ज्यादा है? क्या ये आज़ादी की लड़ाई जैसा है? जेपी के आन्दोलन से कम है, ज्यादा है....? क्या ये तहरीर चौक जैसा था?
यह ठीक ऐसा ही है कि आप कश्मीर की वादियों में जाएं और वहां की खूबसूरती का आनन्द उठाने की जगह अपने दिमाग को तुलना में उलझा दें कि यह स्विटज़रलैण्ड से कितना कम है-ज्यादा है। अमेरिका से तुलना करने लगें... और जब लौट कर आएं तो समझ में नहीं आता कि हम प्राकृति खूबसूरती का नज़ारा देखने गए थे या तुलनात्मक अध्ययन करने।
दुख इस बात का नहीं है कि तुलना क्यों की जा रही है। बल्कि दुख इस बात का है कि समीक्षा में माहिर ये मस्तिष्क अगर इस बात में इस्तेमाल होते कि हम सब मिलकर एक अच्छा लोकपाल कानून कैसे तैयार करें। देश के आम जन को जिस तरह ये सोचने पर मजबूर किया जा रहा है कि अन्ना गाँधी हैं या नहीं, उसी तरह आम जन को अगर ये सोचने का मसाला दिया जाता कि लोकपाल कानून के किस प्रावधान से क्या होगा, तो शायद देश में एक अच्छा लोकपाल आने का जनमानस तैयार होता।
लेकिन जाने अनजाने हमारे कुशाग्र मस्तिष्क एजेण्डा तय करने में लगे हुए हैं। ध्यान रहे कि यहां सकारात्मक सोच और मंशा वाले लोगों की बात हो रही है, नकारात्मक और विध्वांसात्मक प्रवृत्ति के मस्तिष्क क्या कर रहे हैं ये तो हम सब जानते ही हैं। उनकी बात करना समय, स्याही और कागज़ खराब करना होगा।
सवाल ये हैं कि क्या हम अन्ना को अन्ना के रूप में नहीं देख सकते। एक सामान्य ग्रामीण नौजवान जिसे एक समय लगा कि देश को उसकी जवानी की ज़रूरत है तो फौज में भरती हो गया। सीमा पर युद्ध में अपनी टीम के तमाम साथियों के मारे जाने पर लगा कि यह जीवन बचा है तो इसका कुछ निहितार्थ है। विवेकानन्द को पढ़कर प्रेरणा ली और गांव में आकर शराब, चोरी आदि के खिलाफ माहौल बनाने में लग गया। उस समय की समझ के हिसाब से जो कुछ सही लगा करता रहा। इस दौरान जो निरन्तर साथ बनाए रखा वह था निस्वार्थ भाव और पवित्र विचार। धीरे-धीरे सत्याग्रह का रास्ता समझ में आया। अपने अनशन तथा सत्याग्रह के प्रयोगों से महाराष्ट्र और केन्द्र में बैठी सरकारों को न सिर्फ जनहित का रास्ता दिखाया बल्कि चलने पर मजबूर भी किया।
देश भर में धीरे-धीरे ख्याति बनी, केन्द्र सरकार ने पदम पुरस्कार से नवाज़ा तो मना नहीं किया। लेकिन जब वही केन्द्र सरकार सूचना के अधिकार का दम घोटने में लग गई तो राष्ट्रपति से मिलकर उसे लौटाने की ध्मकी भी दे आए। इतना ही नहीं, तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने पिफर से बुलाकर जब पदम पुरस्कार न लौटाने का अनुरोध किया तो कलाम की इज्जत करते हुए उनकी बात भी मान ली और उतनी ही सहजता से बाहर आकर मीडिया को भी बता दिया कि मैंने कलाम साहब की बात मान ली है। न कोई दिखावा-छिपावा न कोई राजनीतिक चतुराई भरी बयानबाज़ी।
ये हैं अन्ना हज़ारे। या कहना चाहिए के ये अन्ना हज़ारे हैं। इन्हें इसी रूप में देखना होगा। इनकी तुलना करने से न इनका कद कम होता है न बढ़ता है। हां हम अन्ना को समझने में भूल ज़रूर कर सकते हैं। और शायद वर्तमान पीढ़ी को यह समझने की ज़रूरत है कि अन्ना होने का मतलब क्या है. क्यों जब वह अनशन पर बैठता है तो 6 मंत्री और 400 अफसर कुर्सी खो बैठते हैं। क्यों सरकारें 7 ऐसे कानून बनाने पर मजबूर होतीं हैं जिनके लागू होने से अफसर या नेता नहीं बल्कि आम आदमी को ताकत मिलती है। क्यों दिल्ली का मीडिया और युवा वर्ग जन्तर मन्तर पर उनकी एक झलक के लिए बेचैन हो उठता है। क्यों वह अचानक देश के जनमानस की उम्मीद बन कर उभरे हैं?
