Tuesday, June 7, 2011

क्या न्यापालिका को लोकपाल के दायरे में होना चाहिए?

इस सवाल का जवाब देने से पहले यह देखते हैं कि जनलोकपाल बिल में क्या प्रस्तावित किया जा रहा है, इसकी क्या आलोचना की जा रही है और इस पर हमारा जवाब क्या है.

समस्या कहां है?

आज यदि सुप्रीम कोर्ट अथवा हाई कोर्ट के किसी जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो प्रधान न्यायधीश की अनुमति लिए बिना उसके खिलाफ न तो एफ.आई.आर दर्ज हो सकती है और न ही जांच शुरू हो सकती है. अभी तक का अनुभव बताता है कि किसी जज के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश किए जाने के बाद भी प्रधान न्यायधीश किसी जज के खिलाफ इस तरह की इजाज़त देने से हिचकिचाते रहे हैं.

यहाँ तक कि अपनी इमानदारी के लिए प्रतिष्ठित प्रधान न्यायधीशों ने भी ऐसे मामलों में इजाज़त नहीं दी हैं. खुद पी. चिदम्बरम ने कोलकाता हाई कोर्ट के जज सस्टिस सेन गुप्ता के खिलाफ एफ. आई आर दर्ज करने की इजाज़त मांगी थी. इजाज़त देश के प्रधान न्यायधीश जस्टिस वेंकटचेलैय्या से मांगी गई थी, जो अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं. लेकिन जस्टिस वेंकट चेल्य्या ने भी इजाज़त नहीं दी. सवाल उठता है कि क्या जस्टिस सेनगुप्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे? सबूतों का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिटायर होते ही जस्टिस सेनगुप्ता के यहाँ छापे डाले गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. क्योंकि इस वक्त प्रधान न्यायधीश की इजाज़त की आवश्यकता नहीं थी.

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कितने ही सटीक मामले सामने आए हैं, लेकिन पिछले 20 साल में केवल एक मामले में प्रधान न्यायधीश ने एफ आई आर दर्ज करने की इजाज़त दी गई है.

अत: यह प्रतीत होता है कि वर्तमान व्यवस्था भ्रष्ट जजों को बचाती है और इससे उच्च न्याय व्यव्स्था में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है.

प्रस्ताव:
यह प्रचारित किया जा रहा है कि न्यायपालिका को लोकपाल के अधीन किया जा रहा है. यह एकदम गलत है.

प्रस्तावित यह किया जा रहा है कि किसी जज के भ्रष्टाचार के मामले में एफ आई आर दर्ज करने की इजाज़त प्रधान न्यायधीश की जगह लोकपाल की सात सदस्यीय बैंच दे. (जिसमें अधिकतर विधिक न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्य हो सकते हैं). वर्तमान व्यवस्था और जनलोकपाल में प्रस्तावित व्यवस्था में एक यही प्रमुख अन्तर है.

आज की व्यवस्था में अगर एफ आई आर दर्ज होती है तो उसकी जांच सीबीआई करती है. लेकिन प्रस्तावित व्यवस्था में सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में मिलाया जाना है तो ज़ाहिर है कि एफ आई आर दर्ज करने के बाद जांच का काम लोकपाल की जांच शाखा के पास होगा.

अत: कुल मिलाकर देखें तो केवल एक बदलाव प्रस्तावित किया जा रहा है - एफ आई आर दर्ज करने की इजाज़त प्रधान न्यायधीश की जगह लोकपाल की सात सदस्यीय बैंच द्वारा दी जाए.

प्रस्तावित व्यवस्था की आलोचना:

कहा जा रहा है कि इससे न्यायपालिका की स्वतन्त्रता प्रभावित होगी. हमें यह समझ नहीं आता कि ऐसा कैसे हो सकता है? वर्तमान व्यवस्था में भ्रष्ट जजों को संरक्षण और भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिल रहा है. यह न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के साथ समझौता है. जनलोकपाल बिल में मांग की जा रही है कि एक जज के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करने की इजाज़त देने, और उसकी जांच करने के लिए ऐसी व्यवस्था हो जो न्यायपालिका अथवा सरकार के दवाब से मुक्त हो. इससे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा. क्या इससे न्यायपालिका की स्वतन्त्रता और मजबूत नहीं होगी?

एक और तर्क दिया जा रहा है कि न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे में लाने से उसके पास इतनी शिकायतें आएंगी कि उसका काम बहुत बढ़ जाएगा. यह भी एक्दम गलत है. हमारे देश में 1000 से भी कम हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज हैं. जस्टिस भरूचा ने एक बार कहा था कि उच्च न्याय व्यवस्था का 20 प्रतिशत से भी कम भ्रष्ट है. ज़ाहिर है कि इन सबके खिलाफ एकदम तो शिकायतें नहीं आ जाएंगी. लेकिन मान लीजिए आ भी गईं तो अधिकतम २०० शिकायतें होंगी. यह बहुत छोटी संख्या होगी और इससे लोकपाल का काम करना मुश्किल तो कतई नहीं होने जा रहा.