इन प्रश्नों का हल अन्ना की किसी से तुलना करने में नहीं बल्कि अन्ना के सहजता और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व को समझने की कोशिश से मिलगा।
champa ko chameli hona hai. chameli ko gulab hona hai.gadhe ko ghoda banna hai. apni identity pehchano. every one is uniqe. anna ko anna rehne do. mujhe lagta hai hum hindustanio ki soch +ve honi chaiye aur jinki apni id hai wahi anna ke saath hone chaiye nahi to sab gud gobar ho jayega. (KAMAL DOGHAT U.P)
ReplyDeleteANNA na to "gandhi" hai na "aandhi" hai
ReplyDeleteANNA sona hai ANNA chandi hai.
media ke pade likhe logo KYA ye baat aapko samjh nahi aati ki anna ji gandhi ji nhai hai, gandhi ji ki death 30 Jan 1948 ko ho gayi hai, kya aap bhool gye, agar pata hai logo se puch kar apna aur logo ka keemti time kyon kharab karte ho. Rajeev Shrivastava(Faridabad)
ReplyDeleteanna ji aap ke sath sara desh hai..
ReplyDeleteaur hum dehri on sone ke sare log aap ke sath hai..
From Cyber Zone Dehri On Sone Rohtas (Bihar)
Hon'ble Anna Ji, I salute you, your every word gives a power to our nation. You are superman.
ReplyDeleteAnna Ji
ReplyDeleteApne sathiyo ko salah de ki wo janta ke side sawalo ka sidha jawab de to janta thik se samjhege. kal eak tv channel ne sawal kiya ki janta bhi to corruption karit hai to jawab ye hona tha ki janta corruption khusi se nahi majboori se karti hai jesa apne freedom fighters ke show me dekha tha, govt. ne sahido ke liye jo ghosna ki thi wo aaj tak puri nahi kee aur kisi ko apne baap ka death certificate lene ke kiya bhi riswat deni parti hai ye uski majboori hai. admmossion ke kiye riswat, naukri ke liye riswat,train me ticket ke liye riswat, police se apne complaint par karwahi ke liye riswat. esi bahut misal hai lekin ye sab majboori me karna parta hai. iska matlab ye nahi ki janta apni khusi se riswat deti hai.
PURE DESH AAPKE SAATH HAIN....
ReplyDeleteANNA JI
ReplyDeleteI SALUTE YOU.AAP ME JO JAJBA DESH KE LIYE H WOHI JAJBA DESH KE HAR CITIZEN ME AA JAYE TO DESH HI KYA HUM APNE ADHIKARO KE LIYE PURI DUNIYA SE BHID JAYENGE
JAY HIND
JAY BHARAT
anna hajare hamare desh ki new genration ki nayi pehchan hai. jiski ek awaaj par aaj ka har naujawaan kuch bhi karne ko taiyar hai. Anna Hajare hamare desh ki AAN-BAN-SHAN hai.........India ki nayi pehchan hai.
ReplyDeleteWe can not keep aside to Anna Ji and his team. We should give him total moral and all support whichever required to him.
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