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि न्यायिक मामले बहुत पचीदा होते हैं. अत: जजों के खिलाफ मामले न्यायपालिका के लोग ही देख सकते हैं. यदि यह तर्क मान लिया जाए तो पुलिस वाले कहेंगे कि पुलिस का काम भी पेचीदा होता है अत: पुलिस वालों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को केवल पुलिस के लोग ही देखें. इसी तरह नेता भी यही कहेंगे, इन्कम टैक्स, कस्टम, आदि भी यही तर्क देंगे. वस्तुत: रिश्वत देना और लेना एक अपराध है और इसमें कोई तकनीक शामिल नहीं होती है.

संविधान में किसी भ्रष्ट जज के खिलाफ महाभियोग चलाने का अधिकार संसद के पास है. उसके बदलने के बारे में कोई बात ही नहीं है. मांग सिर्फ इतनी सी है कि भ्रष्ट जज के खिलाफ एफ आईर आर दर्ज करने की इजाज़त प्रधान न्यायधीश की जगह लोकपाल की सात सदस्यीय बैंच द्वारा दी जाए. और इसके लिए संविधान में किसी तरह के बदलाव की ज़रूरत नहीं है.

न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को आगामी ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में क्यों न लाया जाए?
पहली बात तो यह है कि ज्यूडिशियल  अकाउण्टेबिलिटी बिल में जजों की रिश्वतखोरी पर कोई बात नहीं की जा रही है. इसके द्वारा जिस राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन की बात कही जा रही है उसके पास न तो रिश्वतखोरी के अपराध की जांच करने के लिए पुलिस जैसे अधिकार होंगे और न ही उसके लिए कर्मचारी. जबकि लोकपाल के पास ये दोनों होंगे.  इसमें सिर्फ दुर्वयवहार की बात है जबकि जनलोकपाल में आपराधिक कदाचार की बात कही जा रही है. अत: ये दोनों कानून एक दूसरे को पूरकता प्रदान करेंगे.

साथ ही, कहा जा रहा है कि लोकपाल कानून से न्यापालिका की स्वतन्त्रता कम हो जाएगी. यदि ऐसा है भी तो क्या ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी कानून बनने से ऐसा नहीं होगा? ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल के तहत बनने वाला राष्ट्रीय न्यायिक आयोग भी तो लोकपाल की तरह एक संस्था ही होगी, सिर्फ नाम अलग होगा. राष्ट्रीय न्यायिक आयोग, लोकपाल से अधिक संवैधानिक कैसे होगा? क्या सिर्फ इसलिए कि उसमें जज होंगे? लोकपाल में भी तो 4 जज होंगे. क्या यह जनता को गुमराह करने की बात नहीं है कि लोकपाल से न्यायपालिका की स्वतन्त्रता प्रभावित हो जाएगी और राष्ट्रीय न्यायिक आयोग से नहीं होगी.

तीसरी बात, ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल एक बेहद कमज़ोर कानून बनेगा. इसकी हर तरफ निन्दा हो रही है. भ्रष्टाचार को कम करने की बजाय इससे भ्रष्ट जजों को और प्रोत्साहन मिलेगा. इसे प्रभावी बनाने के लिए इसमें बहुत से बदलाव करने होंगे.

चौथी बात, अगर ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को शामिल कर भी लिया जाता है, तो सवाल यह है कि ये कानून कब बनेगा. इसके लिए हमें अन्त तक इन्तज़ार करते रहना पड़ेगा. अगर ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में जजों के भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त प्रावधान लाकर, इसे भी लोकपाल के साथ पास कर दिया जाता है तो हमें कोई दिक्कत नहीं है

4 comments:

  1. gud work manish jee, well said.

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  2. मेरे सीने में न सही तेरे सीने में ही सही हो कही भी आग लेकिन ये आग जलनी चाहिए , सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है की सूरत बदलनी चाहिए

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  3. कोंग्रेस कभी नंही चाहेगी भ्रस्ताचार मिटे

    इसलिए

    कोंग्रेस का हात श्रीमन्तोके साथ गरीबोंकी मोत


    दिलमे उठा है एक अरमान
    सबसे दुखी हो हिंदुस्तान
    गरिबिकी जो रह चुनी उसे नाम दिया भारत निर्माण
    हो रह है गरीब निर्माण

    यही कोंग्रेस का नारा है

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  4. MANISH JI-AAP PER BHAROSA AUR FAITH HAI,PURA BIHAR AAP KE SAATH HAI.PL.COME BIHAR .YOURS TRULLY-ARVIND KUMAR, IAC SIPAHI, ADVOCATE,PATNA HIGH COURT.MOB.NO.-09431459586

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